छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में शनिवार सुबह पुलिस और नक्सलियों के बीच हुई भीषण मुठभेड़ में सुरक्षाबलों ने 16 नक्सलियों को मार गिराया। डीआरजी (डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड) और सीआरपीएफ के 500-600 जवानों ने इस ऑपरेशन को अंजाम दिया। घटना केरलापाल थाना क्षेत्र के उपमपल्ली इलाके की है।
ऑपरेशन की सफलता और बरामदगी
सुकमा-दंतेवाड़ा सीमा पर हुए इस एनकाउंटर में डीआईजी कमलोचन कश्यप ने बताया कि अब तक 16 नक्सलियों के शव बरामद किए जा चुके हैं। सुरक्षाबलों को घटनास्थल से इंसास और एसएलआर जैसे अत्याधुनिक हथियार भी मिले हैं। मारे गए नक्सलियों में बड़े कैडर्स भी शामिल हैं, जिनकी पहचान की जा रही है।
जवानों की बहादुरी
इस मुठभेड़ में डीआरजी के दो जवान भी घायल हुए हैं, लेकिन वे खतरे से बाहर हैं। उनके साहस और कुशल रणनीति के चलते नक्सलियों को भारी नुकसान उठाना पड़ा। घायल जवानों को बेहतर इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
नक्सलवाद के खिलाफ निर्णायक लड़ाई
छत्तीसगढ़ में इस साल अब तक 100 से अधिक नक्सली मारे जा चुके हैं, जिनमें से 49 नक्सलियों को मार्च के महीने में ही ढेर किया गया है। यह ऑपरेशन नक्सलवाद के खात्मे की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो रहा है। 20 मार्च को भी राज्य में दो अलग-अलग मुठभेड़ों में 30 नक्सली मारे गए थे।
शाह का संकल्प: 2026 तक नक्सलवाद का अंत
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पहले ही घोषणा कर दी है कि 31 मार्च 2026 तक देश से नक्सलवाद का पूरी तरह खात्मा कर दिया जाएगा। इस डेडलाइन के बाद सुरक्षाबलों ने बस्तर और आसपास के इलाकों में नक्सल विरोधी अभियान तेज कर दिए हैं।
नक्सलवाद के खिलाफ सामूहिक संकल्प जरूरी
नक्सलवाद के खिलाफ सुरक्षाबलों की यह कार्रवाई सराहनीय है। नक्सल प्रभावित इलाकों में जवानों की इस तरह की सफलताएं यह साबित करती हैं कि नक्सलवाद का अंत अब दूर नहीं है। हालांकि, सिर्फ सैन्य कार्रवाई ही काफी नहीं है। प्रभावित क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसे बुनियादी सुविधाओं की पहुंच भी सुनिश्चित करनी होगी।
इसके अलावा, स्थानीय लोगों को जागरूक करने और नक्सल विचारधारा के प्रभाव को कम करने के लिए सरकार को सामाजिक और आर्थिक विकास योजनाओं को प्रभावी तरीके से लागू करना होगा। जब तक आम जनता नक्सलियों का समर्थन करना बंद नहीं करती, तब तक इस समस्या को पूरी तरह समाप्त करना चुनौतीपूर्ण रहेगा।
सुकमा का यह ऑपरेशन सुरक्षाबलों के अदम्य साहस और नक्सलवाद के खिलाफ सरकार की प्रतिबद्धता का प्रतीक है। यह मुठभेड़ न केवल आतंक के खिलाफ एक बड़ी जीत है, बल्कि उन जवानों को भी श्रद्धांजलि है जो देश की सुरक्षा के लिए अपने प्राणों की बाजी लगाने से पीछे नहीं हटते।

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