नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी ने लोकसभा चुनाव में भारी जीत की उम्मीद की थी, हालांकि नतीजे ये बता रहे हैं कि ‘ब्रांड मोदी’ को झटका लगा है। पिछले लोकसभा चुनाव के मुक़ाबले कम हुई सीटों के बावजूद मोदी को मिली तीसरी जीत का असर भारत के लिए वैश्विक मंच पर कैसा होगा?
ब्रिटेन स्थित थिंक टैंक चैटम हाउस में दक्षिण एशिया के सीनियर रिसर्च फेलो डॉक्टर क्षितिज बाजपेयी कहते हैं, “विदेश नीति के मोर्चे पर चाहे वो मजबूत जनादेश से आएं या कमज़ोर से, भारत को निवेश के लिए आकर्षक स्थान बनाने की प्राथमिकता का अपना लक्ष्य वो हासिल करेंगे।”
कुछ जानकार ये मानते हैं कि मोदी की विदेश नीति और अधिक मजबूत हो सकती है,ये हिंदुत्व की उनकी मूल विचारधारा के ईर्द-गिर्द घूमेगी,लेकिन कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस में सीनियर फेलो ओर दक्षिण एशिया कार्यकम के डायरेक्टर मिलन वैष्णव इससे सहमत नहीं हैं।
वो कहते हैं, “मुझे उम्मीद नहीं है कि एनडीए के तीसरे कार्यकाल में विदेश नीति में कोई खास बदलाव आएगा क्योंकि हम जो राजनीतिक बदलाव देख रहे हैं, वो स्ट्रक्चरल हैं,यही बदलाव भारत को अपनी ताक़त बढ़ाने में मदद कर रहे हैं। कमज़ोर होते अमेरिका, विस्तारवादी चीन और ‘विद्रोही’ रूस सामूहिक रूप से ग्लोबल सिनेरियो पर भारत की सेंटर भूमिका को बढ़ाते हैं।”विश्लेषकों का कहना है कि मोदी जानते हैं कि वैश्विक मंच पर देश की लोकतांत्रिक साख के बारे में बात किए बिना वो अपनी वैश्विक महत्वकांक्षाओं को हासिल नहीं कर सकते। ठीक एक साल पहले जब नरेंद्र मोदी अमेरिका के ऐतिहासिक राजकीय दौरे पर थे, तो 70 से अधिक सांसदों ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन को पत्र लिखा था।इस पत्र में आग्रह किया गया था कि बाइडन, मोदी से भारत में लोकतंत्र की गिरावट और प्रेस की आज़ादी के सिकुड़ने पर चिंता व्यक्त करें। हालांकि, सार्वजनिक तौर पर मोदी का स्वागत एक नायक जैसा हुआ था,इससे भी अहम बात ये है कि मोदी ने गर्व के साथ भारत की लोकतांत्रिक साख के बारे में बताते हुए भारत को ”लोकतंत्र की जननी” भी कहा था, यानी विश्व मंच पर भी लोकतंत्र की साख बचाना तीसरे कार्यकाल में मोदी के लिए बड़ी चुनौती होगा।
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