बांग्लादेश से एक और दिल दहला देने वाली घटना सामने आई है, जिसने वहां अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को लेकर गहरे सवाल खड़े कर दिए हैं। हिंदू समाज के एक वरिष्ठ नेता भाबेश चंद्र रॉय की गुरुवार को दिनदहाड़े निर्मम हत्या कर दी गई। वे बांग्लादेश पूजा उद्यापन परिषद की बीराल इकाई के उपाध्यक्ष थे और हिंदू समुदाय में अत्यधिक सम्मानित माने जाते थे।
दिन दहाड़े अपहरण, फिर क्रूरतम पिटाई
घटना दिनाजपुर जिले के बसुदेवपुर गांव की है। गुरुवार को दोपहर करीब साढ़े चार बजे भाबेश रॉय को एक अनजान नंबर से कॉल आया, जिसमें केवल यह पूछा गया कि वे घर पर हैं या नहीं। इसके करीब आधे घंटे बाद, दो मोटरसाइकिलों पर सवार चार युवक उनके घर पहुंचे और उन्हें जबरन उठा ले गए।
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, उन्हें पास के नराबाड़ी गांव में ले जाकर बेरहमी से पीटा गया। शाम को हमलावरों ने उन्हें अधमरी हालत में एक वैन में डालकर उनके घर के बाहर फेंक दिया। परिजन तुरंत उन्हें अस्पताल ले गए, लेकिन हालत गंभीर होने के चलते उन्हें दिनाजपुर मेडिकल कॉलेज रेफर किया गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।
अभी तक केस दर्ज नहीं, परिवार की पहचान पर भी कार्रवाई अधर में
भाबेश रॉय की पत्नी शांतना देवी ने बताया कि वह अपहरणकर्ताओं में से दो को पहचानती हैं, फिर भी पुलिस अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं कर पाई है। बीराल पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी ने कहा है कि केस दर्ज करने की प्रक्रिया चल रही है और संदिग्धों की पहचान व गिरफ्तारी के प्रयास किए जा रहे हैं।
पिछले छह महीने में 32 हिंदुओं की हत्या
यह घटना किसी अकेली वारदात का हिस्सा नहीं है। 5 अगस्त 2024 को बांग्लादेश में हुए सत्ता परिवर्तन के बाद हालात लगातार बिगड़ते जा रहे हैं। शेख हसीना सरकार के तख्तापलट और पुलिस प्रशासन के अंडरग्राउंड हो जाने के बाद बांग्लादेश में कानून व्यवस्था लगभग ध्वस्त हो गई।
बांग्लादेश हिंदू-बौद्ध-ईसाई एकता परिषद की रिपोर्ट के अनुसार, अगस्त से दिसंबर 2024 के बीच 32 हिंदुओं की हत्या, 133 मंदिरों पर हमले और 13 महिलाओं के साथ बलात्कार की घटनाएं सामने आई हैं। सिर्फ पहले 15 दिनों में ही अल्पसंख्यकों के खिलाफ 2010 हिंसक घटनाएं दर्ज हुई थीं।
भारत ने जताई नाराज़गी
भारत ने इस घटना पर कड़ा विरोध जताया है। हाल ही में जब बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने पश्चिम बंगाल में मुस्लिम समुदाय के खिलाफ कथित हिंसा पर टिप्पणी की, तो भारत ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि बांग्लादेश को अपने देश में हो रहे अल्पसंख्यकों के नरसंहार पर ध्यान देना चाहिए, न कि पड़ोसी देशों को नैतिकता का पाठ पढ़ाना चाहिए।
भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने बयान में कहा कि “बांग्लादेश की यह टिप्पणी धूर्तता से भरी है। यह अपने देश में हो रहे अत्याचारों से ध्यान भटकाने की चाल है।”
यह घटना केवल एक व्यक्ति की हत्या नहीं है, यह आस्था, पहचान और अल्पसंख्यकों के अस्तित्व पर किया गया हमला है। बांग्लादेश में जो माहौल बना है, वह न केवल उस देश की लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष छवि पर प्रश्नचिन्ह लगाता है, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया के लिए खतरे की घंटी है।
एक सभ्य समाज में किसी भी व्यक्ति की हत्या, वह भी धार्मिक पहचान के कारण, मानवता की हार है। बांग्लादेश सरकार को अब संजीदगी से यह सोचना होगा कि क्या वह सच में सभी नागरिकों की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है, या यह सब सिर्फ अंतरराष्ट्रीय मंचों पर दिखाने की बातें हैं।
अब सवाल यह नहीं है कि अगला कौन होगा — सवाल यह है कि क्या कोई बचेगा भी?
क्या इंसाफ सिर्फ दस्तावेजों में दर्ज रहेगा या कभी अदालतों तक भी पहुंचेगा?
“धर्म किसी का दुश्मन नहीं होता, नफरत होती है।”
अब वक्त है कि इंसानियत के नाम पर एकजुट होकर अल्पसंख्यकों की रक्षा की जाए — इससे पहले कि बहुत देर हो जाए।

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