कनाडा की राजनीति में एक बड़ा घटनाक्रम सामने आया है। भारतीय मूल के सांसद चंद्र आर्य को लिबरल पार्टी ने आगामी चुनाव में टिकट देने से इनकार कर दिया है। पार्टी ने नेपियन से उनकी उम्मीदवारी रद्द कर दी है। यह फैसला ऐसे समय में आया है जब आर्य पर भारत सरकार से करीबी संबंध रखने के आरोप लगाए जा रहे हैं। हालांकि, आर्य का दावा है कि उनकी मुखर खालिस्तानी विरोधी रुख की वजह से यह कार्रवाई की गई है।
भारत दौरे ने बढ़ाई मुश्किलें
अगस्त 2024 में चंद्र आर्य ने भारत का दौरा किया था, जहां उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थी। इस दौरे को लेकर लिबरल पार्टी ने नाराजगी जताई। रिपोर्ट्स के मुताबिक, आर्य ने इस दौरे की जानकारी कनाडा सरकार को नहीं दी थी। उस वक्त भारत और कनाडा के संबंध तनावपूर्ण थे, खासकर खालिस्तानी मुद्दे को लेकर।
कनाडियन सिक्योरिटी इंटेलिजेंस सर्विस (CSIS) ने भी भारत सरकार के साथ आर्य के कथित संबंधों पर रिपोर्ट सौंपी थी। इससे उनकी उम्मीदवारी पर सवाल खड़े हो गए।
आर्य का पक्ष: ‘खालिस्तानी विरोध की सजा’
आर्य ने अपनी टिकट कटने को खालिस्तानी आंदोलन के विरोध से जोड़ते हुए कहा, “मेरा टिकट भारत से करीबी संबंधों के कारण नहीं कटा है। मैंने हमेशा खालिस्तानी गतिविधियों का विरोध किया है, और यही वजह है कि मुझ पर कार्रवाई की गई है।”
उन्होंने यह भी बताया कि 2024 में कनाडा की संसद में खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की याद में रखे गए मौन का उन्होंने खुलकर विरोध किया था। यह कदम खालिस्तानी समर्थकों को रास नहीं आया और उन पर लगातार दबाव बनाया गया।
खालिस्तानी समूहों का विरोध और पन्नू की शिकायत
खालिस्तानी आतंकी गुरपतवंत सिंह पन्नू ने पहले भी आर्य के खिलाफ शिकायत की थी। पन्नू ने तत्कालीन प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो से आर्य के खिलाफ सख्त कदम उठाने की मांग की थी। माना जाता है कि इस दबाव का असर भी उनके टिकट कटने में दिखाई दिया।
कौन हैं चंद्र आर्य?
कर्नाटक के सिरा तालुक के निवासी चंद्र आर्य 2006 में कनाडा गए थे। उन्होंने धारवाड़ के कौसली इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज से MBA किया है। कनाडा में उन्होंने निवेश सलाहकार और रक्षा कंपनी में कार्यकारी के रूप में काम किया।
2015 में उन्होंने पहली बार चुनाव लड़ा और जीत दर्ज कर संसद पहुंचे। 2019 और 2021 में भी वे सांसद बने। आर्य कनाडा में हिंदू मंदिरों पर हुए हमलों और धार्मिक उन्माद के खिलाफ भी आवाज उठाते रहे हैं।
कनाडा में चुनावी माहौल
कनाडा में 28 अप्रैल को आम चुनाव होने वाले हैं। नए प्रधानमंत्री मार्क कार्नी ने जनता से डोनाल्ड ट्रंप जैसे प्रभावों का मुकाबला करने के लिए समर्थन मांगा है। कार्नी ने इसी महीने लिबरल पार्टी के नेता के रूप में पदभार संभाला और अब वे पार्टी को एक नई दिशा में ले जाने का प्रयास कर रहे हैं।
इस घटना ने कनाडा की राजनीति में एक गंभीर प्रश्न खड़ा कर दिया है। क्या खालिस्तानी विरोध करने वाले किसी नेता को सियासी सजा दी जा सकती है? चंद्र आर्य का टिकट कटना केवल एक राजनीतिक निर्णय नहीं है, यह विचारधारा और स्वतंत्रता पर भी सवाल उठाता है।
भारत और कनाडा के रिश्तों की पृष्ठभूमि में यह फैसला और भी अहम हो जाता है। एक सांसद का अपने सिद्धांतों पर अडिग रहना लोकतंत्र की ताकत होनी चाहिए, न कि उसकी कमजोरी। अब देखना होगा कि आर्य इस चुनौती का सामना कैसे करते हैं और क्या वे अपनी आवाज को और बुलंद करेंगे।

More Stories
रूसी राष्ट्रपति पुतिन की कार में धमाका ; हत्या की साजिश या हादसा?
ऑपरेशन ब्रह्म: भारत की एक रणनीतिक सफलता और म्यांमार से संबंधों का नया दौर
334 एटॉमिक बम के बराबर झटका ; म्यांमार में भूकंप से तबाही, 1644 की मौत, हजारों घायल