मौनी अमावस्या के पावन अवसर पर महाकुंभ में उमड़ी भारी भीड़ के कारण मची भगदड़ से कई परिवार बिछड़ गए। इस हादसे में करीब 1500 से अधिक लोग लापता हो गए, जिनमें बुजुर्ग, महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं। प्रयागराज के खोया-पाया केंद्रों पर लोग अपने अपनों को खोजने के लिए भटक रहे हैं, लेकिन अब तक कई परिवारों को कोई ठोस जानकारी नहीं मिल पाई है।
अपनों की तलाश में बिलखते लोग
बिहार के आरा जिले की सुनीता, जो अपनी मां ललिता देवी को खो चुकी हैं, रोते हुए कहती हैं, “हमने हर जगह खोजा, हॉस्पिटल, पुलिस स्टेशन—कहीं भी मां नहीं मिली। अब मजबूर होकर हम खाली हाथ घर लौट रहे हैं।” इसी तरह, महाराष्ट्र की सीताबाई अपनी बहन के बारे में अनिश्चितता व्यक्त करते हुए कहती हैं, “मुझे नहीं पता, वह जिंदा भी है या नहीं।”
सावित्री देवी जैसे कई लोग, जो अपने पूरे परिवार से बिछड़ गए हैं, खोया-पाया केंद्रों पर इंतजार कर रहे हैं, लेकिन प्रशासन की ओर से कोई स्पष्ट जानकारी नहीं मिल पा रही।
भगदड़ का कारण और हालात
भगदड़ की शुरुआत संगम नोज पर 28 जनवरी की रात हुई, जब वहां स्नान के लिए 10 लाख से अधिक श्रद्धालु जमा हो गए। लोगों ने बैरिकेडिंग के किनारे पॉलिथीन बिछाकर रात गुजारनी शुरू की, लेकिन भीड़ इतनी ज्यादा बढ़ गई कि जगह कम पड़ने लगी। जैसे ही अफवाह फैली कि नागा साधु आ रहे हैं, लोगों में भगदड़ मच गई।
पीछे से धक्का-मुक्की बढ़ी और बैरिकेडिंग टूटी, जिससे कई लोग कुचल गए और बहुत से लोग बिछड़ गए। कई श्रद्धालु अभी भी अपने परिवार के सदस्यों की तलाश कर रहे हैं, लेकिन प्रशासन कोई ठोस जानकारी देने में असमर्थ दिख रहा है।
प्रशासन की चुप्पी और लापरवाही
दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार, प्रयागराज के खोया-पाया केंद्रों में अब तक 1500 से अधिक लोगों के लापता होने की रिपोर्ट दर्ज हुई है। हालांकि, प्रशासन इस बारे में कोई आधिकारिक आंकड़ा जारी करने से बच रहा है।
मेला क्षेत्र में कार्यरत एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि सिर्फ 28 और 29 जनवरी के बीच ही 850 से ज्यादा गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज की गई थी। लेकिन प्रशासन इस पर कोई ठोस जवाब देने के बजाय इसे टाल रहा है।
भगदड़ की भयावहता और सबक
इस घटना ने फिर से प्रशासन की अव्यवस्था और भीड़ नियंत्रण में असफलता को उजागर किया है। जब इस तरह के आयोजनों में करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं, तब प्रशासन को सुरक्षा के व्यापक इंतजाम करने चाहिए।
लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। मेला क्षेत्र में सिर्फ 1000 पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया, जो इस विशाल जनसैलाब को संभालने में पूरी तरह असफल रहे। परिणामस्वरूप, न सिर्फ भगदड़ मची बल्कि कई लोग हमेशा के लिए अपने परिवार से बिछड़ गए।
महाकुंभ जैसे आयोजन में प्रशासन की यह लापरवाही बेहद चिंताजनक है। जब लाखों की भीड़ एक छोटे से क्षेत्र में इकट्ठा होती है, तो वहां सुरक्षा और भीड़ प्रबंधन के लिए सख्त उपाय जरूरी होते हैं।
लेकिन बिना पर्याप्त सुरक्षा बल, बेहतर मार्गदर्शन, या भीड़ नियंत्रण की ठोस व्यवस्था के बिना इस बार की महाकुंभ भगदड़ ने कई परिवारों को तबाह कर दिया। सरकार को चाहिए कि लापता लोगों की तलाश के लिए डिजिटल पहचान प्रणाली को मजबूत करे और भविष्य में इस तरह की घटनाओं से बचने के लिए कड़े कदम उठाए।
क्योंकि श्रद्धालु सिर्फ आस्था के साथ यहां आते हैं, वे यहां जान गंवाने नहीं आते।
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