हर साल 26 अगस्त को राष्ट्रीय महिला समानता दिवस के रूप में मनाया जाता है, जो हमें उस ऐतिहासिक क्षण की याद दिलाता है जब 1920 में अमेरिका ने संविधान में 19वें संशोधन को पारित कर महिलाओं को समान और पूर्ण मतदान का अधिकार प्रदान किया। यह दिन सिर्फ एक कानूनी अधिकार की प्राप्ति का नहीं, बल्कि महिलाओं के संघर्ष, साहस और अटूट विश्वास की कहानी है।
एक आंदोलन का जन्म
यह कहानी 1840 के विश्व विरोधी दासता सम्मेलन से शुरू होती है, जब लंदन में कुछ महिलाओं को सम्मेलन के मंच से वंचित कर दिया गया था। इस अन्याय ने लूक्रेटिया मॉट और एलिजाबेथ कैडी स्टैंटन के दिलों में समानता के लिए लड़ाई का बीज बो दिया। इसके बाद, मार्था राइट, मैरी एन मैक्लिंटॉक, और जेन हंट के साथ मिलकर, उन्होंने न्यूयॉर्क के सेनिका फॉल्स में पहली महिला अधिकार सम्मेलन आयोजित करने की योजना बनाई।
19-20 जुलाई 1848 को वेस्लेयन चैपल में आयोजित इस सम्मेलन ने पहले ही दिन 200 महिलाओं को आकर्षित किया। दूसरे दिन, जब पुरुषों के लिए दरवाजे खोले गए, तो कुछ ने भाग लिया। सम्मेलन में महिलाओं को सामाजिक, आर्थिक, कानूनी और प्रतिनिधिक रूप से समान बनाने के लिए 12 प्रस्ताव पेश किए गए। इन प्रस्तावों में से केवल 9वें प्रस्ताव, जो महिलाओं को मतदान का अधिकार देने की बात करता था, पर सबसे ज्यादा बहस हुई। कई महिलाओं को लगा कि इससे उनके समर्थक पीछे हट सकते हैं। हालांकि, फ्रेडरिक डगलस जैसे उन्मूलनवादी के समर्थन के बाद, 9वें प्रस्ताव को भी पारित कर दिया गया।
मतदान का अधिकार
इस आंदोलन ने अमेरिका में महिला मताधिकार की नींव रखी। 1869 में, सुसान बी. एंथनी और स्टैंटन ने मिलकर नेशनल वुमन सफ्रेंज एसोसिएशन (NWSA) की स्थापना की। दस वर्षों की कड़ी मेहनत और लॉबी के बाद, 1878 में एक संशोधन पेश किया गया। हालांकि, यह संशोधन लंबे समय तक बहस के बाद 1886 में कांग्रेस में हार गया।
लेकिन महिलाओं ने हार नहीं मानी। अगले 34 वर्षों तक, महिलाएं समानता की मशाल जलाए रखीं। नए राज्यों ने संघ में प्रवेश किया, जिनके संविधान में महिलाओं को मताधिकार प्राप्त हुआ, जो पहले के राज्यों में नहीं था। नागरिक अवज्ञा ने इस संघर्ष को और मजबूत किया। अंततः, 19वें संशोधन के साथ कांग्रेस ने महिलाओं को समानता का अधिकार दिया।
राष्ट्रीय महिला समानता दिवस का इतिहास
30 जुलाई 1971 को, रेप. बेला अबजुग (D-NY) ने एक बिल पेश किया, जिससे 26 अगस्त को महिला समानता दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत हुई। उसी साल, देश भर में रैलियां, उत्सव और राजनीतिक बहस ने इस दिन को यादगार बना दिया। 1973 तक, कांग्रेस ने एक संयुक्त प्रस्ताव पारित किया, जिससे यह दिन हर साल 26 अगस्त को मनाया जाने लगा। तब से लेकर आज तक, हर साल राष्ट्रपति इस दिन को महिला समानता दिवस के रूप में घोषित करते हैं, और 19वें संशोधन की प्रमाणिकता का सम्मान करते हैं।
महिला समानता दिवस हमें यह याद दिलाता है कि समानता के इस संघर्ष ने हमें कितनी दूर तक पहुँचाया है, लेकिन यह यात्रा अभी भी अधूरी है। इस दिन का उद्देश्य केवल अतीत का जश्न मनाना नहीं है, बल्कि वर्तमान और भविष्य के लिए प्रेरणा लेना है। हमें याद रखना चाहिए कि महिलाओं की समानता सिर्फ एक कानूनी अधिकार नहीं, बल्कि एक सामाजिक जिम्मेदारी है, जिसे हमें हर दिन निभाना होगा।
इस महिला समानता दिवस पर, आइए हम सभी यह संकल्प लें कि हम इस मशाल को आगे जलाए रखेंगे, जब तक हर महिला को वह सम्मान, अधिकार और अवसर नहीं मिल जाता जिसकी वह हकदार है।
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