केंद्र सरकार ने देश में जातिगत जनगणना कराने का ऐतिहासिक फैसला लिया है। यह फैसला हाल ही में हुई केंद्रीय कैबिनेट बैठक में लिया गया, जिसकी जानकारी केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने दी। उन्होंने बताया कि यह जनगणना मूल जनगणना प्रक्रिया का ही हिस्सा होगी और इसे सितंबर 2025 से शुरू किया जा सकता है, जिसकी प्रक्रिया एक साल तक चलेगी। इसके आंकड़े 2026 के अंत या 2027 की शुरुआत तक सामने आ सकते हैं।
गौरतलब है कि वर्ष 2021 में होने वाली जनगणना कोविड-19 महामारी के चलते टाल दी गई थी। भारत में जनगणना आमतौर पर हर 10 साल में होती है, और पिछली जनगणना 2011 में की गई थी।
जातिगत जनगणना पर राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
जातिगत जनगणना को लेकर राजनीतिक दलों की राय बंटी रही है:
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विपक्षी दलों—जैसे कांग्रेस, RJD, SP, BSP, NCP और BJD—ने लंबे समय से जातिगत जनगणना की मांग की है।
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राहुल गांधी ने हाल ही में अमेरिका दौरे के दौरान इसे सामाजिक न्याय का अहम कदम बताया।
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वहीं, TMC का इस पर अब तक स्पष्ट रुख सामने नहीं आया है।
इसके विपरीत, एनडीए सरकार और भाजपा पहले इस तरह की जनगणना के खिलाफ थीं। भाजपा ने आरोप लगाया था कि विपक्ष देश को जाति के आधार पर बांटना चाहता है। हालांकि, बिहार में भाजपा ने जातिगत जनगणना का समर्थन किया था, और अक्टूबर 2023 में बिहार पहला राज्य बना जिसने जातिगत जनगणना के आंकड़े सार्वजनिक किए।
सरकार का पक्ष: ऐतिहासिक अन्याय की पहचान और समाधान की ओर कदम
केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि 1947 के बाद से अब तक जातिगत जनगणना नहीं हुई है और कांग्रेस ने हमेशा इसका विरोध किया। उन्होंने बताया कि 2010 में तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने इसे कैबिनेट में विचारार्थ रखने की बात कही थी, लेकिन कांग्रेस सरकार ने इसे लागू नहीं किया।
प्रमुख नेताओं की प्रतिक्रियाएं:
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चिराग पासवान: “देशहित में अहम फैसला है। समावेशी विकास का रास्ता खुलेगा।”
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लालू यादव: “हमें जातिवादी कहने वालों को करारा जवाब मिला है।”
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तेजस्वी यादव: “यह हमारी जीत है, सरकार को हमारी बात माननी पड़ी।”
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कांग्रेस नेता उदित राज: “यह कांग्रेस की विचारधारा की जीत है।”
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केशव प्रसाद मौर्य (भाजपा): “कांग्रेस केवल दिखावा करती रही, जबकि मोदी सरकार ने कर दिखाया।”
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नित्यानंद राय: “यह फैसला दिखाता है कि सरकार सामाजिक विकास के लिए प्रतिबद्ध है।”
जातिगत जनगणना का फैसला देश के सामाजिक-आर्थिक ताने-बाने को समझने के लिए बेहद जरूरी और ऐतिहासिक कदम है। यह न केवल वंचित वर्गों की वास्तविक स्थिति सामने लाएगा, बल्कि नीतियों को आधार और आंकड़ों पर आधारित बनाने में भी मदद करेगा। हालांकि, यह भी ध्यान रखना होगा कि इस प्रक्रिया को राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल न किया जाए। सरकार की जवाबदेही होगी कि यह जनगणना पारदर्शिता, निष्पक्षता और वैज्ञानिक पद्धति से की जाए।
यह पहल, अगर सही तरीके से लागू होती है, तो समावेशी विकास और सामाजिक न्याय की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकती है।

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