देश की राजधानी से लेकर राज्यों के कोनों तक आज एक नज़ारा आम रहा—हाथों में बैनर, नारे गूंजते हुए, और कांग्रेस कार्यकर्ताओं की सरकार के खिलाफ हल्ला बोलती आवाजें। वजह है नेशनल हेराल्ड केस में प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा सोनिया गांधी, राहुल गांधी, सैम पित्रोदा और सुमन दुबे के खिलाफ चार्जशीट दायर किया जाना।
कांग्रेस इस पूरे घटनाक्रम को राजनीतिक प्रतिशोध बता रही है, जबकि भाजपा इसे कानून का न्यायिक पालन कह रही है। आइए, इस पूरे मामले की परतें खोलते हैं और समझते हैं कि यह सिर्फ एक कानूनी मामला नहीं, बल्कि देश की राजनीति में कितनी गहराई से धंसी एक कहानी है।
क्या है नेशनल हेराल्ड केस?
यह सिर्फ एक अखबार की कहानी नहीं है, यह उस विरासत की कहानी है जिसे पं. जवाहरलाल नेहरू ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान शुरू किया था। 1938 में स्थापित हुआ “नेशनल हेराल्ड”, AJL (Associated Journals Ltd) के अधीन था, जो ‘नवजीवन’ और ‘कौमी आवाज’ जैसे पत्रों का भी प्रकाशन करता था।
समस्या तब शुरू हुई जब AJL वित्तीय संकट में फंस गया। 2002 से 2011 के बीच कांग्रेस पार्टी ने उसे लगभग ₹90 करोड़ का कर्ज दिया। इसके बाद 2010 में ‘यंग इंडियन लिमिटेड’ नामक कंपनी बनाई गई, जिसमें 76% हिस्सेदारी सोनिया और राहुल गांधी की है। इसी कंपनी ने केवल ₹50 लाख में AJL का अधिग्रहण कर लिया।
ED का दावा है कि इस प्रक्रिया के जरिए गांधी परिवार और कांग्रेस नेताओं ने करीब ₹2000 करोड़ की अचल संपत्तियों पर कब्जा किया—और यह सब मनी लॉन्ड्रिंग की श्रेणी में आता है।ED की चार्जशीट: आरोप और असर
चार्जशीट में सोनिया गांधी को आरोपी नंबर 1 और राहुल गांधी को आरोपी नंबर 2 बनाया गया है। ED के अनुसार, इस अधिग्रहण से कांग्रेस नेताओं ने जनता की संपत्तियों को निजी संपत्ति में बदलने की कोशिश की।
661 करोड़ रुपये की संपत्तियों को पहले ही जब्त किया जा चुका है, और आगे कार्रवाई की तलवार अभी लटकी हुई है।
कांग्रेस का पलटवार: सड़कों पर संग्राम
चार्जशीट के विरोध में कांग्रेस देशभर में सड़कों पर उतर आई। दिल्ली में कांग्रेस मुख्यालय के बाहर प्रदर्शन कर रहे कार्यकर्ताओं को पुलिस ने हिरासत में ले लिया।
कांग्रेस नेता सचिन पायलट बोले:
“यह दुर्भावनापूर्ण और राजनीति से प्रेरित है। सरकार विपक्ष की आवाज़ दबाना चाहती है।”
महाराष्ट्र कांग्रेस प्रमुख ने कहा:
“राहुल गांधी और गांधी परिवार डरने वाले नहीं हैं।”
वहीं, पार्टी महासचिव केसी वेणुगोपाल ने मोदी और शाह को धमकाने का आरोप लगाया और कहा कि यह लोकतंत्र की हत्या है।
BJP का तंज: विक्टिम कार्ड मत खेलो
भाजपा प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने तीखा बयान दिया:
“अब ED का मतलब ‘डकैती और वंशवाद का अधिकार’ नहीं रह गया है। कांग्रेस ने जनता की संपत्ति पर हाथ साफ किया है।”
रवि शंकर प्रसाद ने सवाल उठाया कि कांग्रेस प्रदर्शन कर किस बात का विरोध कर रही है—क्या यह भ्रष्टाचार की ढाल है?
राजनीतिक टाइमिंग और विपक्ष का क्रोनोलॉजी तंज
राहुल गांधी ने हाल ही में गुजरात दौरा किया और पार्टी संगठन को पुनर्जीवित करने की रणनीति पर काम शुरू किया है। कांग्रेस नेता इमरान प्रतापगढ़ी ने आरोप लगाया कि ED की चार्जशीट ठीक उसी समय आई, जब राहुल गुजरात में पार्टी की नई टीम बना रहे थे। उनका कहना है कि यह विपक्ष को कमजोर करने की साजिश है, खासकर आगामी बिहार और असम चुनावों से पहले।
कानून, राजनीति और साख की त्रिकोणीय जंग
यह मामला अब सिर्फ एक कानूनी लड़ाई नहीं रहा—यह गांधी परिवार की विरासत, कांग्रेस की राजनीतिक पूंजी और केंद्र सरकार की साख के बीच टकराव का मैदान बन चुका है।
अगर यह कार्रवाई वास्तव में कानून के दायरे में है तो न्यायालय में सत्य की जीत होगी। लेकिन अगर यह कार्रवाई सचमुच राजनीतिक बदले की है, जैसा कांग्रेस दावा कर रही है, तो यह लोकतंत्र की गंभीर परीक्षा होगी।
एक लोकतंत्र की सबसे बड़ी परीक्षा यही होती है कि वह आलोचना और असहमति को कितनी जगह देता है। सड़कों पर उतरी कांग्रेस और सत्तापक्ष के तंज—दोनों ही यह दर्शाते हैं कि राजनीति अब सिर्फ संसद में नहीं, अदालतों और सड़कों पर भी लड़ी जा रही हैअगला अध्याय?
अब सबकी नजरें 25 अप्रैल को राउज एवेन्यू कोर्ट पर हैं। वहां यह तय होगा कि चार्जशीट पर औपचारिक रूप से संज्ञान लिया जाएगा या नहीं। साथ ही, कोर्ट इस बात पर भी फैसला करेगा कि जब्त संपत्तियों पर सरकार का नियंत्रण बना रहेगा या नहीं।
क्या यह भ्रष्टाचार पर कानून का शिकंजा है या फिर लोकतंत्र पर राजनीतिक शिकंजा?
आपकी राय बताइए। लोकतंत्र में सवाल पूछना भी देशभक्ति है।

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