नई दिल्ली : कांग्रेस नेता राहुल गांधी के खिलाफ केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को मर्डर का आरोपी कहने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सभी कानूनी कार्यवाही पर रोक लगा दी। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने इस मामले में झारखंड सरकार और शिकायतकर्ता से जवाब भी मांगा है, जिनके द्वारा राहुल गांधी के खिलाफ शिकायत दर्ज की गई थी।
राहुल गांधी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करते हुए इस मानहानि मामले को रद्द करने की मांग की थी। उनके वकील, वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने तर्क दिया कि यह शिकायत तीसरी पार्टी द्वारा दायर की गई है, जो उनके अनुसार मानहानि के मामलों में स्वीकार्य नहीं है। उन्होंने यह सवाल उठाया कि यदि कोई व्यक्ति स्वयं प्रतिवादी नहीं है, तो तीसरी पार्टी कैसे शिकायत दर्ज कर सकती है?
सुप्रीम कोर्ट ने इस पर विचार करते हुए झारखंड सरकार और शिकायतकर्ता को नोटिस जारी किया और आदेश दिया कि इस मामले में आगे की सभी कानूनी प्रक्रिया तब तक रुकी रहेगी, जब तक कोर्ट इस पर अंतिम निर्णय नहीं लेता।
यह मामला 18 मार्च 2018 का है, जब राहुल गांधी ने भारतीय जनता पार्टी (BJP) और अमित शाह पर आरोप लगाते हुए कहा था कि पार्टी के लोग मर्डर के आरोपी को अपने अध्यक्ष के रूप में स्वीकार करने के लिए तैयार हैं। इस पर बीजेपी नेता नविन झा ने गांधी के खिलाफ मानहानि की शिकायत दर्ज की थी।
इससे पहले, रांची की मजिस्ट्रेट कोर्ट ने झा की शिकायत खारिज कर दी थी, लेकिन झा ने इस फैसले के खिलाफ रिवीजन याचिका दायर की, जिसे 15 सितंबर 2018 को न्यायिक आयुक्त ने स्वीकार कर लिया। न्यायिक आयुक्त ने मजिस्ट्रेट से मामले की फिर से जांच करने को कहा, जिसके बाद मजिस्ट्रेट ने 28 नवंबर 2018 को एक नया आदेश दिया, जिसमें गांधी के खिलाफ मानहानि का मामला स्थापित होने का दावा किया गया और उन्हें पेश होने के लिए समन भेजा गया।
रांची हाई कोर्ट ने भी गांधी के बयान को मानहानिपूर्ण और भारतीय दंड संहिता की धारा 499 के तहत अपमानजनक बताया था। कोर्ट ने यह भी कहा था कि गांधी का बयान यह दर्शाता है कि भाजपा के नेताओं और कार्यकर्ताओं को मर्डर के आरोपी को अपना अध्यक्ष स्वीकार करने में कोई संकोच नहीं है, जो कि उनके मानहानि के दायरे में आता है।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय महत्वपूर्ण है क्योंकि यह मानहानि के मामलों में तीसरी पार्टी की शिकायत पर सवाल उठाता है। इसके साथ ही यह स्पष्ट करता है कि अगर किसी के खिलाफ आरोप सही नहीं हैं, तो उसे कानूनी तौर पर चुनौती देना अधिकार है। हालांकि, यह भी ध्यान रखना चाहिए कि नेताओं को सार्वजनिक बयान देने से पहले अपनी शब्दावली पर ध्यान रखना चाहिए, ताकि अनावश्यक विवादों से बचा जा सके।
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