विश्व की चार पौराणिक, प्राचीन सभ्यताओं में भारत का नाम भी शामिल है। हमारी आध्यात्मिक विरासत ,शास्त्र, वेद, पुराण, दर्शनशास्त्र, आयुर्वेद, स्थापत्य, शिल्प कला, संगीत, नालंदा और तक्षशिला जैसे महाविद्यालय,और कलाएं शिखर पर थी। लेकिन विदेशी आक्रमणकारियों ने सब कुछ ध्वस्त कर दिया।
कहते हैं न… कि किसी देश या उसकी प्रजा को निर्माल्य बनाना है तो, उसकी संस्कृति पर घात करो, उसे नष्ट कर दो। ऐसा ही मुगलों, अंग्रेजों, पुर्तगाली, समेत आक्रांताओं ने किया। इसका दस्तावेजीकरण ना हो पाने का अफसोस है। लेकिन, खुशी की बात यह है कि इतिहास को संजोने का काम कुछ विरले कर रहे हैं। ऐसे ही कला प्रेमी है, गुजरात के रमणीक भाई झापड़िया। जिन्होंने इस कार्य के महत्व को समझते हुए कलातीर्थ ट्रस्ट की स्थापना की। उन्होंने इस ट्रस्ट के माध्यम से अनेक दस्तावेजी पुस्तकें प्रकाशित की।
अनेकों लोगों की जानकारी, संशोधनों का दस्तावेजीकरण हुआ ।यह सुंदर तसवीरों से सज्ज पुस्तक कला प्रेमियों को फ्री में भेजी जाती हैं । इन पुस्तकों में मूल्य के स्थान पर लिखा होता है, “अमूल्य”। कलातीर्थ ट्रस्ट के दस्तावेजीकरण का उद्देश्य है, कला संस्कृति का संवर्धन, विस्मृति के कगार पर खड़ी कला ,कसब, सांस्कृतिक विरासत, का जतन और संवर्धन । नीराभिमानी, निरपेक्ष, और सरल व्यक्तित्व वाले रमणीक भाई झापड़िया ने इन पुस्तकों के तमाम हक कर्ता के नाम किए हैं। उनके द्वारा प्रकाशित पुस्तकों में ,उन्होंने रामायण पर भित्तिचित्रों पर प्रदीप झवेरी की संशोधनात्मक पुस्तक, रेतशिल्प साधक नथु गलचर, रविशंकर रावल की जीवनयात्रा, वासुदेव स्मार्त ,ज्योति भट्ट, जैसे कलाकारों की कला का दस्तावेजीकरण किया है। डॉक्टर भरत भगत के अनुसार रमणीक झापड़िया संस्कृति संजोने कला प्रेमियों से जुड़कर विश्व युद्ध के कगार पर खड़ी विरासत का संवर्धन, जतन करने किसी कर्मठ योगी की तरह जुटे हुए हैं । इस विरासत को संजोने में हम भी सहयोग करना होगा।
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