उत्तर प्रदेश के संभल में जामा मस्जिद के सर्वे के दौरान हुई हिंसा ने हालात को और भी गंभीर बना दिया है। इस घटना में पुलिस ने 100 पत्थरबाजों के पोस्टर जारी किए हैं, जिनमें से कई लोग पत्थर फेंकते हुए नजर आ रहे हैं। इन पोस्टरों में ज्यादातर लोग मुंह ढंके हुए हैं और हाथों में पत्थर लिए हुए हैं, जबकि कुछ महिलाएं भी छतों से पत्थर बरसाती दिख रही हैं। पुलिस का कहना है कि वे लगातार सीसीटीवी, वीडियो और ड्रोन फुटेज की जांच कर रहे हैं, ताकि और भी आरोपियों की पहचान की जा सके।
हिंसा के इस सिलसिले में अब तक 27 उपद्रवियों को गिरफ्तार किया गया है, जिनमें चार महिलाएं भी शामिल हैं। एक महिला का पोस्टर भी जारी किया गया है, जो दीपासराय इलाके से है और छत से पत्थर फेंकते हुए देखी गई थी। यह इलाका समाजवादी पार्टी के सांसद जियाउर्रहमान बर्क के घर के पास स्थित है। बर्क के घर के पास महिलाओं द्वारा पत्थरबाजी का एक और वीडियो सामने आया है, जिसमें महिलाएं पुलिस पर पत्थर फेंकते हुए दिखाई दे रही हैं। इस पूरे मामले में पुलिस ने स्पष्ट कर दिया है कि अब किसी भी आरोपी को बख्शा नहीं जाएगा, चाहे वह पुरुष हो या महिला।
उत्तर प्रदेश के आबकारी राज्यमंत्री नितिन अग्रवाल ने कहा कि कानून को हाथ में लेने वालों के खिलाफ कोई समझौता नहीं होगा। उनका कहना है कि उपद्रवियों से सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान की भरपाई की जाएगी। हिंसा में शामिल लोगों के पोस्टर सार्वजनिक जगहों पर लगाए जाएंगे और उनकी पहचान के बाद उनसे वसूली की जाएगी।
संभल में यह हिंसा उस समय हुई जब जामा मस्जिद का सर्वे हो रहा था। सर्वे के दौरान जब मुस्लिम समुदाय के लोग भड़क गए, तो करीब दो से तीन हजार लोग मौके पर जमा हो गए और पथराव शुरू कर दिया, जिससे हिंसा फैल गई। इस हिंसा में चार युवाओं की मौत हो गई थी। हिंसा के बाद, योगी सरकार ने इस मामले में सख्त कार्रवाई का एलान किया है और उपद्रवियों से नुकसान की भरपाई की प्रक्रिया शुरू कर दी है।
यह पूरा विवाद जामा मस्जिद के इतिहास से जुड़ा हुआ है। हिंदू पक्ष लंबे समय से इस जगह को पहले श्रीहरिहर मंदिर होने का दावा कर रहा है। इस मामले में 19 नवंबर को हिंदू पक्ष ने कोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका में हिंदू पक्ष ने बाबरनामा, आइन-ए-अकबरी और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की 150 साल पुरानी रिपोर्ट का हवाला दिया है, जिसमें यह दावा किया गया है कि बाबर ने 1529 में इस मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनवाया था।
हिंसा का कोई भी रूप स्वीकार्य नहीं है और इसे किसी भी परिस्थिति में सही ठहराया नहीं जा सकता। चाहे वो पुरुष हों या महिलाएं, उपद्रवियों को सख्त सजा मिलनी चाहिए ताकि भविष्य में कोई ऐसी घटना न हो। यह जरूरी है कि इस तरह की घटनाओं के बाद सख्त कार्रवाई हो, ताकि समाज में कानून का डर कायम रहे और भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।
संभल हिंसा का यह मामला समाज में ध्रुवीकरण और तनाव को बढ़ाने वाला है, इसलिए यह सुनिश्चित करना कि कानून का पालन सभी वर्गों द्वारा किया जाए, अत्यंत आवश्यक है। सरकार को ऐसे मामलों में सख्त निर्णय लेकर इसे काबू में लाने की कोशिश करनी चाहिए ताकि सभी समुदायों के बीच सामूहिक सौहार्द बना रहे।
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