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Saturday, May 3   7:23:46

वडोदरा में सरेआम हत्याकांड: BJP नेता के बेटे की निर्मम हत्या ने मचाई सनसनी

वडोदरा: गुजरात के वडोदरा में भारतीय जनता पार्टी (BJP) के पूर्व कॉरपोरेटर रमेश परमार के बेटे तपन परमार की हत्या ने एक बार फिर राज्य की सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़ा कर दिया है। यह घटना, जो न केवल राज्य बल्कि देशभर में सनसनी फैलाने वाली है, पूरी तरह से सरेआम हुई। सोमवार की रात एसएसजी हॉस्पिटल के परिसर में हुए इस कातिलाना हमले ने वडोदरा को दहला दिया। घटनास्थल पर काफी संख्या में लोग जमा हो गए, और देखते ही देखते यह मामला एक बड़े राजनीतिक और सामाजिक मुद्दे में बदल गया।

कैसे हुआ यह घातक हमला?

रात के अंधेरे में एक सामान्य झगड़ा फिर एक खूनी संघर्ष में बदल गया। नागरवाड़ा इलाके में दो लड़कों के बीच मामूली विवाद हुआ था, जिसके बाद दोनों को इलाज के लिए एसएसजी अस्पताल ले जाया गया। लेकिन उसी वक्त तपन परमार, जो अपने इलाके के युवाओं की मदद के लिए वहां पहुंचे थे, बाबर नामक एक शख्स के निशाने पर आ गए। बाबर ने पूरी ढिठाई से, पुलिस की मौजूदगी में ही तपन परमार पर चाकू से हमला कर दिया और उसे मौत के घाट उतार दिया।

इस निर्मम हत्या ने ना सिर्फ परिवार को गहरे सदमे में डाल दिया, बल्कि वडोदरा में कानून-व्यवस्था पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। पुलिस के सामने हुए इस हमले से यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि अपराधी किस हद तक बेज़ाबान और साहसी हो गए हैं। ऐसे में यह घटना यूपी और बिहार की तर्ज पर होने वाली हिंसा की याद दिलाती है, जहां अपराधी बेखौफ होकर सरेआम अपराध को अंजाम देते हैं।

राजनीतिक हलचल और आक्रोश

इस घटना के बाद, वडोदरा में राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। पूर्व सांसद रंजनबेन भट्ट, भाजपा अध्यक्ष डॉ. विजय शाह, विधायक मनीशा वकील समेत अन्य भाजपा नेताओं ने मौके पर पहुंचकर घटना की निंदा की। पुलिस स्टेशन के बाहर भारी संख्या में भाजपा समर्थक और क्षेत्रीय लोग जमा हुए और राज्य सरकार से सख्त कार्रवाई की मांग करने लगे। इसे एक ‘यूपी-बिहार’ जैसे अपराध की श्रेणी में डाला जा रहा है, जो राज्य की सुरक्षा व्यवस्था पर कड़ा सवाल खड़ा करता है।

सुरक्षा व्यवस्था और कानून-व्यवस्था पर सवाल

यह घटना यह सवाल खड़ा करती है कि क्या वाकई वडोदरा में पुलिस प्रशासन और राज्य सरकार अपनी जिम्मेदारी निभा पा रहे हैं? सरेआम हत्या के इस कृत्य ने यह साबित कर दिया कि अपराधी कितने भी संगठित और साहसी हो सकते हैं, जब तक पुलिस और प्रशासन की कार्रवाई पूरी तरह से चाक-चौबंद नहीं होती। अस्पताल जैसे संवेदनशील और व्यस्त स्थान पर इस तरह का हमला न केवल कानून व्यवस्था के लिए चुनौती है, बल्कि आम जनता में भय और असुरक्षा का माहौल भी पैदा करता है।