Washington/Panama City: अमेरिका और चीन के बीच बढ़ते तनाव के बीच पनामा ने एक अहम फैसला लिया है, जिससे ड्रैगन को तगड़ा झटका लगा है। पनामा के राष्ट्रपति जोस राउल मुलिनो ने स्पष्ट कर दिया है कि उनका देश अब चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का हिस्सा नहीं रहेगा। यह फैसला ऐसे समय पर आया है जब अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उनके प्रशासन ने चीन के प्रभाव को लेकर पनामा पर लगातार दबाव बनाया है।
पनामा और चीन: खत्म होता रिश्ता?
पनामा 2017 में चीन के BRI प्रोजेक्ट का हिस्सा बना था, लेकिन अब मुलिनो सरकार ने इसे रिन्यू नहीं करने का निर्णय लिया है। इसका मतलब साफ है कि पनामा अब चीन की इंफ्रास्ट्रक्चर योजनाओं से खुद को दूर कर रहा है और अमेरिका के साथ मिलकर नए निवेश और विकास परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित करेगा।
ट्रंप का दबाव या पनामा का हित?
यह फैसला अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रुबियो की पनामा यात्रा के बाद आया है, जिसमें उन्होंने राष्ट्रपति मुलिनो से मुलाकात की थी। रुबियो ने पनामा को स्पष्ट रूप से चेतावनी दी थी कि उसे नहर पर चीन के प्रभाव को कम करने के लिए तत्काल कदम उठाने होंगे। ट्रंप का भी मानना है कि पनामा नहर में चीन की बढ़ती उपस्थिति 1999 की संधि का उल्लंघन कर सकती है, जिसके तहत अमेरिका ने इस जलमार्ग का नियंत्रण पनामा को सौंपा था।
ट्रंप प्रशासन को यह भी आपत्ति है कि पनामा नहर से गुजरने वाले अमेरिकी जहाजों पर अधिक टैक्स लगाया जाता है, जबकि चीनी जहाजों को छूट मिलती है। इसी को लेकर अमेरिका ने पनामा पर दबाव बनाया, जिसका असर अब इस नए फैसले के रूप में दिख रहा है।
पनामा नहर: क्यों है इतनी अहम?
पनामा नहर दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण समुद्री मार्गों में से एक है। यह 82 किलोमीटर लंबा जलमार्ग अटलांटिक और प्रशांत महासागर को जोड़ता है, जिससे जहाजों का सफर काफी छोटा और सस्ता हो जाता है। इस नहर से हर साल हजारों जहाज गुजरते हैं, जिससे पनामा को अरबों डॉलर की कमाई होती है।
इतिहास में झांके तो फ्रांस ने 1881 में इस नहर का निर्माण शुरू किया था, लेकिन वित्तीय और तकनीकी समस्याओं के कारण यह प्रोजेक्ट अधूरा रह गया। बाद में, अमेरिका ने 1904 में इस पर काम शुरू किया और 1914 में इसे पूरा किया। 1999 तक इस नहर पर अमेरिका का नियंत्रण था, लेकिन बाद में इसे पनामा सरकार को सौंप दिया गया।
क्या यह चीन के लिए बड़ा झटका है?
पनामा के इस फैसले से साफ है कि चीन का प्रभाव अब कमजोर हो रहा है। BRI प्रोजेक्ट को लेकर पहले भी कई देश असंतोष जता चुके हैं, क्योंकि इससे आर्थिक और राजनीतिक रूप से चीन की निर्भरता बढ़ती है। भारत भी इस प्रोजेक्ट का विरोध कर चुका है, क्योंकि यह उसके संप्रभुता हितों के खिलाफ जाता है।
अब सवाल उठता है कि क्या पनामा के बाद अन्य देश भी चीन से दूरी बनाएंगे? क्या अमेरिका का यह दबाव अन्य देशों पर भी असर डालेगा? फिलहाल, पनामा ने एक रणनीतिक कदम उठाया है, जिससे चीन को झटका लगा है और ट्रंप की नीतियों की जीत मानी जा रही है।
यह फैसला पनामा की संप्रभुता और आर्थिक स्वतंत्रता को मजबूत करने वाला है। हालांकि, यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या पनामा अपने आर्थिक हितों की रक्षा कर पाएगा या अमेरिका के प्रभाव में आकर नए समझौते करेगा। चीन के लिए यह संकेत है कि दुनिया अब उसके प्रभाव को लेकर सतर्क हो रही है।
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