बिहार लोक सेवा आयोग (BPSC) परीक्षा विवाद के बीच जन सुराज पार्टी के प्रमुख प्रशांत किशोर की तबीयत लगातार बिगड़ती जा रही है। वह छह दिनों से अनशन पर हैं और उनकी सेहत को लेकर गंभीर चिंताएं जताई जा रही हैं।
प्रशांत किशोर को गांधी मैदान, पटना में धरने के दौरान हिरासत में लिया गया था, लेकिन पटना सिविल कोर्ट के आदेश के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया। इसके बाद उन्होंने फिर से भूख हड़ताल जारी रखने का फैसला किया। उनका स्पष्ट कहना है कि जब तक BPSC परीक्षा को रद्द नहीं किया जाता और दोषियों पर कार्रवाई नहीं होती, तब तक वह अपना अनशन समाप्त नहीं करेंगे।
BPSC परीक्षा को लेकर पेपर लीक के आरोप लगे हैं, जिसके चलते कई छात्र परीक्षा को रद्द करने की मांग कर रहे हैं। इस मुद्दे ने बिहार की राजनीति में भूचाल ला दिया है और सरकार पर बेरोजगार युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने के आरोप लग रहे हैं।
सरकार और प्रशासन की चुप्पी इस मामले को और गंभीर बना रही है। यदि परीक्षा में अनियमितता के पुख्ता सबूत हैं, तो सरकार को तुरंत इस पर कार्रवाई करनी चाहिए। छात्रों का भविष्य दांव पर लगाना न तो लोकतंत्र के लिए उचित है और न ही न्यायसंगत। दूसरी ओर, यदि परीक्षा पारदर्शी तरीके से हुई थी, तो सरकार को इस बारे में स्पष्ट बयान देना चाहिए ताकि अफवाहें न फैलें।
प्रशांत किशोर का अनशन लोकतांत्रिक विरोध का एक मजबूत उदाहरण है। वह बिहार के युवाओं के भविष्य को लेकर चिंतित हैं, लेकिन यह भी सच है कि सिर्फ भूख हड़ताल से समाधान नहीं निकलेगा। सरकार को चाहिए कि वह इस मामले की निष्पक्ष जांच करवाए और छात्रों को आश्वस्त करे। अगर परीक्षा में गड़बड़ी हुई है, तो इसे रद्द कर दोबारा करवाया जाए और दोषियों पर सख्त कार्रवाई हो। वरना, इस तरह की घटनाएं बिहार की शिक्षा व्यवस्था की विश्वसनीयता को पूरी तरह खत्म कर देंगी।
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