गुजरात के सौ साल पुराने सामायिक “कुमार” का अपना एक विशेष महत्व है।जब किसी लेखक,साहित्यकार की रचना इसमें छपती है तो ,उसके लिए यह विशेष गौरव की हॉट होती है।आज से सौ साल पहले इस सामायिक की स्थापना कलागुरु रविशंकर रावल द्वारा की गई थी।
कुमार सामयिक के शताब्दी वर्ष के उपलक्ष में कलातीर्थ द्वारा “पंचामृत” कला गंगोत्री 21 का पांचवा प्रकाशन प्रकाशित हो चुका है. कला और कसबसंपदा का संपादन निसर्ग अहीर ने किया है । 309 पृष्ठ वाले कुमार_ एक सदी नी कलायात्रा” पुस्तक के साथ शिल्प, स्थापत्य, और चित्र तीनों कलाओं को समाहित करते चार ग्रंथ का प्रकाशन किया गया है। सौंदर्य, भावना के साथ सर्जनशक्ति प्रवृत्ति होने पर ही कला का निर्माण होता है। ललित कला के तीन आयामों पर पहले ही कलागंगोत्री ग्रंथ प्रकाशित हो चुके हैं।
कुमार में प्रकाशित कारीगरी, हस्तकला, सुशोभन कला को समाहित करती सामग्री भी प्रकाशित की गई है। यह एक ऐसा कला वैभव है, जिसमें क्रमिक विकास और विस्तार के साथ भौगोलिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, धाराओं के अनुसार अनूठी प्रस्तुति की गई है। रोजमर्रा की ग्रामीण चीज़ें जैसे बैलगाड़ी, हल, आदि सब कलात्मक होता है। यहां तक की गाय, बैल, घोड़े, ऊंट,आदि पालतू प्राणियों को भी सजाया जाता है। कुमार के इस ग्रंथ का संपादन निसर्ग आहिर किया है, जो धन्यवाद के पात्र हैं।
इस प्रकाशन में इतिहासविद पद्मश्री डॉ. विष्णु पंड्या ने अपना विशेष सहयोग दिया है। वहीं राजस्थान विद्यापीठ उदयपुर के कुलपति डॉ बलवंत जानी, मुंबई के श्रॉफ फैमिली चैरिटेबल ट्रस्ट, कांतिसेन श्रॉफ आर्ट फाउंडेशन का भी भरपूर योगदान रहा है।
कलातीर्थ ट्रस्ट के कलागंगोत्री 21 की कुमार शताब्दी वर्ष पर “कुमार_ एक सदी नी कलायात्रा” अपने आप में एक धरोहर बन चुकी है।
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