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मिट्टी के घरों और पर्यावरण-हितैषी जीवनशैली को मिलेगी विशेष पहचान, ये गांव बनेगा पर्यटन का आदर्श

मिट्टी के घरों में मेहमाननवाजी: केंद्र सरकार का पर्यटन मंत्रालय 2024 के सर्वश्रेष्ठ पर्यटन गांवों की योजना पर काम कर रहा है, और इस पुरस्कार की घोषणा 27 सितंबर को विश्व पर्यटन दिवस के अवसर पर दिल्ली में की जाएगी। इस सूची में ओडिशा का देवमाली गांव लगभग तय है, जो अपनी मिट्टी के घरों और मांस तथा शराब के सेवन से परहेज के लिए प्रसिद्ध है। ग्रामीण पर्यटन को बढ़ावा देने की दिशा में यह एक अहम कदम है।

पिछले साल पर्यटन मंत्रालय ने ग्रामीण क्षेत्रों में पर्यटन को प्रोत्साहित करने के लिए कुछ गांवों को चुना था, जिनमें राजस्थान के मेनार और नौरंगाबाद, मध्य प्रदेश के मदला और खोकड़ा, और छत्तीसगढ़ के सरोधैधर शामिल थे। इनमें से तीन गांवों ने समृद्धि पाई, लेकिन दो गांवों की स्थिति में कोई खास सुधार नहीं हुआ।

गांवों में होम स्टे से रोजगार का सृजन:

मध्य प्रदेश के पन्ना और संजय टाइगर रिजर्व के गांवों में पर्यटकों के लिए होम स्टे बनाए गए हैं, जिससे ग्रामीणों को रोजगार मिल रहा है। मदला गांव में 450 में से 300 परिवार पर्यटन से जुड़े हैं। यहां 78 युवा गाइड, 110 सफारी वाहन, और 9 होम स्टे हैं, जिनमें जैविक सब्जियों और मल्टी-ग्रेन अनाज से बने भोजन की व्यवस्था होती है।

खोकड़ा गांव, जो संजय टाइगर रिजर्व के बफर जोन में है, में 7 होम स्टे हैं, जो साल में लगभग 150 दिनों के लिए बुक होते हैं। यहां के आदिवासी परिवारों की सालाना आय 2 से 2.4 लाख रुपये तक हो जाती है। 10 साल पहले यहां मात्र 10 पर्यटक आते थे, जबकि अब 6300 से अधिक पर्यटक सालाना आते हैं, जिससे गांव के निवासियों का जीवनस्तर भी बेहतर हुआ है।

कुछ गांवों में प्रगति, कुछ में निराशा:

राजस्थान के नौरंगाबाद में, 13,000 की जनसंख्या वाले करौली गांव में सालाना 55,000 पर्यटक आते हैं, जिससे गांव में 250 से अधिक दुकानें खुली हैं। मेनार, जिसे ‘पिष्टिगाम’ (पक्षी गांव) कहा जाता है, में भी 20,000 पर्यटक आते हैं, लेकिन वहां के निवासियों की आर्थिक स्थिति में कोई खास बदलाव नहीं आया है।

छत्तीसगढ़ के सरोधैधर गांव में 1 लाख से अधिक पर्यटक आते हैं, लेकिन वहां भी स्थिति जस की तस बनी हुई है। इन गांवों में समृद्धि और विकास की संभावना तो है, परंतु लाभ सभी तक नहीं पहुंच पा रहा है।

ग्रामीण पर्यटन को बढ़ावा देकर न केवल स्थानीय अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाया जा सकता है, बल्कि गांवों से हो रहे पलायन को भी रोका जा सकता है। परंतु, यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि पर्यटन से होने वाला लाभ सीधे स्थानीय लोगों तक पहुंचे। होम स्टे या सफारी जैसे व्यवसायों को बढ़ावा देने के साथ-साथ ग्रामीण समुदायों को सशक्त बनाना भी जरूरी है, ताकि वे अपने विकास में सक्रिय भागीदार बन सकें।

अगर सही नीतियां और योजनाएं लागू की जाएं, तो न केवल पर्यटन से गांवों का आर्थिक विकास होगा, बल्कि वहां के निवासियों का जीवनस्तर भी सुधरेगा। यही हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए कि गांवों की समृद्धि की कहानियां सुनाई दें और वहां के निवासी भी खुशहाल जीवन जी सकें।