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शास्त्रीय संगीत और लोकसंगीत की तरह ग़ज़ल गायकी में भी जयदेव ने छोड़ी अमिट छाप

फिल्म संगीत के इतिहासकार और अध्ययनकर्ता जिस दौर को फिल्म संगीत का स्वर्णयुग कहते हैं, वह शुरू होने से पहले ही ग़ज़ल गायकी लोकप्रिय हो चुकी थी। प्रसिद्ध तवायफें ठुमरी, दादरा के साथ-साथ ग़ज़लें भी गाती थीं। कुंदनलाल सहगल द्वारा गाई गई कुछ ग़ज़लें भी काफ़ी प्रशंसित और लोकप्रिय रहीं। फिल्मों के अलावा, फिल्म इंडस्ट्री के बाहर भी ग़ज़ल गायकी की विशेष जगह थी। जब फिल्मी ग़ज़लों की बात होती है, तो संगीत प्रेमी सबसे पहले मदन मोहन को याद करते हैं।

मदन मोहन ने शास्त्रीय राग-रागिनियों का आधार लेते हुए ग़ज़लें रचीं, लेकिन वे कभी भारी-भरकम नहीं लगीं। लता मंगेशकर की आवाज़ में मदन मोहन की ग़ज़लें श्रोताओं के दिलों पर छा गईं।

हालांकि, मदन मोहन के अलावा भी कई संगीतकारों ने फिल्मों में ग़ज़लें स्वरबद्ध कीं। खय्याम, नौशाद, सी. रामचंद्र, शंकर-जयकिशन और रोशन जैसे संगीतकार भी इस श्रेणी में उल्लेखनीय हैं। दुर्भाग्यवश, जयदेव जैसे प्रतिभावान संगीतकार को बी और सी ग्रेड की फिल्मों में ही काम मिला, लेकिन उन्होंने कभी भी अपनी प्रतिभा से समझौता नहीं किया।

मदन मोहन के निधन के बाद जयदेव को उनकी अधूरी फिल्म के संगीत को पूरा करने की ज़िम्मेदारी भी मिली। इस दौरान उन्होंने न केवल उस काम को बखूबी निभाया, बल्कि अपनी प्रतिभा का उत्कृष्ट प्रदर्शन किया।

जयदेव की ग़ज़लों की एक खासियत यह थी कि वे राग खमाज का उपयोग करते थे। उदाहरण के लिए, फिल्म ‘जियो और जीने दो’ की ग़ज़ल “जो ख़्वाब सजा है पलकों में…” (उषा मंगेशकर), फिल्म ‘आलिंगन’ की “हमारे दिल को तुमने दिल बना दिया…” (मोहम्मद रफ़ी और आशा भोसले) और “इस तरह जाओ नहीं…” (मोहम्मद रफ़ी) सभी राग खमाज पर आधारित थीं। इन ग़ज़लों में दादरा ताल का प्रयोग हुआ, जो जयदेव की संगीत रचनाओं को और भी मधुर बनाता है।

जयदेव के संगीत में उनकी गहराई और शायरी की समझ भी झलकती है। साहिर लुधियानवी ने एक बार कहा था कि जयदेव को भारतीय और पाकिस्तानी शायरी की बेहतरीन रचनाएँ कंठस्थ थीं। वे अक्सर साहिर से कहते थे, “ऐसी कोई ग़ज़ल लिखो, जो इससे बेहतर हो।”

बी और सी ग्रेड फिल्मों में काम करने के बावजूद जयदेव ने कभी अपनी प्रतिभा को सीमित नहीं किया। उन्होंने उषा मंगेशकर, हरिहरन, छाया गांगुली और भूपेंद्र जैसे गायकों से ग़ज़लें गवाईं, जिनका स्वरांकन आज भी संगीत प्रेमियों के दिलों में बसता है। फिल्म ‘आलिंगन’ में मन्ना डे की आवाज़ में गाई ग़ज़ल “प्यास थी फिर भी तकाजा न किया…” को राग धानी में कहरवा ताल पर आधारित किया गया। वहीं, फिल्म ‘जियो और जीने दो’ में हसरत जयपुरी की ग़ज़ल “आज की रात है बस जलवा दिखाने के लिए…” को जयदेव ने राग पहाड़ी में दादरा ताल के साथ स्वरबद्ध किया।

जयदेव जैसे महान संगीतकार को ए ग्रेड फिल्मों में पर्याप्त अवसर नहीं मिले, लेकिन उनकी ग़ज़लों ने संगीत प्रेमियों के मन में जो जगह बनाई, वह अद्वितीय है।

उनकी ग़ज़लें आज भी भारतीय संगीत का अमूल्य खजाना हैं, जो संगीत रसिकों को शास्त्रीयता और भावनात्मक अभिव्यक्ति का अनूठा अनुभव कराती हैं।