पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना की मातृभाषा गुजराती थी, लेकिन आज उनके ही देश में गुजराती को जीवित रखने के लिए आंदोलन की जरूरत पड़ रही है। एक समय था जब कराची में कच्छी और गुजराती भाषाओं का दबदबा था, लेकिन वर्तमान में जनगणना और सर्वेक्षण फॉर्म में गुजराती भाषा को शामिल करने के लिए लोग सड़कों पर उतर आए हैं। गुजराती भाषी समुदाय का आरोप है कि पाकिस्तानी सरकार केवल उर्दू और अंग्रेज़ी को बढ़ावा दे रही है।
आज पाकिस्तान में गुजराती भाषा में केवल दो अखबार प्रकाशित होते हैं, जिनके पाठकों की संख्या लगातार घट रही है। गुजराती यहां के व्यापारी समुदाय की मातृभाषा है, लेकिन 1992 में इसे स्कूल पाठ्यक्रम से हटा दिया गया था। अब स्थिति यह है कि गुजराती केवल बोली जाती है, लेकिन इसे लिखने के लिए उर्दू या अरबी लिपि का इस्तेमाल किया जाता है। गुजराती लिपि का उपयोग धीरे-धीरे खत्म होता जा रहा है।
पहले कराची में तीन गुजराती अखबार प्रकाशित होते थे – डॉन गुजराती, वतन, और मिल्लत। इनमें से डॉन अखबार, जिसकी स्थापना मोहम्मद अली जिन्ना ने की थी, की एक गुजराती संस्करण भी था। लेकिन अब गुजराती अखबार लगभग लुप्त हो चुके हैं।
गुजराती बोलने वाले समुदाय
कराची के सक्रिय व्यापारी समुदाय, जिसमें वोहरा, ईस्माइली, पारसी और मेमन जैसे समूह शामिल हैं, अभी भी गुजराती बोलते हैं। हालांकि, इनमें से अधिकांश समुदाय गुजराती लिखने के लिए अरबी या उर्दू लिपि का प्रयोग करते हैं। यह गुजराती लिपि के धीरे-धीरे खत्म होने का संकेत है।
डॉन अखबार में गुजराती भाषा की स्थिति पर चिंता
पाकिस्तान के प्रसिद्ध अखबार डॉन में रऊफ पारिक द्वारा लिखे गए एक लेख में गुजराती भाषा की गिरती स्थिति पर प्रकाश डाला गया। लेख में कहा गया है कि गुजराती भाषा का पाकिस्तान में भविष्य अनिश्चित है। जहां भारत में गुजराती एक जीवंत और समृद्ध भाषा है, वहीं पाकिस्तान में इसे मातृभाषा के रूप में बोलने वाले समुदाय की उपेक्षा के कारण यह संकट में है।
पाकिस्तान की नेशनल डेटाबेस एंड रजिस्ट्रेशन अथॉरिटी (NADRA) द्वारा हाल ही में गुजराती को “मातृभाषा” कॉलम से हटा दिया गया है। यह निर्णय गुजराती भाषा की स्थिति को और कमजोर करता है।
गुजराती भाषा को बचाने की जरूरत
पाकिस्तान में गुजराती भाषा के अस्तित्व को बचाने के लिए बड़े प्रयासों की आवश्यकता है। यह भाषा न केवल पाकिस्तान की सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है, बल्कि मोहम्मद अली जिन्ना की मातृभाषा होने के कारण ऐतिहासिक महत्व भी रखती है। अगर सरकार और गुजराती बोलने वाले समुदाय ने इसे संरक्षित करने के लिए कदम नहीं उठाए, तो यह भाषा इतिहास के पन्नों में दबी रह जाएगी।
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