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भारतीय हरित क्रांति के प्रणेता प्रो. एम. एस. स्वामीनाथन

भारतीय हरित क्रांति के जनक, स्वप्नदृष्टा, कृषि वैज्ञानिक प्रोफेसर स्वामीनाथन ने चुनौतीपूर्ण स्थिति में देश को आत्मनिर्भरता का मार्ग दिखाया। वे हमारे बीच नही है, पर उनका काम साक्षी है।

अभी कुछ दिनों पहले ही यानि 28 सितंबर 2023 को ही देश के हरित क्रांति के जनक,स्वप्नदृष्टा,निष्ठावान कृषि वैज्ञानिक प्रोफेसर एम. एस. स्वामीनाथन का निधन हुआ।उनका योगदान भारतीय इतिहास में सुवर्ण अक्षरों से लिखा जाएगा।वे चाहते थे कि देश के किसान समृद्ध बने। 1943 में बंगाल में हुए अकाल को लेकर वे बहुत ही व्यथित थे। तभी उन्होंने तय कर लिया था कि वे कृषि संशोधन का काम करेंगे। 1960 के दशक के प्रारंभ में भारत अकाल की स्थिति से गुजर रहा था। ऐसे में प्रोफेसर स्वामीनाथन ने अपनी अचल प्रतिबद्धता और दीर्घदृष्टि से कृषि समृद्धि के एक नए युग की शुरुआत की।

कृषि और गेहूं के संवर्धन जैसे विशिष्ट क्षेत्रों में उनके योगदान के चलते गेहूं के उत्पादन में बढ़ोतरी हुई और उन्होंने इस प्रकार भारत को एक आत्मनिर्भर देश बनाया। उनकी इस असाधारण सिद्धि के लिए उन्हें भारतीय हरित क्रांति के पिता के रूप में जाना जाता है। उन्होंने अपने जतन से और वैज्ञानिक दृष्टि से आलू की फसल में भी संशोधन किया, और आलू की फसल को ठंडे मौसम में भी जीवंत रहने के लिए सक्षम बनाया। आज के दौर में मिलेट उत्सव कर बाजरा, जौ,मक्के के उपयोग पर जोर दिया जा रहा है, लेकिन प्रोफेसर स्वामीनाथन ने सन 1990 के दशक में ही इन धान के महत्व को प्रोत्साहित किया था।

वे सही मायनो में एक किसान वैज्ञानिक थे, और स्वयं दिल से भी एक किसान ही थे। उनकी प्रयोगशालाएं किसी बंद कमरे में नहीं वरन खुले खेतों में थी। उन्होंने निरंतर टिकाऊ कृषि की हिमायत की। वे महिला किसानों के जीवन को भी सुधारना चाहते थे। 1987 में जब उन्हें प्रथम विश्व खाद्य पुरस्कार प्राप्त हुआ, तब उन्होंने इनाम की सारी रकम संशोधन फाउंडेशन की स्थापना के लिए अर्पित कर दी थी। वे मनीला की इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर पद पर भी कार्यरत रहे। उस समय वाराणसी में वर्ष 2018 में इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टिट्यूट का साउथ एशिया रीजनल सेंटर खोला गया था।

वर्ष 2007 से 2013 तक वे राज्यसभा के नॉमिनेट सदस्य थे। उन्होंने महिला किसानों के लिए राज्यसभामें प्रस्ताव भी प्रस्तुत किया था। वर्ष 2001में नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्री कार्यकाल में जब गुजरात अपनी कृषि कुशलता के लिए प्रसिद्ध नहीं था, और अकाल, चक्रवात, भूकंप के कारण स्थिति खास अच्छी नहीं थी, ऐसे में प्रोफेसर स्वामीनाथ के मार्गदर्शन में सॉइल हेल्थ कार्ड की शूरुआत हुई।और किसानों को जमीन की मिट्टी को स्वस्थ बनाने के लिए प्रोत्साहित किया। आज गुजरात के सभी किसानों के पास सॉइल हेल्थ कार्ड है।वे समय समय पर मिट्टी की जांच करवाते है और अच्छी फसल लेते है। इस प्रकार उन्होंने गुजरात के किसानों को समृद्धि की दिशा दी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनको श्रद्धांजलि देते हुए कहा था कि वर्ष 2016 में इंटरनेशनल एग्रो बायोडायवर्सिटी कांग्रेस में वे प्रोफेसर स्वामीनाथन से मिले थे, और उनके मार्गदर्शन में गुजरात के किसान समृद्ध हुए है।

7 अगस्त 1925को जन्मे प्रोफेसर स्वामीनाथन का निधन 28 सितंबर 2023 के रोज हुआ।आज वे हमारे बीच नही है ,लेकिन कुराल साहित्य और हरित क्रांति के प्रणेता के रूप में वे हमेशा याद किए जाएंगे।