20-06-2023, Tuesday
ओरिस्सा के जगन्नाथ पुरी में स्थित भगवान जगन्नाथ जी का मंदिर अपने आप में एक अनूठा मंदिर है ।यह मंदिर अनेकों चमत्कार और रहस्य अपने-आप में समेटे हुए हैं।
आज अषाढ़ मास की पवित्र दूज है।आज ही के दिन हर साल ओडिसा के जगन्नाथ पुरी के जगन्नाथ जी मंदिर से भगवान जगन्नाथ जी बहन सुभद्रा, और भाई बलराम को लेकर नगर यात्रा को निकलते हैं। बहन सुभद्रा की इच्छा के चलते भगवान नगर चर्या को निकलते हैं।इन भव्य दर्शनों के लिए लाखों की संख्या में भाविक भक्त उमड़ पड़ते है।
आज हम बात कर रहे है, मंदिर से जुड़े रहस्यों और चमत्कारों की। जगन्नाथ जी मंदिर एक अलौकिक पौराणिक मंदिर है ,जिसे पृथ्वी का बैकुंठ स्वरूप कहा जाता है । BC 2 में राजा इंद्रद्युम्न ने इस मंदिर का निर्माण किया। इस मंदिर के प्राचीन सुबूत महाभारत के वनपर्व में मिलते है। आज जो मंदिर है, इसका निर्माण सातवीं सदी में हुआ ।कहा जाता है कि समुद्र ने इस मंदिर को तीन बार तोड़ा। 1176 में उड़ीसा के राजा अनंग भीमदेव ने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। ब्रह्मपुराण और स्कंद पुराण के अनुसार भगवान विष्णु ने यहीं पर पुरुषोत्तम नीलमाधव के रूप में अवतार लिया था। वह साबर जाति के सर्वोच्च देव थे ।बाद में नीलमाधव श्रीहरि के आठवें अवतार श्री कृष्ण को पूजा जाने लगा। यहां पर पुरुषोत्तम हरि को भगवान राम के स्वरूप में भी माना जाता है। एक कथा अनुसार भगवान राम ने विभीषण को यहां पूजा अर्चना करने कहा था, तब से लेकर आज तक यहां पर श्री मंदिर में विभीषण वंदना की परंपरा चालू है। इस मंदिर की सुरक्षा शिव जी और हनुमान जी करते हैं। भगवान जगन्नाथ जी चाहे तो राजा को रंकऔर रंक को राजा बना सकते हैं। विश्व का यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां पर भगवान जगन्नाथ जी भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ विराजमान है। और इनकी मूर्तियां कास्ट की बनी हुई ,अधूरी मूर्तियां है। यह मंदिर भारत का सबसे भव्य और सबसे ऊंचा मंदिर है। इसकी ऊंचाई 214 फीट है। मंदिर के शिखर पर हवा में लहराता ध्वज हवा की विरुद्ध दिशा में लहराता है।इस ध्वज पर शिवजी का चंद्र बना है। शिखर पर स्थित निलचक्र के नाम से प्रसिद्ध सुदर्शन चक्र को पुरी में किसी भी दिशा से आप देखेंगे तो वह हमेशा आपकी ओर ही दिखेगा। यह निलचक्र अष्ट धातु से बना शुभ और पवित्र माना जाने वाला सुदर्शन चक्र है। इस मंदिर के शिखर की परछाई ही नही बनती। मंदिर के ऊपर से कोई पक्षी या हवाई जहाज नहीं गुजर सकता ।मंदिर के प्रांगण में भी कभी कोई पक्षी नजर नहीं आता।
इस मंदिर में प्रतिदिन 20,000 लोगों के लिए प्रसाद बनाया जाता है ,और त्योहार के दिन 50,000 लोगों के लिए प्रसाद बनता है। लेकिन इस मंदिर की विशेषता यह है कि लाखों
लोग भी अगर आते हैं मंदिर में तो प्रसाद कभी भी कम नहीं पड़ता। सभी प्रसाद लेकर ही जाते हैं। वही प्रसाद बनाने के लिए सात बर्तन को एक के ऊपर एक रखा जाता है। लेकिन सबसे ऊपर के बर्तन में रखी सामग्री सबसे पहले पकती है, और सबसे नीचे रखे गए बर्तन की सामग्री सबसे आखिर में पकती है। मंदिर के सिंह द्वार से प्रवेश करते ही समंदर का शोर बिल्कुल ही सुनाई नहीं पड़ता। मंदिर का एक द्वार स्वर्ग द्वार कहा जाता है, जहां श्मशान है।मानवदेह के जलने की बू मंदिर में नहीं आती। 12 साल में एक बार प्रतिमा का शरीर बदला जाता है, उस समय प्रतिमा में धड़कते दिल को पुजारी महसूस कर सकते हैं।यह क्रिया आंखो पर पट्टी बांध कर की जाती है।कोई भी यह क्रिया नहीं देख सकता।
कहा जाता है कि जब समंदर ने मंदिर को तीन बार तोड़ा तो भगवान जगन्नाथ जी ने हनुमानजी को समंदर को नियंत्रित रखने के काम सौंपा। परंतु जैसे ही हनुमानजी भगवान के दर्शनों के लिए शहर में जाते थे ,तो पीछे-पीछे समंदर भी आता था। इससे परेशान होकर भगवान जगन्नाथ जी ने हनुमान जी को सोने की जंजीरों से जकड़ दिया। आज भी समुद्र के किनारे बेड़ी हनुमान मंदिर में हनुमानजी की पूजा होती है।हनुमानजी द्वारा ही वायु विवर्तन करने के कारण मंदिर में समंदर का शोर नहीं पहुंचता है।
जगन्नाथ जी मंदिर से जुड़े इन रहस्यों का तोड आज तक कोई नही पा सका है।तभी कहा जाता है कि ईश्वर की लीला अलौकिक होती है।
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