26 भाषाओं में 22 हजार से ज्यादा गाने गाने वाले कुमार सानू ने एक दिन में 28 गाने गाने का कारनामा भी किया है।
नब्बे के दशक में कोलकाता से लेकर मुंबई तक व्यावसायिक गायन के क्षेत्र में अपना दमदार करियर बनाने वाले कुमार सानू ने अपने साढ़े तीन दशक लंबे करियर में 22 हजार से ज्यादा गाने गाए हैं। नब्बे के दशक में एक स्टूडियो से दूसरे स्टूडियो में गाने रिकॉर्ड करने के लिए संघर्ष करने वाले कुमार सानू एक असाधारण बंगाली गायक हैं, जिनका उर्दू लहजा बिल्कुल स्पष्ट है और उनकी गायकी में बंगाली की कोई झलक नहीं सुनने मिलती। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में कुमार सानू की 35 साल के सुरीली करियर यात्रा काफी यादगार है। एक बार एक न्यूज चैनल में दिए गए इंटरव्यू में उन्होंने अपनी जिंदगी के कई सारे पहलुओं के बारे में खुलासा किया था। जो आज हम आपको बताने जा रहे हैं।
एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि, मेरे पिता पशुपति भट्टाचार्य एक शास्त्रीय गायक और संगीतकार थे। वह आजीविका के लिए बांग्लादेश से कलकत्ता आये। जब वह रियाज़ करने बैठते थे तो मुझे भी अपने साथ बैठकर गाने के लिए कहते थे। मुझे उस समय तबला बजाने का शौक था और तबला बजाते-बजाते मैं गाना भी गाता था। मेरे घर में शुद्ध शास्त्रीय संगीत था लेकिन मैं कॉमर्शियल संगीत सीख रहा था। घर पर मैं चौबीसों घंटे अपने पिता का शास्त्रीय गायन सुनता था। लेकिन फिर उन्होंने दोस्तों के साथ बाहर जाना और रेडियो पर कॉमर्शियल हिंदी संगीत सुनना शुरू कर दिया। इस प्रकार, यह सुनने में शास्त्रीय और हृदय में कॉमर्शियल था। मेरा सारा संगीत प्रशिक्षण या संगीत सीखना केवल सुनने के माध्यम से ही हुआ है।
मुंबई आने के छह दिन के अंदर ही मैंने होटलों में गाना शुरू कर दिया। इस तरह मैंने जो कुछ भी कमाया, उससे मैंने अपनी गायकी के टेप बनाने शुरू कर दिए और इन कैसेटों को संगीत निर्देशकों को भेजा करता था। मुझे कभी कोई आर्थिक समस्या नहीं आई। मैंने शायद छह-सात साल तक होटलों में गाना गाया और फिर आशिकी का संगीत इतना हिट हुआ कि मैं रातोंरात एक बड़ा गायक बन गया। लेकिन, मुझे 1988 में हीरो हीरालाल में ब्रेक मिला। मैंने 1990 में आशिकी के सभी गाने गाए। उस फिल्म के गीत-संगीत की अभूतपूर्व सफलता के बाद मेरी जोड़ी नदीम-श्रवण के साथ बनी। उस दौरान मुझे लगातार पांच सालों तक सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायक का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला।
सानू भट्टाचार्य से कुमार सानू नाम रखने के पीछे की दास्तान
उन्होने आगे बताया कि एक बार की बात है जब 1989 में जगजीत सिंह मुझे कल्याणजी आनंदजी से मिलवाने ले गये। उस वक्त मेरे शुद्ध उर्दू उच्चारण से प्रभावित होकर कल्याणजी आनंदजी ने मेरा नाम सानू भट्टाचार्य से कुमार सानू रख दिया क्योंकि मैं किशोर कुमार का बहुत बड़ा प्रशंसक था। मेरा नाम बदलने से कोई नहीं जान सकता कि मैं बंगाली हूं। बंगाली आम तौर पर उर्दू शायरी नहीं बोल पाते, कम से कम उन दिनों के अधिकांश गायक जब उर्दू में गाने की बात आती थी तो शुद्ध उच्चारण नहीं कर पाते थे। वह एक लोकप्रिय गायक थे लेकिन उनका उर्दू उच्चारण शुद्ध नहीं था। लेकिन उर्दू भाषा पर मेरी अच्छी पकड़ थी। न केवल जब मैं गाता हूं बल्कि जब मैं बोलता हूं तो भी मेरा उर्दू लहजा स्पष्ट होता है। इस प्रकार, कल्याणजी ने कहा कि मेरी उर्दू पर अच्छी पकड़ है इसलिए लोग मुझे यह न बताएं कि मैं बंगाली हूं। इसलिए मैंने यह नया नाम कुमार सानू अपनाया।’
कुमार सानू ने नब्बे के दशक में उस दौर के सैकड़ों सफल संगीतकारों जतिन-ललित, अनु मलिक, नदीम-श्रवण और आनंद-मिलिंद के साथ कई हिट गाने दिये। आशिकी, साजन, बाजीगर, 1942 की लव स्टोरी, दिल है कि मानता नहीं, दिलवाले दुल्हनियां ले जाएंगे और अकेले हम अकेले तुम जैसी हिट फिल्मों के गाने भी हिट साबित हुए। आज जब कुमार शानु अपने 35 साल के करियर पर नजर डालते है तो उन्हें एहसास होता है कि उन्होंने अपनी जिंदगी में कितना संघर्ष किया।
इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि, ‘मुझे उस समय कभी एहसास नहीं हुआ कि लोगों के मन में मेरे लिए कितना प्यार है।’उस समय मेरे मन में एक ही लक्ष्य था कि मैं गाना जारी रखूंगा और लोगों का मनोरंजन करता रहूंगा। मैं आज कह सकता हूं कि मैंने भारत की 26 भाषाओं में 22 हजार से ज्यादा गाने गाए हैं। आज भी मेरे पास अपने दो हजार गानों का कोई रिकॉर्ड नहीं है।
कुमार सानू ने सलमान खान, शाहरुख खान और गोविंदा के लिए कई गाने गाए और उन्होंने भी उनके गानों को स्क्रीन पर न्याय दिया। वे जब स्टूडियों में गाते थे तो वे ध्यान रखते थे कि ये गाना किसपर फिल्माया जा रहा है। ऐसे ही वे सारे गानों को अपना बना लेते थे। लेकिन इन सब में मजेदार बात ये है कि उस वक्त एक्टर कभी भी स्टूडियों नहीं आते थे। कभी नहीं कहते थे कि मेरा गाने ऐसे गाओ या वैसे। सभी को सभी के काम पर पूरा भरोसा हुआ करता था। कि सभी अपनी-अपनी जगह बेस्ट पर्फार्म करेंगे।
कुमार सानू ने आज के दौर के गानों को लेकर कहा कि, आज एक ही गाना आठ से दस गायकों को दे दिया जाता है, कोई नहीं जानता कि कौन सा गाना रखा जाएगा और उस गाने को किसने अच्छा गाया है। ऐसे में एक सिंगर के तौर पर पहचान बनाना अब संभव नहीं है।’
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