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madhavi raje scindia

माधवराव की तस्वीर वाली मोहब्बत थी माधवी राजे सिंधिया, जानें उनकी प्रेम कहानी

केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की मां माधवी राजे सिंधिया का आज सुबह आकस्मिक निधन हो गया। बता दें कि उनकी पिछले कई हप्तों से तबियत ठीक नहीं थी और वे वेंटिलेटर पर थी। 15 फरवरी को उन्हें एम्स में भर्ती किया गया था और तब से ही उनकी तबियत खराब चल रही थी।

ज्योतिरादित्य के पिता माधवराव सिंधिया ने 1966 में नेपाल की राणा डायनेस्टी की राजकुमारी किरण राज्यलक्ष्मी देवी से विवाह किया। शादी के बाद उन्हें ग्वालियर राजघराने में नया नाम माधवी राजे सिंधिया दिया गया । माधवी राजे सिंधिया के दादा जुद्ध शमशेर जंग बहादुर नेपाल के प्रधानमंत्री रहे। किसी वक्त में वो राणा डायनेस्टी के मुखिया भी रहे थे। माधवराव और माधवी राजे की प्रेम कहानी भी एक अलग ही रंग समेटे है।

कहा जाता है कि माधवराव को जब प्रिंसेज किरन राज्यलक्ष्मी की फोटो दिखाई गई तो उन्हें तस्वीर से ही प्यार हो गया था। उन्होंने राजकुमारी को देखने की शर्त रखी, जिसे नेपाल के राजवंश ने ठुकरा दिया। मगर तस्वीर की मोहब्बत इतनी गहरी थी कि दोनों शादी के बंधन में बंध गए।

भले ही माधवी राजे को सिंधिया घराने की राजमाता का दर्जा प्राप्त था। लेकिन, जब वे बहू बनकर आई थी तो उनके संबंध अपनी सास राजमाता विजयाराजे सिंधिया से अच्छे नहीं बताए जाते थे।

आइए जानते हैं कि सास बहू की कहानी

राजमाता सिंधिया बेटे से हुए मतभेद के लिए अपनी बहू को जिम्मेदार ठहराती थीं। अपनी बहू से राजमाता नफरत करने लगी थीं। साथ ही वो नेपाल में रहने वाली अपनी समधन को भी अपने और माधवराव के बीच दरार डालने का जिम्मेदार मानती थीं। माधवराव के करीबियों का मानना था कि इमरजेंसी के दौरान जब वह जेल में थीं, तब माधवराव नेपाल चले गए थे। इस घटना से उन्हें गहरा धक्का लगा और फिर दोनों के बीच ताउम्र मतभेद की दीवार खड़ी रही।

1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए आम चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने गृह शहर ग्वालियर से चुनाव लड़ने का ऐलान किया। वाजपेयी को हराने के लिए राजीव गांधी ने माधवराव को ग्वालियर से चुनाव लड़ाने का फैसला किया। माधवराव भी चुनाव लड़ने को तैयार हो गए। उनके करीबियों के मुताबिक, उस समय माधवराव अपनी माता के साथ संबंधों के सबसे खराब दौर से गुजर रहे थे। उन्होंने अपनी माता से सियासी हिसाब बराबर करने ग्वालियर से चुनाव लड़ने का ऐलान किया। उन्होंने विपक्ष को चकमा देते हुए नामांकन के आखिरी दिन और आखिरी घंटे पर माधवराव ने कांग्रेस की तरफ से पर्चा भरा और चुनाव प्रचार में राजमाता की तमाम कोशिशों के बावजूद अटल बिहारी वाजपेयी को शिकस्त दे दी।