CATEGORIES

December 2024
M T W T F S S
 1
2345678
9101112131415
16171819202122
23242526272829
3031  
Tuesday, December 24   6:45:20

सदियों से जारी भगवान जगन्नाथ जी की रथयात्रा

20-06-2023, Tuesday

जगन्नाथ पुरी में हर साल भगवान जगन्नाथजी अपने बड़े भाई बलभद्र जी और बहन सुभद्रा जी के साथ नगरचर्या पर निकलते है।सामान्यतया कहा जाता है कि पिछले करीब 500 सालो से ही भगवान की रथयात्रा निकाली जाती है।पर पद्म पुराण, ब्रह्म पुराण और स्कंद पुराण में 12 वीं सदी से भगवान की रथयात्रा निकाली जाने का उल्लेख मिलता है। यहां यह उल्लेखनीय है कि जगन्नाथ पुरी का यह एकमात्र मंदिर है, जहां भगवान श्री कृष्ण अपने बड़े भाई बलभद्र जी और बहन सुभद्रा जी के साथ बिराजते है।


एक कथा अनुसार एक बार बहन सुभद्रा ने भगवान श्री कृष्ण से नगर देखने जाने की इच्छा जताई।भगवान भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा को लेकर नगर दर्शन को निकले,और गुंडीचा मासी के घर सात दिन ठहरे थे।तब से रथयात्रा का सिलसिला शुरू हुआ।


भगवान श्री कृष्ण,सुभद्रा और बलदाऊ की काष्ठ की प्रतिमाएं अधूरी है।कहा जाता है कि विश्वकर्मा यह मूर्तियां बना रहे थे,उन्होंने कहा था कि कोई उनके काम में रूकावट नही डालेगा।जब मूर्तियां बन जायेगी तो वे स्वयं बाहर आयेंगे।परंतु रानी गुंडीचा से रहा नही गया और उन्होंने विश्वकर्मा और बन रही मूर्तियों को देख लिया।इस कारण विश्वकर्मा चले गए और आकाशवाणी हुई कि अब ये मूर्तियां इसी स्वरूप में रहेगी। और वर्ष में एक बार भगवान मथुरा जायेंगे।ये अधूरी मूर्तियां ही स्थापित की गई।स्कंदपुराण के उत्कल खंड में निहित उल्लेख के अनुसार राजा इंद्रद्युम्न ने अषाढ़ी दूज के मथुरा जाने की व्यवस्था की।
रथयात्रा के लिए तीन रथ बनाए जाते है।नीम के पवित्र अखंड लकड़ी में से बनाए जाते है,जिसे दरू की जाता है।रथ बनाने के लिए किसी भी प्रकार की धातु का उपयोग नही होता है।वसंत पंचमी के दिन लकड़ी को चुना जाता है, और अक्षयत्रुतिया के दिन से निर्माण शुरू होता है।बलदाऊ के रथ को तालध्वज,सुभद्रा के रथ को दर्पदलन या पद्म रथ,श्री जगन्नाथजी के रथ को नंदीघोष या गरुध्वज कहा जाता है।रथयात्रा में सबसे आगे बलदाऊ का रथ,बीच में सुभद्रा का और अंत में जगन्नाथजी का रथ चलता है।ढोल ,नगाड़ों,और शंखध्वनि के साथ पूरे उत्साह से रथयात्रा निकाली जाती है।गुंडीचा मंदिर पर रथयात्रा पूरी होती है,जहा भगवान जगन्नाथ जी भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ सात दिन ठहरते है।जब मुख्य मंदिर वापस आते है तो इस यात्रा को बहुड़ा यात्रा कहा जाता है।


भगवान जगनाथजी के जय घोष के साथ सभी भक्त पूरी श्रद्धा से रथयात्रा में भाग लेंगे और रथ खींचने का सौभाग्य प्राप्त करेंगे।