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राज्यसभा स्पीकर जगदीप धनखड़ के खिलाफ विपक्ष ने पेश किया अविश्वास प्रस्ताव, संसद में हंगामा

दिल्ली: संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान मंगलवार, 10 दिसंबर को एक महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाक्रम सामने आया। विपक्षी दलों ने राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया। यह प्रस्ताव संसद के सचिवालय में दाखिल किया गया और इसमें कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस (TMC), आम आदमी पार्टी (AAP), समाजवादी पार्टी (SP), द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम (DMK), और राष्ट्रीय जनता दल (RJD) समेत 50 से अधिक सांसदों के हस्ताक्षर शामिल हैं।

विपक्ष ने लंबे समय से जगदीप धनखड़ पर पक्षपाती होने का आरोप लगाया है, उनका कहना है कि वे सिर्फ सरकार के पक्ष में काम करते हैं और विपक्ष के सांसदों द्वारा उठाए गए सवालों को दबाने की कोशिश करते हैं। हाल ही में सोमवार को राज्यसभा में हुए हंगामे ने इस मुद्दे को और हवा दी। बीजेपी सांसदों ने कांग्रेस नेताओं के जॉर्ज सोरोस से संबंधों को लेकर बहस करने की मांग की, जिसे राज्यसभा अध्यक्ष ने खारिज कर दिया था। इसके बावजूद, बीजेपी के सांसदों ने इसे लेकर दबाव बनाए रखा और चर्चा की मांग की।

कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे, प्रमोद तिवारी और जयराम रमेश ने अध्यक्ष धनखड़ की आलोचना की, क्योंकि उन्होंने बीजेपी के सदस्य को इसे लेकर बहस करने की अनुमति दी, जबकि उनके नोटिस को खारिज किया गया था। तृणमूल कांग्रेस की राज्यसभा में उपनेता सागरिका घोष ने कहा, “यह सरकार संसद की हत्या कर रही है। वे डरते हैं क्योंकि उनके पास आम जनता से जुड़े मुद्दों के जवाब नहीं हैं। बीजेपी और सरकार संवैधानिक पदों का दुरुपयोग कर रही है और उन्हें कार्यकारी शक्ति के अधीन कर रही है। यह लड़ाई उन सभी के खिलाफ है जो हमारी संसदीय प्रणाली को नष्ट करना चाहते हैं। हमारे लोकतंत्र की अखंडता दांव पर है।”

क्या उपराष्ट्रपति को हटाया जा सकता है?

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 67 (b), 92 और 100 में उपराष्ट्रपति को हटाने की प्रक्रिया का वर्णन किया गया है। यह प्रक्रिया राज्यसभा में एक प्रस्ताव लाकर शुरू होती है, जिसे वोटिंग के दिन उपस्थित सदस्यों के 50 प्रतिशत और एक के बहुमत से पारित किया जाना चाहिए। अगर यह पारित हो जाता है, तो यह प्रस्ताव लोकसभा में जाएगा, जहां इसे साधारण बहुमत से पास होना आवश्यक होगा।हालांकि, अनुच्छेद 67 (b) के अनुसार, इस तरह का प्रस्ताव तभी लाया जा सकता है जब कम से कम 14 दिन पहले नोटिस दिया गया हो, जिसमें प्रस्ताव लाने का इरादा दर्शाया गया हो। खास बात यह है कि इस समय संसद का सत्र 20 दिसंबर को समाप्त हो रहा है, जिससे समय सीमा भी सीमित है।राज्यसभा में 250 सीटों में से विपक्ष के पास केवल 103 सदस्य हैं, और उन्हें स्वतंत्र सांसद कपिल सिब्बल का समर्थन भी प्राप्त है।

आज, 10 दिसंबर को संसद की कार्यवाही सुबह 11 बजे शुरू हुई, लेकिन लोकसभा में अडाणी-जॉर्ज सोरोस मामले पर तीव्र हंगामे के कारण सदन को पहले 12 बजे तक स्थगित कर दिया गया। इसके बाद भी चर्चा का माहौल गर्म रहा, जिसके चलते स्पीकर ने सदन की कार्यवाही बुधवार तक के लिए स्थगित कर दी। इस बीच, राज्यसभा में भी कार्यवाही बुधवार तक के लिए स्थगित कर दी गई।इस अविश्वास प्रस्ताव के बाद राजनीति में उबाल आ गया है। सरकार और विपक्ष दोनों ही इस मुद्दे को लेकर अपने-अपने रुख को सशक्त रूप से पेश कर रहे हैं। केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजू ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि राहुल गांधी को छोड़कर अन्य सांसदों ने सदन में चर्चा की इच्छा जताई है।

यह घटनाक्रम भारतीय राजनीति में एक नया मोड़ ला सकती है। राज्यसभा के सभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाना एक गंभीर कदम है, जो न केवल संसद के भीतर की राजनीतिक स्थिति को प्रभावित करेगा, बल्कि इससे लोकतंत्र की मजबूत संस्थाओं के प्रति विपक्ष के रवैये को भी स्पष्ट करेगा। अगर विपक्ष अपने आरोपों को सही साबित करने में सफल होता है, तो यह भारतीय राजनीति में एक ऐतिहासिक बदलाव हो सकता है।