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संसद में Raghav Chaddha का गरजता बयान: ‘टैक्स इंग्लैंड जैसा, सुविधाएं सोमालिया से भी बदतर!’

Raghav Chaddha : भारतीय संसद में बहस का माहौल उस समय और अधिक गरम हो गया जब आम आदमी पार्टी के तेजतर्रार सांसद राघव चड्ढा ने कराधान प्रणाली पर करारा हमला बोला। उनके शब्दों ने न केवल सदन में हलचल मचा दी, बल्कि सोशल मीडिया और जनमानस में भी व्यापक चर्चा का विषय बन गए। अपने ओजस्वी भाषण में उन्होंने सरकार की कर नीतियों पर सवाल उठाते हुए एक तीखा तंज कसा—’भारत में नागरिकों से टैक्स इंग्लैंड के स्तर पर लिया जाता है, लेकिन बदले में मिलने वाली सुविधाएँ सोमालिया से भी बदतर हैं!’

करों का बोझ: जन्म से मृत्यु तक!
राघव चड्ढा ने सरकार की कराधान नीतियों की बारीकियों को उजागर करते हुए कहा कि एक आम नागरिक की आय का अधिकांश हिस्सा विभिन्न प्रकार के करों में चला जाता है। उन्होंने एक दिलचस्प उदाहरण प्रस्तुत किया:

“अगर कोई व्यक्ति 10 रुपये कमाता है, तो उसमें से तीन से साढ़े तीन रुपये आयकर के रूप में कट जाते हैं। इसके बाद जो भी चीज वह खरीदता है, उस पर जीएसटी, सेस, सरचार्ज, रोड टैक्स, टोल टैक्स आदि वसूले जाते हैं। आखिर में, उसकी मेहनत की कमाई बचती ही कितनी है?”

उन्होंने कर बोझ की श्रृंखला को जन्म से मृत्यु तक जोड़ते हुए बताया कि एक बच्चे के जन्म पर मिठाई बांटने से लेकर खिलौनों, स्कूल बैग, किताबों, जूतों पर भी टैक्स लगाया जाता है। युवा अवस्था में पहली बाइक खरीदने पर रोड टैक्स, इंश्योरेंस टैक्स, टोल टैक्स देना पड़ता है। यहाँ तक कि सेवानिवृत्ति के बाद भी पेंशन पर कर वसूला जाता है, और यदि कोई अस्पताल जाता है, तो वहाँ भी चिकित्सा सेवाओं पर जीएसटी लागू होता है।

सरकार पर तीखा व्यंग्य राघव चड्ढा ने सरकार पर सीधा हमला बोलते हुए कहा कि भारत में केवल नागरिक ही नहीं, बल्कि उनकी सांसें भी टैक्स के दायरे में हैं। उन्होंने संसद में व्यंग्यात्मक कविता भी प्रस्तुत की, जिसने पूरे सदन का ध्यान अपनी ओर खींच लिया “टैक्स इंग्लैंड जैसा, पर जीवन में संबल नहीं, सुविधाएँ सोमालिया जैसी, पर कोई हल नहीं। मेहनत से जोड़ा हर सिक्का, करों में समा गया, आम आदमी का सपना, बस सपना ही रह गया।

शिक्षा पर कर, स्वास्थ्य पर कर, खाने-पीने तक पर कर, आखिर यह जनता, कब तक सहे यह जहर?

पसीने की कमाई लूटे, फिर भी सेवा अधूरी, कहाँ जाए जनता, जब हर राह हो मजबूरी ?”

टैक्स के नाम पर जनता से ठगी?
राघव चड्ढा के अनुसार, मौजूदा कर प्रणाली आम जनता पर अत्यधिक बोझ डाल रही है, जबकि बड़े कॉर्पोरेट्स को भारी टैक्स छूट दी जाती है। उन्होंने सरकार से जवाब मांगते हुए कहा:

“जब एक आम भारतीय नागरिक अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा टैक्स में दे रहा है, तो उसे बदले में जीवन की मूलभूत सुविधाएँ क्यों नहीं मिलतीं? आखिर जनता के पैसे का इस्तेमाल कहाँ हो रहा है?”

जनता को क्या संदेश?
राघव चड्ढा ने जनता से अपील की कि वे अपने अधिकारों के प्रति जागरूक बनें और सरकार से जवाबदेही की माँग करें। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सरकार को कर संग्रहण प्रणाली में पारदर्शिता लानी होगी और जनता के धन का उचित उपयोग सुनिश्चित करना होगा।

उनका यह ओजस्वी भाषण सोशल मीडिया पर भी तेजी से वायरल हो गया, और नागरिकों ने उनके विचारों का समर्थन करते हुए सरकार से अधिक जवाबदेही की माँग की।

राघव चड्ढा का यह बयान केवल एक राजनीतिक टिप्पणी नहीं थी, बल्कि यह भारतीय कर प्रणाली की वास्तविक स्थिति पर एक गहरी और विचारणीय दृष्टि प्रस्तुत करता है। उनकी बातों में न केवल तर्क की शक्ति थी, बल्कि आम जनता की पीड़ा भी स्पष्ट झलक रही थी। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इस मुद्दे पर क्या प्रतिक्रिया देती है और क्या भारत की कर प्रणाली में कोई बदलाव देखने को मिलेगा या नहीं।