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शादी और रिलेशनशिप को लेकर नितिन गडकरी का विवादित बयान, जानिए क्या है उनका मानना

केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के हालिया बयान ने एक नई बहस छेड़ दी है, जब उन्होंने एक यूट्यूब पॉडकास्ट में समलैंगिक विवाह और लिव इन रिलेशनशिप को लेकर अपने विचार व्यक्त किए। गडकरी ने कहा कि अगर समाज में लिंगानुपात में असंतुलन हुआ और महिलाओं की संख्या पुरुषों से अधिक हो गई, तो पुरुषों को दो पत्नियां रखने की इजाजत देनी पड़ सकती है। साथ ही, उन्होंने लिव इन रिलेशनशिप और समलैंगिक विवाह को समाज के नियमों के खिलाफ बताया और कहा कि यह सामाजिक ढांचे को ध्वस्त कर देगा।

गडकरी की राय पर विवाद

गडकरी का यह बयान खासा विवादित साबित हो रहा है, क्योंकि इसमें उन्होंने न केवल समलैंगिक विवाह को गलत बताया, बल्कि लिव इन रिलेशनशिप को भी समाज विरोधी करार दिया। उनका कहना था कि अगर लोग बच्चों को जन्म देते हैं, तो उन्हें उनकी परवरिश और जिम्मेदारी का भी ठीक से पालन करना चाहिए, वरना यह सामाजिक जिम्मेदारी के खिलाफ है। इसके साथ ही उन्होंने यूरोपीय देशों के उदाहरण का हवाला देते हुए कहा कि वहां पुरुष और महिलाएं शादी में रुचि नहीं रखते और लिव इन रिलेशनशिप को प्राथमिकता देते हैं, जो उनके अनुसार समाज के लिए ठीक नहीं है।

गडकरी के विचार और समाज पर उनका प्रभाव

गडकरी के इस बयान से यह सवाल उठता है कि क्या यह विचारधारा समाज में व्याप्त प्रगति और समानता की दिशा में सही कदम है? जहां एक ओर समाज में समलैंगिक विवाह और लिव इन रिलेशनशिप जैसे मामलों पर बहस चल रही है, वहीं गडकरी का यह बयान पारंपरिक विचारों को और मजबूत करता दिखता है। उन्होंने कहा कि समाज को अपनी जिम्मेदारियों को समझना चाहिए और बच्चों को सही तरीके से पालन-पोषण करना चाहिए। हालांकि, इस दृष्टिकोण से कुछ लोग सहमत हो सकते हैं, लेकिन यह जरूरी नहीं कि यह विचार हर समाज और संस्कृति में समान रूप से स्वीकार्य हो।

क्या गडकरी का बयान भारतीय समाज की वास्तविकता को दर्शाता है?

भारत में पिछले कुछ वर्षों में सामाजिक ढांचे में काफी बदलाव आए हैं। महिलाओं को अधिक अधिकार, स्वतंत्रता और शिक्षा के अवसर मिले हैं। समलैंगिक विवाह, हालांकि भारत में कानूनी रूप से वैध नहीं है, फिर भी एक बढ़ती हुई विचारधारा है, जो समानता की ओर अग्रसर है। इसके विपरीत, गडकरी का बयान पारंपरिक सोच और सामाजिक संरचनाओं के पक्ष में खड़ा दिखाई देता है। क्या यह बयान भारतीय समाज के बदलते दृष्टिकोण के खिलाफ है? यह सवाल विचार करने योग्य है।

नितिन गडकरी का यह बयान एक बार फिर यह साबित करता है कि हमारे देश में प्रगति और पारंपरिकता के बीच लगातार संघर्ष होता रहता है। क्या समाज को अपनी सोच को और अधिक खुला और समावेशी बनाना चाहिए, या क्या यह कहना सही है कि हमें अपनी पारंपरिक जड़ों को बनाए रखना चाहिए? गडकरी के बयान ने इस मुद्दे पर विचार करने का अवसर दिया है।

हालांकि गडकरी का उद्देश्य समाज के पारंपरिक मूल्य और परिवार की अहमियत को बनाए रखना हो सकता है, लेकिन यह समझना जरूरी है कि हर व्यक्ति को अपनी पसंद और जीवन जीने का अधिकार है। समलैंगिक विवाह और लिव इन रिलेशनशिप को लेकर समाज में विविधताएं हो सकती हैं, लेकिन इन्हें गलत ठहराना समाज के विकास और समानता के सिद्धांतों के खिलाफ है।