Lal Bahadur Shastri’s Death anniversary : लाला बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को हुआ था। वह भारत के दूसरे प्रधानमंत्री थे। वह 98 जून 1964 से 11 जनवरी 1966 को अपनी मृत्यु तक लगभग अठारह महीने तक भारत के प्रधानमंत्री रहे। इस प्रमुख पद पर उनका कार्यकाल अद्वितीय था। शास्त्री जी को शास्त्री की उपाधि काशी विद्यापीठ से प्राप्त हुई। भारत की आज़ादी के बाद शास्त्रीजी को उत्तर प्रदेश का संसदीय सचिव नियुक्त किया गया। गोविंद वल्लभ पंत के मंत्रिमंडल में उन्हें पुलिस एवं परिवहन मंत्रालय सौंपा गया।
1951 में, उन्हें जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव के रूप में नियुक्त किया गया था। 27 मई 1964 को जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के बाद उनकी स्वच्छ छवि के कारण शास्त्रीजी को 1964 में देश का प्रधानमंत्री बनाया गया। ताशकंद में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री अयूब खान के साथ युद्ध समाप्त करने के समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद 11 जनवरी 1966 की रात को रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई।
विशाल व्यक्तित्व रखने वाले लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु को सामान्य मृत्यु घोषित किया गया। लेकिन, कुछ सूत्र स्पष्ट करते हैं कि उनकी मृत्यु सामान्य नहीं थी, उनके परिजनों ने उनकी हत्या की बात कही थी। आज 58 साल बाद भी उनकी संदेहास्पद मृत्यु की गुत्थी नहीं सुलझ पाई है।
कुछ लोग बताते हैं कि उन्हें जहर दिया गया था तो कुछ के अनुसार उनकी गर्दन पर जख्म मिले थे। शक की सुई इस बात पर भी घूमती है कि उनकी मृत्यु के पश्चात ना मृत्यु स्थल (ताशकंद) में और ना ही भारत में उनके शव का पोस्टमार्टम कराया गया। शास्त्रीजी की मृत्यु को लेकर राजनारायण कमीशन भी बिठाया गया, मगर उसकी रिपोर्ट भी सार्वजनिक नहीं की गई। शास्त्री जी के पश्चात 12 प्रधानमंत्रियों ने देश की बागडोर संभाली, मगर किसी ने भी शास्त्रीजी की रहस्यमय मृत्यु की आधिकारिक जांच कराने की कोशिश नहीं की।
बता दें कि पाकिस्तानी सेना के हमले के बाद शुरू हुए युद्ध में शास्त्री जी की प्रेरणा से भारतीय सेना लाहौर के करीब तक पहुंच गई थी, लेकिन तभी अमेरिका और रूस की मध्यस्थता के कारण भारत को युद्ध पर विराम लगाना पड़ा था।
पत्नी, पुत्र और पौत्र का दावा
शास्त्री जी की मृत्यु के संदर्भ में उनकी पत्नी ललिता शास्त्री का दावा किया था कि उनके पति को जहर देकर मारा गया। शास्त्री जी के बेटे सुनील शास्त्री ने भी सवाल उठाया कि उनके पिता का शरीर नीला क्यों पड़ा और उनके शरीर पर खरोच के निशान क्यों और कैसे हुए थे। उनके बड़े बेटे और पोते ने उनकी संदिग्ध मृत्यु के कारणों को जानने की मांग की थी। इसके बाद भी उसकी कोई सुनवाई नहीं की गई।
शास्त्री जी के सूचना अधिकारी पर शक
ताशकंद समझौते पर लाल बहादुर शास्त्री के साथ उनके सूचना अधिकारी कुलदीप नैय्यर भी थे, उन्होंने अपनी पुस्तक ‘बियॉंन्ड द लाइन’ लिखा, उस रात मैं सो रहा था, तभी एक रूसी महिला ने बताया कि आपके प्रधानमंत्री मर रहे हैं, मैं उनके कमरे में पहुंचा तो रूसी प्रधानमंत्री एलेक्सी कोसिगिन ने इशारे से बताया कि शास्त्री जी नहीं रहे। मैंने देखा, शास्त्रीजी का चप्पल कारपेट पर रखा हुआ है, जिसे पहना नहीं गया था। थर्मस फ्लास्क नीचे गिरा था, मानों उन्होंने इसे खोलने की कोशिश की हो। कमरे में घंटी नहीं थी कि जरूरत पड़ने पर किसी को बुला सकें। भारत के पीएम के ऐसे कक्ष की कल्पना कौन करेगा?
जांच अधिकारियों की भी रहस्यमय मौत
एक और चौंकाने वाला तथ्य यह भी था कि भारत सरकार ने शास्त्रीजी की मौत पर जांच के लिए जिस जांच समिति का गठन किया था, उनके निजी डॉक्टर आरएन सिंह और निजी सहायक रामनाथ की अलग-अलग हादसों में मौत हो गई। ये दोनों लोग शास्त्रीजी के साथ ताशकंद दौरे पर गए थे। उन दोनों की मौत शास्त्री जी की हत्या की आशंका को पुख्ता करता है।
समझौते से नाखुश थे शास्त्री जी?
समझौते के बाद शास्त्री जी काफी परेशान थे, कुछ लोगों का कहना था कि शास्त्री जी कमरे परेशान हाल में टहलते देखा था, उनके करीबी कहते हैं कि वह समझौते से खुश नहीं थे। शास्त्री के साथ भारतीय डेलिगेशन के रूप में गए लोगों का भी मानना था कि उस रात वो बेहद असहज दिख रहे थे।
यदि इन सारे पहलुओं को देखा जाए तो साफ होता है कि ताशकंद में शास्त्री जी की मृत्यु एक हत्या थी। लेकिन, अब तक सबूते के अभाव में इस बारे में पुख्सा नहीं कहा जा सकता। शास्त्री जी की मृत्यु इतिहास में भी एक सवाल बनकर रह गई है। इनके जन्म दिन और मरण दिन पर ही उन्हें याद किया जाता है। शास्त्री जी के बाद कितने प्रधानमंत्री बने, लेकिन किसी ने भी इनकी मृत्यु के कारणों को जानने की कोशिश कभी नहीं की। या शायद कोई करना भी नहीं चाहता। शायद शास्त्री जी देश की कुछ बेहद अहम जानकारी जानते थे जिसके बारे में वे दुनिया को बताना चाहते थे, लेकिन कुछ लोगों की वजह से वो राज उनके साथ ही चला गया।
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