गुजरात को एक तरह से धार्मिक स्थान माना जाता है। यहाँ द्वारका नगरी से लेकर, पावागढ़ शक्तिपीठ मौजूद है। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि गुजरात में एक ऐसा स्थान भी है जहाँ शिवजी ने स्वयं अपना आखरी अवतार लिया था?
हम बात कर रहे हैं गुजरात का “काशी” कहलाते मंदिर, कयावरोहण की। कयावरोहण वड़ोदरा से केवल 30 किमी दूरी पर स्थित है। पोर गाँव के अंदर, कारवां नाम का एक और गाँव है। वहां स्थित है यह पवित्र स्थान कयावरोहण। कयावरोहण दो शब्दों के मेल से बना है, काया- शरीर और अवरोहण- प्रगट होना या अवतरित होना। इसका मतलब जिस स्थान पर उनका शरीर प्रगट हुआ था, उसे कयावरोहण कहते हैं।
किस भगवान का है यह मंदिर
शिवजी के आखरी अवतार लकुलीश का यहाँ अवतरण हुआ था। कुछ कथाओं के अनुसार वह एक ब्राह्मण के घर में पैदा हुए थे और कुछ कथाओं के अनुसार यह पैदा नहीं हुए थे, सीधा अवतरित हुए थे। लिंग पुराण की एक कथा के अनुसार लकुलीश को योग प्रणाली का प्रवर्तक माना जाता है। लकुलीश का मतलब होता है “लगुड़ वाले ईश्वर” यानी lord with a staff, mace, club or stick.
पोर गाँव के अंदर, एक विस्तार ज़मीन पर बना यह कयावरोहण, युगों से अपनी भूमिका निभाता आ रहा है। सतयुग में इसे इच्छापूरी, त्रेतायुग में मायापुरी, द्वापरयुग में मेधवती और कलियुग में कयावरोहण के नाम से जाना जाता है।
कहा जाता है कि इस जगह की रचना महर्षि विश्वामित्र ने की थी। उन्होंने यहाँ बैठकर गायत्री मंत्र की भी रचना की थी। कथाओं की मानें तो विश्वामित्र मोक्ष प्राप्त करने का एक स्थान बनाना चाहते थे। तब उन्होनें यहाँ इस मंदिर को बनाया। इसे “मोक्षपुरी” भी कहा जाता है।
कयावरोहण से पहले आते हैं यह शक्तिपीठ
लेकिन, कयावरोहण में प्रवेश करने से पहले गायत्री माता और अम्बाजी माता का मंदिर आता है। माना जाता है कि यह मंदिर एक शक्तिपीठ है। पौराणिक कथाओं के अनुसार यहाँ सति माता के कंधे का भाग गिरा था। बता दें कि गायत्री माता का मंदिर पहले बना था। उसके बाद ठीक सामने अम्बाजी माँ का मंदिर बनाया गया।
कैसा दिखता है कयावरोहण
एक बड़े विस्तार में फैला यह मंदिर ऑफ वाइट और पीच रंगों से रंगा है। यह कलर देने के पीछे का मकसद यहाँ पधारे दर्शनार्थियों को एक सुकून का अनुभव करवाना है। इसके खंभों पर अलग-अलग आकृतियां बनाई गई हैं। सीढ़ियों के बहार एक बड़ा सा घंट है। इसे बजाने पर माना जाता है कि सारी नकारात्मक ऊर्जाएं नष्ट हो जाती है। अंदर प्रवेश करने पर एक बड़ी सी नंदी है। और उन्हीं के सामने लकुलीश भगवन की मूर्ति स्थापित है।
मंदिर के अंदर एक सुन्दर सा, बड़ा सा डोम है। दीवारों पर अलग-अलग प्रकार के योगा पोज़ बनाये हुए हैं। साथ ही कौनसी पुराण में क्या लिखा है, और कहाँ लिखा है उसकी भी जानकारी देखने को मिलती है।
इस मंदिर के नीचे एक ध्यान करने की गुफा भी है। यहाँ आप बैठकर शांति से मैडिटेशन और अपनी साधना कर सकते हैं। इसी गुफा में तनिक और अंदर जाएँ तो ब्रह्मलोक और विष्णुलोक भी बनाया गया है। इस जगह जितनी शांति मिलती है, उतनी कहीं भी नहीं मिलती।
यहाँ के जो लोग है वह एक दूसरे को जय भगवान कहकर नमस्कार करते हैं। ऐसा करने के पीछे की वजह यह है कि इनके हिसाब से हम सबके अंदर कहीं न कहीं भगवन बस्ते हैं। इसलिए उन भगवन को संबोधित करने के लिए यह एक दूसरे को जय भगवान कहकर ग्रीट करते हैं।
पुरातत्व स्थल की जानकारी
हर जगह का अपना एक इतिहास होता है। जैसे सोमनाथ का जो यह मंदिर है अभी, उससे पहले कोई और मंदिर रहा होगा वहां। वैसे ही कयावरोहण का यह मंदिर तो अभी नया नया है। इससे पहले यहाँ कोई और मंदिर था। उसी के ही सबूत के तौर पर गाँव के अंदर एक पुरातत्व स्थल भी है। कहा जाता है कि यह स्थल पहले एक मंदिर का गर्भगृह हुआ करता था। इस जगह को ASI ने एक गवर्नमेंट साइट घोषित कर दिया है। इसके अलावा अलग अलग जगह पर खुदाई करने पर कई सारे पुराने और खंडित शिवलिंग भी मिले हैं।
लकुलीश योग यूनिवर्सिटी
इस स्थान की इतनी मान्यता है कि लोग स्वयं की इच्छा से इसे मेन्टेन करने के लिए फंड्स दे देते हैं। आपको बता दें कि कयावरोहण बस एक मंदिर ही नहीं है। हमारी योग क्रिया को बचाने में इसका बहुत बड़ा हाथ है। कयावरोहण ने लकुलीश योग यूनिवर्सिटी की स्थापना की थी। इसका मुख्य केंद्र अहमदाबाद में है। आज भी यहाँ तकरीबन 25 से 30 बच्चों ने एडमिशन लिया हुआ है। लेकिन, बदलते समय के साथ इसकी मान्यता घटती जा रही है।
इस स्थान का हमारे भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इसलिए जब भी वड़ोदरा घूमने आओ तो कयावरोहण जाना न भूलना।
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