North Sentinel Island: यह कल्पना करना मुश्किल है कि 21वीं सदी में भी इस दुनिया में इतने सारे लोगों के रहने के बाद भी कोई ऐसी जगह बची हो जो पहुंच से बाहर हो। जहां जाना असंभव हो। बंगाल की खाड़ी में स्थित अंडमान-निकोबार द्वीप समूह का नॉर्थ सेंटिनल आइलैंड उन स्थानों में से एक है जो अब तक पूरी दुनियां के लिए रहस्य बना हुआ है।
नॉर्थ सेंटिनल आइलैंड अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में से एक है जो भारत का ही हिस्सा है। लेकिन, ये भारत का हिस्सा है इसलिए मत सोचिए कि नॉर्थ सेंटिनल आइलैंड पहुंच पाना आसान है।
यह द्वीप स्वदेशी सेंटिनलीज़ लोगों का घर है, जिन्होंने यहां खुद को आईसोलेट करके रखा है, जिनका बाकी दुनिया से कोई लेना-देना नहीं हैं। रिपोर्टें की माने तो यहां लगभग 150 सेंटिनलीज़ निवास करते हैं, लेकिन इसकी पुष्टि या खंडन करने का कोई तरीका नहीं है, क्योंकि इस आयलैंड पर जाने के लिए शोधकर्ताओं को भी अनुमति नहीं है।
यह आइलैंड और इसके निवासी अंडमान और निकोबार द्वीप समूह आदिवासी जनजाति संरक्षण अधिनियम 1956 (उन्नीस सौ छप्पन) के तहत संरक्षित हैं। इस अधिनियम के तहत, द्वीप की किसी भी प्रकार की यात्रा, और समुद्री मील (9.26 किमी) से अधिक करीब जाना सख्त वर्जित है। यह प्रतिबंध दोनों तरफ के लोगों, निवासियों और आने वाले लोगों की सुरक्षा के लिए लगाया गया है। द्वीपवासी किसी भी बाहरी को यहां प्रवेश करने नहीं देते हैं।
आपको बता दें कि ये नॉर्थ सेंटिनल आइलैंड 72 वर्ग किलोमीटर (28 वर्ग मील) के क्षेत्र में फैला हुआ है। आइलैंड पर रहने वाले सेंटिनलिस जनजाति की संख्या लगभग 100 से 500 के बीच है और ये अपनी भाषा बोलते हैं। सेंटिनलिस जनजाति शिकार और मछली पकड़ने पर निर्भर करते है। इन्हें खेती करना नहीं आया या ये इन चीजों से वाकिफ भी नहीं है। इन जनजातियों को आग जलाना नहीं आता है। ये बिजली से गिरने वाली आग को संभाल कर रखते हैं। नॉर्थ सेंटिनल आइलैंड एक अनोखा और रहस्यमय आइलैंड है। जो हमें याद दिलाता है कि दुनिया में अभी भी कुछ जगहें हैं जो बाहरी दुनिया से अलग-थलग हैं।
आप कल्पना कर सकते हैं कि ऐसे लोग भी हैं जिन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं है कि बाकी दुनिया में क्या हो रहा है? टिकटॉक क्या है ? कोविड-19 क्या है? एनएफटी क्या है? ये सेंटिनलीज लोग जिस दुनिया में रहते हैं, उसे हम कभी समझ नहीं पाएंगे; कम से कम हमारे इस जीवन काल में तो नहीं।
लेकिन उनको जानने के लिए कई लोगों द्वारा प्रयास किए गए। 19वीं सदी में जनजाति को समझने के लिए कोशिश की गई लेकिन इसके परिणाम सेंटिनलीज के लिए बेहद दुखद रहा। एक बार एक विदेशी मौरिस विडाल पोर्टमैन द्वारा चार सेंटिनलीज का अपहरण करके इन्हें पोर्ट ब्लेयर लाया गया था। इनमें हमारी बिमारियों से लड़ने के लिए इम्यूनिटी नहीं होती इसलिए इनमें से दो मारे गए और बाकी दो को उनके आयलैंड वापस छोड़ दिया गया।
इसके बाद आइलैंड में जाने के लिए और सेंटिनलीज के साथ बात करने के कई अन्य प्रयास किए गए। सभी प्रयासों को सेंटिनलीज के क्रूर हमलों का सामना करना पड़ा। सेंटिनलीज़ लोगों ने दुनिया को यह बताने का कोई मौका नहीं छोड़ा कि उन्हें एक-दूसरे को जानने में कोई दिलचस्पी नहीं है और वे अकेले रहना चाहते हैं।
हालाँकि, जनवरी 1991 (उन्नीस सौ क्यानबे) में, भारतीय मानवविज्ञान सर्वेक्षण के तत्कालीन निदेशक त्रिलोकनाथ पंडित ने अपने साथियों के साथ सेंटिनलीज़ लोगों के साथ पहला शांतिपूर्ण संपर्क बनाया था। बता दें कि वह बातचीत किसी सार्थक और शैक्षिक परिणाम तक आगे नहीं बढ़ पाई। वे वहां कुछ ही देर रूके थे। इस छोटी यात्रा के दौरान वैज्ञानिक शोधकर्ताओं ने यह पता लगाया कि वे उत्तरी सेंटिनल द्वीप की वनस्पतियों और जीवों के बारे में कितना कम जानते हैं।
इसके बाद 1997 तक आइलैंड की सभी यात्राएं बंद हो गईं। लेकिन, 2006 (दो मछुआरों की मौत) और 2018 (जॉन एलन चाऊ) की कुछ अलग-अलग घटनाओं ने चीजों में हलचल मचा दी। इन लोगों ने अवैध रूप से उत्तरी सेंटिनल द्वीप क्षेत्र में प्रवेश किया था, जिसके बाद द्वीपवासियों ने उनकी बेदर्दी से जान ले ली। आज तक किसी को हत्याओं के लिए दोषि नहीं ठहराया जा सक है और वे करेंगे भी कैसे? आप उन लोगों के समूह को कानून और व्यवस्था कैसे बताएंगे जिनके लिए उनके द्वीप के बाहर कुछ भी मौजूद नहीं है?
यहां संदेश बिल्कुल स्पष्ट है: सेंटिनलीज लोग बाकी दुनिया से कोई लेना-देना नहीं चाहते हैं। बेशक, उन्हें भी निजता का अधिकार है और सभी तर्क यह स्पष्ट करते हैं कि उनकी भलाई के लिए उन्हें ऐसे ही छोड़ दिया जाए।
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