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शायरी के बेशकीमती मोती: मजरूह सुल्तानपुरी

शायरी का मोती कहे जाते मजरूह सुल्तानपुरी की शायरी,गीतों ने जनमानस पर राज किया। वे भले ही आज हमारे बीच नहीं है, लेकिन आज भी उनके गीत लोगों की जुबान पर रमते है।
भारतीय साहित्य ने देश को कई ऐसे बेशकीमती लेखक, शायर,और कवि दिए है,जो उनकी गैरहाजिरी में भी देश की आन बान और शान है। ऐसे ही शायरों में शुमार है,शायरी के मोती कहे जाते मजरूह सुल्तानपुरी।ये ऐसा नाम है जिसे हर कोई जानता है।

” मैं अकेला ही चला था जानिबे मंजिल मगर,लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया…” ये शेर हर किसीके जेहन में जज्ब है।अक्सर हम किसी सफलता पर इसका ज़िक्र करते ही है।शायरी की दुनिया का यह शेर अपने आप में समंदर की गहराइयों से निकला सच्चा मोती है।

मजरूह सुल्तानपुरी का जन्म उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर में 1 अक्टूबर 1919 को सिराजुद्दीन हसन खान के घर हुआ ।उस वक्त उनका नाम असरार हसन खान रखा गया था। क्योंकि उनके पिता अंग्रेजी के खिलाफ थे, इसलिए उन्हें 7 साल तक मदरसे में पढ़ाई के भर्ती किया गया।वे उन्हें हकीम बनाना चाहते थे, अतः उनके पिता ने उन्हें लखनऊ यूनानी मेडिकल कॉलेज में पढ़ाई के लिए भेजा,लेकिन असरार संगीत और शेरो शायरी के शौकीन थे।वे चुपके से संगीत विद्यालय में जाने लगे, जिससे पिता की नाराजगी झेलनी पड़ी,और हकीम की पढ़ाई पूरी कर सन 1940 में सुल्तानपुर के पल्टन बाजार में दवाखाना खोला।साथ ही वे असरार नासिर के नाम से शायरी भी करने लगे थे।दोस्तों की राय पर उन्होंने अपना नाम मजरूह सुल्तानपुरी रख लिया ,और बाद में इसी नाम से वे लिखने लगे।उनकी शायरी पर जिगर मुरादाबादी का प्रभाव और सहयोग रहा।उन्होंने मजरूह सुल्तानपुरी को दो गुरुमंत्र दिए,एक था कि किसीका अच्छा शेर सुनो तो उसकी नकल न करना और दूसरा था,जो रूह से महसूस करो वह लिखो,करो।जिगर मुरादाबादी एक बार उन्हें मुंबई मुशायरे में ले गए। यहां उनके कलाम से प्रभावित प्रसिद्ध दिग्दर्शक ए. आर.कारदार ने उन्हें भारी वेतन पर उनके प्रोडक्शन में गीतकार का जॉब दिया।और यहां से शुरू हुआ उनका फिल्मी गीतकार का सफर। उस वक्त बन रही उनकी फिल्म शाहजहां का उनका गीत ,” जब दिल ही टूट गया,हम जी के क्या करेंगे..” सुपर हिट हुआ।

उन्होंने सैंकड़ों गीत लिखे। “नजर लागी राजा तोरे बंगले पर”,” रहे ना रहे हम”, “दुनिया बनाने वाले क्या तेरे मन में समाई”,”हम इंतजार करेंगे”, “लेके पहला पहला प्यार”, “पत्थर के सनम”, “हम हैं मताए कुंचाओ बाजार की तरह”, “ए मां तेरी सूरत से अलग भगवान की सूरत क्या होगी”, “राही मनवा दुख की चिंता क्यों सताती है”, जैसे गीत आज भी सुनने वालों को मोह लेते हैं। उन्होंने अपनी शायरी के जरिए एक आध्यात्मिक और शाब्दिक दुनिया बनाई। उनकी गजलों में सूफियाना आसर नजर आता है। उन्हें कभी-कभी अगर साहित्यिकता में समझौता करना पड़ता था, तो उन्हें बहुत खलता था।मजरूह सुल्तानपुरी को गालिब और इकबाल सम्मान से भी सम्मानित किया गया।

60 साल तक अपने गीतों के द्वारा लोगों के दिलों पर राज करने वाले मजरूह सुल्तानपुरी का 24 मई 2000 को निधन हो गया।वे आज भले ही हमारे बीच नहीं है, लेकिन उनके लिखे चिरंजीवी गीतों के द्वारा सदा लोगों के जेहन में जिंदा रहेंगे। बिल्कुल उनके इस गीत की तरह……

“रहें न रहें हम,महका करेंगे
बनके कली बनके सबा, बागे वफा में…..”