“जब बेटा जेल गया, तो भीख मांगनी पड़ी” इन शब्दों ने समाज की उस कड़वी सच्चाई को उजागर कर दिया है, जिससे हम अक्सर मुंह मोड़ लेते हैं। यह कहानी है एक मां की जिसने अपने बेटे की रिहाई के लिए ना सिर्फ दर-दर की ठोकरें खाईं, बल्कि पेट पालने के लिए भीख तक मांगनी पड़ी।
दिल को छू जाने वाला मामला दिल्ली की अदालत में जब यह मां पहुंची, तो उसके चेहरे पर थकान नहीं, बल्कि उम्मीद की एक झलक थी। उसने कोर्ट में रोते हुए कहा, “बेटा जेल चला गया तो रोटी के लाले पड़ गए… लोगों से मदद मांगनी पड़ी।”
इस मां की आवाज़ में दर्द था, मजबूरी थी, लेकिन साथ ही एक अटूट प्रेम भी था जो हर मां के दिल में अपने बेटे के लिए होता है।
कोर्ट की प्रतिक्रिया -:
उनके बेटे मारुफ शाहबुद्दीन की सजा के पहल में कोर्ट ने एक मां की हालत देखकर गंभीरता दिखाई और पूरे मामले की फिर से जांच का आदेश दिया। यह उस इंसाफ की झलक है जो अब भी कहीं-कहीं बाकी है।
पारिवारिक संघर्ष और सामाजिक सवाल
इस रिपोर्ट ने सिर्फ एक मां-बेटे की कहानी नहीं बताई, बल्कि उन लाखों परिवारों की पीड़ा को उजागर किया है, जो कानूनी पचड़ों में फंसकर टूट जाते हैं। सवाल ये उठता है कि क्या हमारा सिस्टम इतना मजबूत है कि हर गरीब को न्याय दिला सके?
यह रिपोर्ट न सिर्फ एक खबर है, बल्कि एक आईना है—जो हमें हमारी व्यवस्था, गरीबी और इंसानियत के बदलते स्वरूप को दिखाती है। मां की आंखों में झलकते आंसू हमें याद दिलाते हैं कि इंसाफ सिर्फ अदालतों में नहीं, दिलों में भी होना चाहिए।

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