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Wednesday, January 22   3:55:00

अंबेडकर को कैबिनेट में नहीं चाहते थे नेहरू… इतिहास के चैप्टर का एक और अध्याय

यदि आपसे कोई पूछे कि क्या भाई आजकल तुम्हारे देश में क्या चल रहा है तो आपका जवाब शायद यही हो जो इस वक्त सोशल मीडिया में हॉट टॉपिक बना हुआ है। हाल ही में डॉ. भीमराव अंबेडकर पर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के बयान को लेकर देशभर में राजनीतिक बहस छिड़ गई है। कांग्रेस, टीएमसी समेत कई विपक्षी पार्टियों ने इस बयान की निंदा करते हुए गृह मंत्री के इस्तीफे की मांग की है।

चलिए पहले इस पर नजर डाल लेते हैं जहां से अंबेडकर के नाम पर ये पूरी रामायण की शुरुआत होती है। दरअसल राज्य सभा में देश के गृह मंत्री ने कहा था, ‘मान्यवर, अभी एक फैशन हो गया है- ‘अंबेडकर, अंबेडकर, अंबेडकर, अंबेडकर। इतना नाम अगर भगवान का लेते तो सात जन्मों में स्वर्ग मिल जाता।’ ये शब्द गृह मंत्री अमित शाह ने देश के सदन में कहे हैं। इस वक्तव्य को किसी प्रकार से तोड़ा- मरोड़ा नहीं गया है। इस वक्तव्य का साक्ष्य राज्य सभा की वेबसाइट पर है।

इसके बाद विपक्षी दल लगातार अमित शाह के इस्तीफे की मांग कर रही है। लेकिन, हममे से कई लोगों को बाबा साहेब अंबेडकर के पहली कैबिनेट में शामिल होने की दास्तान के बारे में शायद ही पता हो। तो चलिए पहले हम थोड़ा इतिहास टटोल लेते हैं।

यदि हम देश की सबसे पहली पार्टी कांग्रेस की बात करें तो इन्होंने अंबेडकर का अपमान आजादी के बाद आते ही शुरू कर दिया था। अभी तक आप यहीं सुनते आए हैं कि नहरू ने देश की पहली सरकार में अंबेडकर को कानून मंत्री बनाया, लेकिन ये काम नहरू ने खुद से नहीं किया था। बल्कि महात्मा गांधी के कहने पर किया था और यदि यह सुझाव महात्मा गांधी न देते तो शायद नहरू अंबेडकर को कानून मंत्री भी न बनाते।

आप जो ऊपर तस्वीर देख रहे हैं वह देश के पहले कैबिनेट की तस्वीर है, जिसमें डॉ भिमराव अंबेडकर और श्यामालाल मुखर्जी भी बैठे हुए दिख रहे हैं। यह दोनों ही कांग्रेस पार्टी के सदस्य नहीं थे। लेकिन, महात्मा गांधी के दखल देने के बाद उन्हें केबिनेट में जगह मिली थी। 1947 में महात्मा गांधी ने ये सलाह दी थी कि नहरू के कैबिनेट में दूसरे लोकप्रिय नेताओं को भी जगह दी जाए। इसलिए यदि महात्मा गांधी ने होते तो इस तस्वीर में न अंबेडकर नजर आते न ही श्यामालाल मुखर्जी।

जो लोग आज संविधान और अंबेडकर के नाम पर रोटियां सेंक रहे हैं वह ऐसे लोग हैं जिन्होंने अंबेडकर को अपनी कैबिनेट के लायक तक नहीं समझा था। इतना ही नहीं इन नेतागणों में कुछ ऐसे भी दिग्गज हैं जो कहते हैं कि भारत का संविधान अंबेडकर ने नहीं बल्कि नेहरू ने दिया है। ये लोगों ने हमेशा नहरू को अंबेडकर से ज्यादा बताने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

बात ज्यादा पुरानी नहीं है यदि थोड़ी सी धूल हटाकर देखा जाए तो इसी साल इंडियन ओवरसीज कांग्रेस के प्रमुख सैम पित्रोदा ने अंबेडकर पर बेहत आपत्ति जनक बात लिखी थी। 26 जनवरी, 2024 को किए गए पोस्ट में सैम पित्रोदा ने लिखा था, संविधान को बनाने में सबसे ज्यादा सहयोग किसका था? नेहरू का, ना कि आंबेडकर का। उन्होंने आगे लिखा कि बाबासाहब का दिया हुआ संविधान…डॉ आंबेडकर भारतीय संविधान के पिता था, ये भारतीय आधुनिक इतिहास का सबसे बड़ा झूठ है।

अब जहां भाजपा के खिलाफ आंबेडकर को लेकर गर्म रोटियां सेंकी जा रही हैं वहीं कांग्रेस पार्टी खुद अपने गिरहबान में छांक कर नहीं देख रही।

अंबेडकर के प्रति कांग्रेस की सोच का अब एक और उदाहरण आपकों बताते हैं। बाबा साहेब के निधन के बाद भी कई सालों तक संसद भवन में उनका पोर्ट्रेट नहीं लगाया गया। 1990 में जाकर, देश के संविधान निर्माता को वह सम्मान मिला जो उन्हें दशकों पहले मिलना चाहिए था।

आज बाबा साहेब अंबेडकर के नाम पर राजनीति गर्म है। विपक्ष भाजपा पर अंबेडकर के आदर्शों की अनदेखी का आरोप लगा रहा है, जबकि कांग्रेस अपने इतिहास में झांकने से कतरा रही है। अंबेडकर के विचार और उनके योगदान को समझने के लिए हमें राजनीति से ऊपर उठकर उनके संघर्ष और उनके काम की सराहना करनी चाहिए। यह बहस न केवल अतीत की परतें खोलती है, बल्कि यह भी बताती है कि हमें इतिहास को सही संदर्भों में समझने की आवश्यकता है।

इस पूरे राजनीतिक अफरा-तफरी के बीच आपके क्या विचार है आप हमें कमंट करके जरूर बताएं।