Muharram: मोहर्रम इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना है। यह शिया मुसलमानों के लिए सबसे पवित्र महीना माना जाता है और इसे इमाम हुसैन की शहादत की याद में मनाया जाता है।
680 ईस्वी में, इमाम हुसैन, पैगंबर मोहम्मद के पोते और चौथे खलीफा अली के बेटे, ने उमय्यद खलीफा यज़ीद I के अन्यायपूर्ण शासन के खिलाफ विद्रोह कर दिया था।
कर्बला की लड़ाई:
हुसैन और उनके अनुयायियों को कर्बला (इराक) के मैदान में यज़ीद की सेना ने घेर लिया था।
72 लोगों के एक छोटे समूह के साथ, हुसैन ने तीन दिनों तक लड़ाई लड़ी, 10 अक्टूबर 680 को शहीद हो गए।
मोहर्रम का महत्व:
मोहर्रम इमाम हुसैन के बलिदान और न्याय, समानता और स्वतंत्रता के लिए उनके संघर्ष को याद करने का समय है। यह शोक, स्मरण और आत्म-प्रतिबिंब का महीना है।
शिया मुसलमान इस महीने को विभिन्न तरीकों से मनाते हैं, जिनमें शामिल हैं:
मातम: वे इमाम हुसैन और उनके अनुयायियों की शहादत पर शोक मनाते हैं, सीना पीटते हैं और मातम मनाते हैं।
तैजिया जुलूस: वे इमाम हुसैन के जीवन और शहादत को दर्शाने वाले ताजिया नामक सजाए गए मंदिरों का जुलूस निकालते हैं।
मजलिस: वे इमाम हुसैन के जीवन और शिक्षाओं पर धार्मिक व्याख्यान सुनते हैं।
दान: वे जरूरतमंदों को भोजन और अन्य सहायता दान करते हैं।
मोहर्रम सिर्फ शिया मुसलमानों के लिए ही नहीं, बल्कि सभी लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर है कि वे न्याय, करुणा और बलिदान के मूल्यों पर विचार करें। यह महीना हमें सिखाता है कि हमेशा सही काम करने के लिए खड़े होना चाहिए, भले ही इसका मतलब बड़ी कीमत चुकानी पड़े।
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