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Toxic Masculinity: समाज के लिए घातक विचारधारा के शिकार बने मर्द, फिल्मों ने बिगाड़ा सोसाइटी का माहौल

“अगर आप एक लड़की को मार नहीं सकते…….अगर आप उसे जब चाहो तब छू नहीं सकते, अगर आप उसे बिना परमिशन के किस नहीं कर सकते……. तो मेरे हिसाब से यह प्यार नहीं है।”

यह लाइन फिल्म निर्देशक अर्जुन रेड्डी ने बोली है। उनके हिसाब से किसी भी लड़की पर ज़ोर ज़बरदस्ती करना एकदम नॉर्मल है। और यही चीज़ Toxic Masculinity को दर्शाती है। Toxic Masculinity……. यह शब्द आजकल बहुत ट्रेंडिंग है। फिल्मों से लेकर सोशल मीडिया पर, हर जगह आपको यह शब्द सुनने को मिलता है। लेकिन अब सवाल यह है कि आखिर Toxic Masculinity है क्या? और कहाँ से शुरू हुआ यह Toxic Masculinity, Sigma Male, Alpha Male का कांसेप्ट?

क्या है Toxic Masculinity

Toxic Masculinity एक बहुत ही हानिकारक कल्चर है। इसमें अगर एक आदमी एक औरत की बेज़्जती करता है, उसके साथ चीट करता है, उसे मारता-पीटता है, और एक तरह से नफरत करता है, तो उसे आज की भाषा में ‘Chad’ कहा जाता है, या Sigma Male कहा जाता है। और ऐसी ही सब आदातों को toxic masculinity कहा जाता है।

कैसे हुई इसकी शुरुआत

साल 1980 में एक Mythopoetic Men’s Movement के अंदर पहली बार Toxic Masculinity शब्द को जोड़ा गया था। इस movement की शुरुआत लोगों की मैस्कुलिन साइड को बहार निकालने के लिए शुरू किया गया था, जो उस समय समाज में कहीं खो गई थी। लेकिन, सोसाइटी में इसका समय के साथ काफी नेगेटिव असर पड़ा है। मर्दों को लगने लगा है कि जब तक वह मार-पीट नहीं करेंगे, कुछ खतरनाक नहीं करेंगे, तब तक वह मर्द नहीं कहलाएंगे, यानी ‘Sigma Male’ नहीं कहलाएंगे।

इसकी वजह से आदमी अपनी भावनाओं को छुपाने लगते हैं और अंदर ही अंदर घुट जाते हैं। जब वह लोग बड़े होते हैं तो उनकी यही अंदर की घुटन एक toxic trait में बदल जाती है, जिसकी वजह से वह हिंसक प्रवर्ति के बन जाते हैं।

कैसे बन गया toxic masculinity हमारे समाज का हिस्सा

आपने यह तो सुना ही होगा कि जो आप देखते हो, सुनते हो, आप वैसे ही बन जाते हो। इसलिए हमें सही तरह का कंटेंट देखना चाहिए, पढ़ना चाहिए और सुनना चाहिए। Toxic Masculinity ने हमारे समाज में फिल्म और टीवी शो के ज़रिए एंट्री ली है। Animal, RRR, Pushpa और Kabir Singh जैसी फिल्म के ज़रिए लोगों के दिमाग में इसे घुसाया गया है। हिंसक प्रतिक्रियाओं को नॉर्मल बताकर उनके द्वारा आदमियों के लिए एक स्टैंडर्ड सेट कर दिया गया है। फिल्मों का वैसे भी दर्शकों के ऊपर गहरा असर पड़ता है। तो उनको अगर ऐसी फिल्में पसंद आ रही है, मतलब समाज में गलत चीज़ें फैलाई जा रही है।

क्या होता है इसका असर

इन फिल्मों से सीखकर लड़के हिंसक प्रवृतियों का शिकार बन जाते हैं। उसके बाद वह अपनी गर्लफ्रेंड से चीट करने लगते हैं, उनके ऊपर ज़ुल्म करने लगते हैं, माँ-बाप से बुरा बरताव करने लगते हैं, और लड़की को अपनी प्रॉपर्टी समझकर बिना उसकी इजाज़त के उसको छूते हैं,, और सेक्शुअल रिलेशन बनाते हैं।

सिर्फ फिल्मों का ही नही, सोशल मीडिया का भी toxic masculinity को प्रमोट करने में एक बहुत बड़ा हाथ है। इसकी वजह से लड़कों की एक misogynistic विचारधारा बन जाती है। यही कारण है कि आगे जाके ऐसे ही मर्द रेपिस्ट बनते हैं।

क्या है आज की स्थिति

आजकल लोग positive masculinity को कमज़ोरी समझ बैठे हैं। इसलिए देखा जा सकता है कि रेप, झगडे और डाइवोर्स के केस बढ़ गए हैं।

पुरुष और स्त्री, दोनों को अलग प्रकार की एनर्जी मिली है। और जब तक दोनों एनर्जी संतुलन में काम नहीं करेगी, तब तक ऐसी नकारात्मक चीज़ें दिमाग पर हावी होती रहेगी। इसलिए दोनों का एक ही लेवल पर काम करना बहुत ज़रूरी है।