हर वर्ष साल महत्वपूर्ण रात्रियों काली चौदस, महाशिवरात्रि और जन्माष्टमी का उत्सव मनाया जाता है। इन तीनों पर्वों में रात्रि के समय विशेष रूप से पूजन और अनुष्ठान किए जाते हैं। महाशिवरात्रि परात्पर शिव के प्राकट्य का महोत्सव है।
आज इस अवसर पर हम आपको शिव भगवान से जुड़े एक कथा के बारे में बताने जा रहे हैं।
एक बार प्रजापति ब्रह्मा जी और भगवान विष्णु के बीच यह प्रश्न उठा कि उनमें से श्रेष्ठ और महान कौन है? इस प्रश्न के उत्तर की खोज में दोनों कैलाश पर्वत पहुंचे। तभी अचानक उनके सामने एक विशाल, दिव्य और तेजस्वी ज्योति स्वरूप प्रकट हुई, जो शिवलिंग के रूप में थी।
ब्रह्मा जी ने उस ज्योति के शीर्ष (ऊपर के छोर) को खोजने का प्रयास किया, जबकि भगवान विष्णु ने उसके मूल (नीचे का छोर) को जानने के लिए यात्रा की। परंतु विष्णु जी को उसका मूल नहीं मिला, और ब्रह्मा जी को ऊपर से एक केतकी का पुष्प प्राप्त हुआ।
ब्रह्मा जी ने उस पुष्प से झूठी गवाही देने के लिए कहा कि उन्होंने शिवलिंग का शीर्ष देखा है। केतकी पुष्प ने झूठी गवाही दी, जिससे भगवान शिव प्रकट हुए और ब्रह्मा जी का पंचम मुख कालभैरव के द्वारा छेदन कर दिया।
भगवान शिव ने क्रोधित होकर कहा कि केतकी का पुष्प मेरी पूजा में कभी इस्तेमाल नहीं होगा, और ब्रह्मा जी की पूजा पृथ्वी पर कहीं नहीं होगी, जबकि भगवान विष्णु की पूजा हर घर में होगी। तभी से शिव और विष्णु की आरती भी संयुक्त रूप से गाई जाती है।
महाशिवरात्रि का महत्व और पूजन विधि
भगवान शिव के इस प्राकट्य दिवस पर भक्तगण व्रत, पूजन और अभिषेक करते हैं। बिल्व पत्र चढ़ाकर व्रत रखा जाता है और पूरी रात्रि चार प्रहर की महापूजा की जाती है। “ॐ नमः शिवाय” महामंत्र का जप करने से अनंत पुण्य फल प्राप्त होता है।
महादेव की कृपा से एक व्यक्ति को अनजाने में भी फल प्राप्त हुआ था। कल्याणकारी शिव जी के चरणों में कोटि-कोटि वंदन।
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