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Friday, May 9   2:38:13

एक देश-एक चुनाव,लोकतंत्र में क्रांति या नई चुनौती?

पिछले कुछ सालों से चर्चा में रहे “एक देश-एक चुनाव” प्रस्ताव को अब साकार रूप देने की तैयारी तेज हो गई है। केंद्र सरकार ने इस ऐतिहासिक कदम के लिए ठोस पहल करते हुए इस बिल को केंद्रीय कैबिनेट से मंजूरी दिला दी है। सूत्रों के अनुसार, यह बिल अगले हफ्ते संसद में पेश किया जा सकता है। इसके साथ ही, सरकार ने इस मुद्दे पर व्यापक सहमति बनाने के लिए इसे संयुक्त संसदीय समिति (जॉइंट पार्लियामेंट्री कमेटी – JPC) के पास भेजने की योजना बनाई है।

क्या है प्रस्ताव?

“एक देश-एक चुनाव” का मतलब है कि देश में लोकसभा और सभी राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाएं। वर्तमान प्रणाली में अलग-अलग समय पर चुनाव होते हैं, जिससे न केवल समय बल्कि संसाधनों की भी भारी खपत होती है।

सितंबर में कैबिनेट ने इस प्रस्ताव को सैद्धांतिक रूप से स्वीकार कर लिया था। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव के मुताबिक, पहले चरण में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होंगे। इसके बाद 100 दिनों के भीतर शहरी और ग्रामीण निकायों के चुनाव कराए जाएंगे। यह योजना लागू करने के लिए कुछ राज्यों के विधानसभा कार्यकाल में कटौती की जाएगी, जबकि हाल ही में हुए चुनाव वाले राज्यों का कार्यकाल बढ़ाया जा सकता है।

कब तक लागू होगा?

अगर विधि आयोग और सभी राजनीतिक दल इस प्रस्ताव पर सहमत होते हैं, तो यह 2029 तक पूरी तरह लागू हो सकता है। इसके लिए दिसंबर 2026 तक लगभग 25 राज्यों में विधानसभा चुनाव कराने होंगे।

चुनौतियां और संभावनाएं

हालांकि यह प्रस्ताव प्रशासनिक दक्षता और संसाधनों की बचत के लिहाज से फायदेमंद नजर आता है, लेकिन इसके कार्यान्वयन में कई बड़ी चुनौतियां हैं।

  1. संविधानिक संशोधन: यह प्रस्ताव लागू करने के लिए संविधान में कई संशोधन आवश्यक होंगे।
  2. सहमति का अभाव: विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच इस मुद्दे पर सहमति बनाना मुश्किल हो सकता है।
  3. स्थानीय मुद्दों की अनदेखी: एक साथ चुनाव होने पर क्षेत्रीय मुद्दों के दबने का खतरा है।

एक देश-एक चुनाव” का विचार सकारात्मक और दूरदर्शी है। इससे न केवल प्रशासनिक मशीनरी पर दबाव कम होगा, बल्कि बार-बार चुनाव के कारण विकास कार्यों पर लगने वाली रोक भी खत्म होगी। यह जनता के समय और सरकारी खर्च दोनों की बचत करेगा। हालांकि, इसे लागू करने से पहले सभी पक्षों को ध्यान में रखते हुए विस्तृत चर्चा और तैयारी की आवश्यकता है।

देश में लोकतंत्र को सुदृढ़ करने और संसाधनों के अधिक कुशल उपयोग के लिए यह कदम एक नए युग की शुरुआत हो सकता है। लेकिन इसे लागू करने के लिए सभी राजनीतिक दलों के बीच सहमति और सही रणनीति बेहद महत्वपूर्ण होगी।