हिंदी विरोध आंदोलन – तमिलनाडु में हिंदी भाषा का विरोध 1930 के दशक से शुरू हुआ, जब ब्रिटिश सरकार के दौरान हिंदी को अनिवार्य रूप से लागू करने की चर्चा हुई।
राज्य की भाषा नीति – तमिलनाडु में दो-भाषा नीति (तमिल और अंग्रेजी) अपनाई गई, जबकि अन्य राज्यों में त्रिभाषा फॉर्मूला (हिंदी, अंग्रेजी और क्षेत्रीय भाषा) लागू किया गया।
1965 का हिंदी विरोध आंदोलन – भारत सरकार द्वारा हिंदी को आधिकारिक भाषा के रूप में लागू करने के प्रयासों के खिलाफ तमिलनाडु में बड़े स्तर पर आंदोलन हुआ, जिसके चलते राज्य में हिंदी विरोध की भावना और मजबूत हुई।
तीसरी भाषा का मुद्दा -:
त्रिभाषा फॉर्मूला का विरोध – केंद्र सरकार ने शिक्षा नीति में हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में पढ़ाने की सिफारिश की, लेकिन तमिलनाडु ने इसे स्वीकार नहीं किया।
तमिल और अंग्रेजी की प्रधानता – राज्य में स्कूलों में हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य नहीं किया गया, और अधिकतर छात्र तमिल और अंग्रेजी ही पढ़ते हैं।
राजनीतिक प्रभाव – द्रविड़ पार्टियों (DMK, AIADMK) ने हमेशा हिंदी के अनिवार्य रूप से लागू होने का विरोध किया, जिससे यह मुद्दा तमिलनाडु की राजनीति का अहम हिस्सा बन गया।
वर्तमान स्थिति में तमिलनाडु में के अधिकतर स्कूलों में हिंदी को ऐच्छिक भाषा (Optional Language) के रूप में रखा गया है, लेकिन अनिवार्य नहीं बनाया गया।
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020) में त्रिभाषा फॉर्मूला शामिल किया गया, लेकिन तमिलनाडु सरकार ने इसका विरोध किया और अपनी दो-भाषा नीति जारी रखी हिंदी सीखने की प्रवृत्ति निजी स्कूलों में बढ़ रही है, लेकिन सरकार के स्कूलों में इसकी स्वीकृति अब भी कम है तमिलनाडु में हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में लागू करने के प्रयासों का लंबे समय से विरोध होता रहा है। यहां की भाषा नीति तमिल और अंग्रेजी पर केंद्रित है, और हिंदी को ऐच्छिक भाषा के रूप में ही रखा गया है। त्रिभाषा नीति को लेकर विवाद आगे भी जारी रह सकता है, क्योंकि यह न केवल शैक्षिक बल्कि राजनीतिक और सांस्कृतिक भावनाओं से भी जुड़ा हुआ मुद्दा है।
भारत के इतिहास में हिंदी भाषा का महत्व -:
हिंदी भाषा का इतिहास भारत की सांस्कृतिक और सामाजिक विरासत से गहराई से जुड़ा हुआ है। यह भाषा न केवल साहित्य और संचार का माध्यम रही है, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्रीय एकता में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
हिंदी का प्रारंभिक विकास-:
हिंदी की जड़ें संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश भाषाओं में पाई जाती हैं !
10वीं-11वीं शताब्दी में अपभ्रंश से विकसित होकर हिंदी का प्रारंभिक स्वरूप अस्तित्व में आया।
12वीं-13वीं शताब्दी में खड़ी बोली का विकास हुआ, जो आधुनिक हिंदी का आधार बनी मध्यकालीन हिंदी (भक्ति आंदोलन और साहित्य) 14वीं-17वीं शताब्दी के दौरान भक्ति आंदोलन ने हिंदी को जन-जन तक पहुँचाया संत कबीर, तुलसीदास, मीराबाई, सूरदास जैसे कवियों ने हिंदी में रचनाएँ लिखीं। इस काल में हिंदी साहित्य में धार्मिक और सामाजिक सुधारों की झलक देखने को मिली।
मुगल काल में हिंदी का प्रभाव-:
मुगलों के शासनकाल में फारसी प्रशासनिक भाषा थी, लेकिन आम जनता हिंदी बोलती थी।
इस दौरान हिंदी में रीतिकालीन काव्य का विकास हुआ (भूषण, बिहारी, केशवदास आदि)।
हिंदी और फारसी के मेल से उर्दू भाषा का भी जन्म हुआ।
आधुनिक हिंदी और स्वतंत्रता संग्राम
19वीं शताब्दी में हिंदी आधुनिक रूप में विकसित हुई।
भारतेंदु हरिश्चंद्र को आधुनिक हिंदी का जनक कहा जाता है।
भारतेंदु जी भाषा के स्वरूप को काव्यात्मक रूप से प्रस्तुत करते हैं कि
“निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल,
बिनु निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल ।
अँग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन,
पै निज भाषा-ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन” ।
हिंदी पत्रकारिता का विकास हुआ – उदंत मार्तंड (1826) पहला हिंदी समाचार पत्र था।
महात्मा गांधी ने हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में अपनाने पर जोर दिया, क्योंकि यह आम जनता की भाषा थी।
बाल गंगाधर तिलक, सुभाष चंद्र बोस और भगत सिंह ने अपने आंदोलनों में हिंदी का उपयोग किया।
स्वतंत्र भारत में हिंदी
1947 में भारत की आज़ादी के बाद हिंदी को प्रमुख भाषा के रूप में अपनाने की चर्चा हुई।
14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने हिंदी को राजभाषा के रूप में स्वीकार किया।
संविधान के अनुच्छेद 343 के तहत हिंदी को राजभाषा और अंग्रेज़ी को संपर्क भाषा बनाया गया।
गैर-हिंदी भाषी राज्यों के विरोध के कारण हिंदी को राष्ट्रीय भाषा नहीं बनाया गया, बल्कि राजभाषा तक सीमित रखा गया।
वर्तमान में हिंदी का प्रभाव-:
हिंदी आज विश्व की तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है साहित्य, फिल्म, मीडिया और इंटरनेट पर हिंदी का व्यापक प्रभाव है हिंदी भाषा अब तकनीकी और डिजिटल माध्यमों में भी आगे बढ़ रही है।
भारत के इतिहास में हिंदी का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। यह भाषा न केवल सांस्कृतिक और साहित्यिक अभिव्यक्ति का साधन रही है, बल्कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्रीय एकता में भी इसकी अहम भूमिका रही है। आज भी हिंदी भारत की राजभाषा के रूप में अपनी पहचान बनाए हुए है और आधुनिक युग में डिजिटल और वैश्विक स्तर पर अपना प्रभाव बढ़ा रही है।
“हिंदी मात्र भाषा नहीं संवेदनाओं का उदार है जीने की बदलते ढंगो में भावनाओं का विस्तार है”
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