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Mount Abu

राजस्थान का एकमात्र हिल स्टेशन, मानसून में जरूर करें इन वादियों का दीदार

मानसून के दिनों में अगर आप भी घूमने का प्लान बना रहे हैं, तो आप राजस्थान के माउंट आबू पर जाकर मौसम का आनंद उठा सकते हैं। मानसून के दिनों में घूमने के लिए यहां कई सारी जगहे हैं। माउंट आबू में नेचर के साथ आपको इतिहास से जुड़े कहानियों के बारे में भी पता चलेगा। इसके साथ ही राजस्थान में आपको प्रकृति के सुंदर दृश्य और ऐतिहासिक इमारतों को देखने का भी मौका मिलेगा। जहां आप आसानी से परिवार या दोस्तों के संग इंजॉय कर सकते हैं।

माउंट आबू अरावली पर्वत माला की श्रृंखलाओं के दक्षिण-पश्चिम में 400 फीट ऊँची पहाड़ी पर मनोरम और मनमोहक घाटी में स्थित है। राजस्थान का एक मात्र पहाड़ी स्थल पर्वतों के मध्य माउन्ट आबू। सुहावने हरे-भरे जंगलों गहरी खाइयों व विचित्र और भव्य आकृतियों के काले पत्थरों की विशाल चट्टानों से घिरा सुहावनी जलवायु वाला यह पर्वतीय स्थल 13 कि॰मी॰ लम्बा व 5 कि॰मी॰ चौड़ा है और यह स्थल ग्रीष्म ऋतु में भी बाकी प्रदेश के विपरीत सैलानियों का अपनी स्वर्ग रूपी तपो भूमि पर स्वागत करता है।

दिलबाड़ा जैन मन्दिर- आबू पर्वत से 5 कि॰मी॰ दूर दिलवाड़ा ग्राम में एक सुन्दर और विशाल मनमोहक घाटी में स्थित है। इस विश्व प्रसिद्ध मंदिर में 5 उपमंदिरों का समूह है जिनमें विमल वसही व लूण वसही प्रमुख है। वहीं दूसरे मंदिरों में ऋषभदेव जी मंदिर, पार्श्वनाथ जी मंदिर व महावीर स्वामी जी मंदिर है। ये सभी पांचों मंदिर 11वीं व 12वीं शताब्दी में बने हैं और आज भी उस काल की शिल्पकला के अनोखे व भव्य उदाहरण संजोये हुए हैं। श्वेत संगमरमर पर सूक्ष्म कलात्मक खुदाई बहुत ही कौशलतापूर्ण की गई है। दिलवाड़ा जैन मंदिर भारतीय शिल्पकला के अनूठे व भव्य उदाहरण हैं और पूरे विश्व में बेजोड़ हैं।

गुरु शिखर- हिमालय एवं नीलगिरी के मध्य सबसे ऊँची चोटी है। यह चोटी अरावली पर्वतमालाओं में आती है और इसकी समुद्रतल से ऊँचाई 5653 फीट है। यहां शिखर की चोटी पर जाने के लिए एक पक्का रास्ता बना हुआ है। चोटी के बीच में एक दंतात्रय का मंदिर भी दर्शनीय है। शिखर की चोटी पर एक पुराना पीतल का भव्य घंटा है। जिस पर सन् 1411 अंकित है। गुरु शिखर से आबू पर्वत के दूर-दूर तक के स्थानों का भव्य मनोहर व विहंगम दृश्य दिखाई पड़ता है।

अचलेश्वर महादेव, अचलगढ़ – आबू से 8 कि॰मी॰ दूर सुन्दर पहाड़ियों से घिरी घाटी के मध्य स्थित है। इस सुन्दर व स्वास्थ्यवर्द्धक घाटी में आबू के अधिष्ठता अचलेश्वर महादेव का सबसे प्राचीन शिव मंदिर है। इस शिव मंदिर की विशेषता यह है कि यहाँ अन्य शिव मंदिरों की तरह कोई शिवलिंग न होकर उसके स्थान पर एक गढ्ढा है जो अनुमानतः पाताल तक गहरा है और ब्रह्म खड्‌ढा कहलाता है। मंदिर के पास मंदाकनी कुण्ड है जिसमें घी भरा जाता था जिसे पीने के लिए तीन राक्षस रूपी भैसें आज भी यहाँ खड़े हैं। अचलेश्वर महादेव के साथ से एक रास्ता अंचलगढ़ किले व जैन मंदिर को जाता है। यहाँ कई भव्य व सुन्दर जैन मंदिर हैं। जिनमें प्रमुख रूप से प्रसिद्ध है 16वीं शताब्दी में निर्मित चौमुख जी का भव्य मंदिर। इस मंदिर में अष्ट धातु की 1440 मन वजन की चौदहा भव्य मूर्तियाँ दर्शनीय हैं।

अर्बुदा देवी का मंदिर- बस्ती के उत्तर में एक ऊँचे पहाड़ पर विशाल शिला के नीचे स्थित है। यह एक भव्य और प्राचीन मंदिर माँ दुर्गा को समर्पित है। यह मंदिर अधर देवी के मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर का प्रवेश द्वार बहुत ही छोटा है जहां बैठकर जाना पड़ता है। इस मंदिर में जो मूर्ति बनी है वह भूमि से कुछ ऊपर रहती है। अतः यह अधर देवी के रूप में जाना जाता है। यहाँ से आबू की भव्य व मनोरम छटा देखने को मिलती है।

सनसेट प्वॉइंट- पहाड़ियों के अन्तिम छोर पर बसा हुआ है। यहाँ से भव्य व विशालकाय सूर्य लाल व पीले गोले के रूप में नीचे विशाल व सुन्दर मैदानों में उतरता हुआ दिखाई देता है। यह भव्य दृश्य बहुत ही अनुपम लगता है। सूर्य का लाल पीला रंग धीरे-धीरे अन्धकारमय में होता हुआ बहुत ही अवस्मरणीय व अद्वितीय लगता है। इतना विशाल दृश्य शायद ही कहीं और देखने को मिले।

नक्खी लेक- शहर के मध्य चारों ओर हरे-भरे विशालकाय ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों व विशाल पेड़ों की लम्बी कतारों से घिरा हुआ है। माना जाता है कि ये लेक बालम रिसया नामक संत ने अपनी प्रेमिका की प्राप्ति के लिए अपने नाखूनों से खोदकर बनाया था। इसलिए इस लेक का नाम नक्की लेक है। यह हिंदुओं का एक पवित्र सरोवर है। इस झील में आप बोटिंग का आनंद उठा सकते हैं।

रघुनाथ जी का मंदिर- नक्की लेक के किनारे 14वीं शताब्दी में हिन्दू धर्म के उद्वारक रामानन्द जी द्वारा स्थापित श्री रघुनाथ जी का मंदिर है। इसके पास ही शिवजी का प्राचीन व दर्शनीय मंदिर है जो दुलेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है।

गौमुख – आबू से 9 कि॰मी॰ दूर भव्य व खूबसूरत घाटी में अवस्थित है। यहाँ बहुत ही शांत वातावरण में गाय के श्वेत पाषाण मुख से शीतल जल की जल धारा प्रवाहित होती है। यहाँ एक बहुत ही प्राचीन व दर्शनीय मंदिर है। कहा जाता है कि यहीं राजपूतों के 4 वंशों का जन्म हुआ था। ये वंश परिहार, सोलंकी, परमार व चौहान है।

टांड रांक व नन रांक- आबू की भव्य व सुन्दर चट्टानों में से एक है। यह एक पर्वतीय स्थल है। अतः यह चारों ओर पहाड़ों से घिरा हुआ है। इन पहाड़ों में कई आकार की भव्य विशालकाय चट्टानें बनी हैं। इनमें नक्खी झील के दक्षिण की ओर मेंढक के आकार की विशाल चट्टान दिखाई देती है। एक अन्य चट्टान नन रॉक के नाम से जानी जाती है।

ऋषियों व मुनियों की इस अद्भुत तपो भूमि की उत्पत्ति के बारे में अनेक किंवदन्तियाँ प्रचलित हैं। कुछ लोग इसे हिमालय का पुत्र मानते हैं तो कुछ का कहना है कि यह भव्य पहाड़ सत्युग में भी विद्यमान था और कुछ कहते हैं कि यह पवित्र स्थान विशिष्ट मुनि का बहुत प्रिय स्थल था और यहीं उनके द्वारा चार राजपूतों का जन्म हुआ जिस वजह से यह स्थान तीर्थ स्थान के रूप में भी जाना जाता है।