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‘वन नेशन, वन इलेक्शन’: क्या इससे खर्च घटेगा या बढ़ेगा? जानें क्या कहते हैं आंकड़ें

देश में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का विचार एक बार फिर चर्चा में है। मोदी सरकार ने लोकसभा, विधानसभाओं और स्थानीय निकाय चुनावों को एक साथ कराने के लिए विधेयक लाने की तैयारी कर ली है। लेकिन सवाल उठता है, क्या इससे चुनावी खर्च घटेगा या बढ़ जाएगा?

एक साथ चुनाव: क्या कहते हैं आंकड़े?

‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ की योजना के अनुसार, पूरे देश में लोकसभा, विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के चुनाव एक साथ कराए जाएंगे। इसके लिए बड़े पैमाने पर नई इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (EVM) और वीवीपैट की जरूरत होगी।

  • कुल ईवीएम की मांग: वर्तमान में देश में 11.8 लाख मतदान केंद्र हैं। अगर लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होते हैं, तो प्रत्येक बूथ पर दो ईवीएम सेट चाहिए होंगे। इसका मतलब है कि 23.6 लाख ईवीएम की जरूरत होगी।
  • खर्च का अनुमान: एक ईवीएम की कीमत करीब ₹34,000 है। इस हिसाब से नई ईवीएम खरीदने पर ₹5000 करोड़ का तत्काल खर्च आएगा। इसके अलावा, 15 साल की अवधि के बाद ईवीएम को बदलने के लिए ₹10,000 करोड़ का खर्च अलग से होगा।

स्थानीय निकाय चुनावों का समीकरण

मोदी सरकार की योजना में स्थानीय निकाय चुनाव भी शामिल हैं।

  • ग्रामीण क्षेत्रों में जरूरत: पंचायत, तालुका पंचायत, और जिला पंचायत के लिए हर बूथ पर 5 ईवीएम चाहिए होंगी।
  • शहरी क्षेत्रों में जरूरत: नगर निगम और नगरपालिका के लिए प्रत्येक बूथ पर 3 ईवीएम की आवश्यकता होगी।

इस अतिरिक्त आवश्यकता को पूरा करने के लिए नई ईवीएम खरीदनी होंगी, जिससे खर्च में और इजाफा होगा।

क्या खर्च घटेगा या बढ़ेगा?

  • 2019 में लोकसभा चुनाव खर्च: ₹7000 करोड़
  • 2024 का अनुमानित खर्च: ₹12,000 करोड़
    ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के तहत चुनावों को एक साथ करने से ईवीएम और वीवीपैट, सुरक्षा, चुनावी स्टाफ, और अन्य संसाधनों की मांग कई गुना बढ़ जाएगी। इससे चुनावी खर्च कम होने की बजाय बढ़ने की संभावना है।

इतिहास पर एक नजर

1967 तक भारत में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होते थे। लेकिन राजनीतिक अस्थिरता के कारण यह परंपरा टूट गई। 1983 में चुनाव आयोग ने एक बार फिर ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ की सिफारिश की थी। इसके बाद 1999 में योजना आयोग ने भी इस पर विचार किया। लेकिन यह विचार ठंडे बस्ते में चला गया।

विपक्ष का रुख

‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ को लागू करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 324 और 325 में संशोधन की आवश्यकता होगी। इसके लिए संसद में दो-तिहाई बहुमत चाहिए। हालांकि, कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस और डीएमके जैसे दलों ने इसका विरोध किया है।

‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के समर्थकों का तर्क है कि इससे देश में चुनावी खर्च और समय की बचत होगी। लेकिन आंकड़े बताते हैं कि चुनावों को एक साथ कराने के लिए ईवीएम और अन्य संसाधनों पर भारी खर्च आएगा। ऐसे में यह योजना वास्तव में खर्च घटाने के बजाय बढ़ाने का कारण बन सकती है।

क्या यह योजना भारत के लिए व्यावहारिक है या यह सिर्फ एक राजनीतिक मुद्दा है? यह बहस आने वाले समय में और तेज होगी।