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महाराजा सयाजी राव गायकवाड़ तृतीय: आधुनिक भारत के दूरदर्शी शासक

आज, 6 फरवरी को हम महाराजा सयाजी राव गायकवाड़ तृतीय की पुण्यतिथि मनाते हैं, जिन्होंने भारतीय इतिहास में अमिट योगदान दिया। उनका जन्म 11 मार्च 1863 को महाराष्ट्र के नासिक जिले के कलवाने गांव में गोपाल राव गायकवाड़ के नाम से हुआ था। 1875 में महारानी जमुना बाई द्वारा गोद लिए जाने के बाद उनका नाम सयाजी राव गायकवाड़ रखा गया और 1881 में उन्हें वडोदरा का महाराजा बनाया गया।

महाराजा सयाजी राव गायकवाड़ का शासनकाल 1881 से 1939 तक रहा, और इस दौरान उन्होंने वडोदरा रियासत को एक नया रूप दिया। वे एक दूरदर्शी और प्रगति की दिशा में सोचने वाले शासक थे, जिन्होंने शिक्षा, समाज सुधार, प्रशासन, और बुनियादी ढांचे में क्रांतिकारी परिवर्तन किए।

वडोदरा का कायापलट और राष्ट्रीय योगदान

महाराजा सयाजी राव गायकवाड़ के नेतृत्व में बड़ौदा रियासत में कई सुधार हुए। उन्होंने प्रशासनिक सुधारों के माध्यम से बड़ौदा की शासन प्रणाली को पारदर्शी और जनता के अनुकूल बनाया। शिक्षा के क्षेत्र में उनका योगदान उल्लेखनीय था। उन्होंने 1893 में प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य किया और राज्य भर में मुफ्त और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा का विस्तार किया। इसके अलावा, उन्होंने हर गाँव में पुस्तकालय स्थापित किए और चलते-फिरते पुस्तकालयों का भी प्रचलन किया।

महाराजा सयाजी राव गायकवाड़ को भारतीय पुस्तकालय आंदोलन का जनक भी माना जाता है, जिसे उन्होंने 1910 में शुरू किया। उन्होंने डॉ. भीमराव अंबेडकर को विदेश में पढ़ाई के लिए छात्रवृत्ति भी प्रदान की थी। इसके अतिरिक्त, उन्होंने सामाजिक न्याय के लिए कई महत्वपूर्ण कानून बनवाए, जैसे कि महिला अधिकारों की रक्षा, जातिवाद का उन्मूलन, विधवा विवाह का अधिकार और अस्पृश्यता के खिलाफ कानून।

समाज सुधार और संस्कृति का संरक्षण

महाराजा सयाजी राव गायकवाड़ न केवल शासन के कार्यों में बल्कि सामाजिक सुधारों में भी सक्रिय थे। उन्होंने पर्दा प्रथा, कन्या विक्रय और अन्य कुप्रथाओं के खिलाफ कड़े कदम उठाए। वे सत्यशोधक समाज के कार्यों से प्रभावित थे और 1904 में उन्हें राष्ट्रीय सामाजिक परिषद का अध्यक्ष बनाया गया।

उन्होंने वडोदरा में कई सुंदर इमारतों, महल, संग्रहालय और विश्वविद्यालयों का निर्माण कराया। उनका उद्देश्य बड़ौदा को एक सांस्कृतिक और शैक्षिक केंद्र के रूप में स्थापित करना था। उनकी शाही यात्रा ने दुनिया भर में उन्हें अपने राज्य के विकास के लिए प्रेरित किया, और उन्होंने अपने राज्य में आधुनिकता और समृद्धि को बढ़ावा दिया।

उनकी धरोहर पर विचार

महाराजा सयाजी राव गायकवाड़ तृतीय का जीवन हमारे लिए एक प्रेरणा है। उनका शासन एक आदर्श राज्य की अवधारणा का प्रतीक है, जो ज्ञान, समानता और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों पर आधारित था। उनके योगदान से बड़ौदा राज्य ही नहीं, बल्कि समग्र भारत को भी लाभ हुआ। उनके कार्यों का प्रभाव आज भी महसूस किया जा सकता है, और उनके प्रयासों के कारण ही भारतीय समाज में कई महत्वपूर्ण सुधार संभव हो पाए।

महाराजा सयाजी राव गायकवाड़ का शासनकाल न केवल बड़ौदा के लिए, बल्कि समग्र भारत के लिए एक सुनहरा दौर था। उनकी दूरदृष्टि, शिक्षा के प्रति प्रतिबद्धता और सामाजिक सुधारों के लिए उनका संघर्ष हमें यह सिखाता है कि कैसे एक नेता का दृष्टिकोण और कार्य समाज में बदलाव ला सकते हैं। उनकी पुण्यतिथि पर हम उनके योगदान को याद करते हैं और उनके आदर्शों को अपने जीवन में अपनाने का संकल्प लेते हैं।