विशेष सत्र में नारी शक्ति वंदन अधिनियम के नाम से आए महिला आरक्षण बिल को लेकर तीसरे दिन भी चर्चाएं चली। लोकसभा के पास होने के बाद इसे राज्यसभा में पेश किया जाएगा। ऐसे में जानतें हैं कि इस बिल में क्या संशोधन किया गया है और ये बिल यदि कानून बनता है तो ये कब से लूगी होगा।
यह महिला आरक्षण बिल 27 साल से अटका पड़ा हुआ था। 1996 से एचडी देवेगौड़ा की सरकार में इस बिल को पहली बार पेश किया गया था। इसके बाद 1999,2002,2003,2004,2005,2008 और 2010 में इसे पास कराने की कोशिश की गई, लेकिन नाकामी हाथ आई। साल 2010 में ये बिल यूपीए सरकार में राज्यसभा से पास भी हो गया था, लेकिन लोकसभा में पेश नहीं हो गया। इसके बाद अब विशेष सत्र में दोबारा इस बिल को लाया गया है।
सबसे पहले जानते हैं कि इस बिल में क्या-क्या प्रवधान हैं।
इस विधेयक में संसद और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रावधान किया गया है। महिला आरक्षण के लिए पेश किया गया विधेयक 128वां संविधान संशोधन विधेयक है।
इसमें कहा गया है कि लोकसभा, राज्यों की विधानसभाओं और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की विधानसभाओं में एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी। इसका मतलब है कि लोकसभा की 543 सीटों में से 181 सीटें महिलाओं के लिए रिजर्व होंगी।
महिलाओं को यह आरक्षण केवल लोकसभा और विधानसभाओं में ही मिलेगा। राज्यसभा और विधान परिषद में महिलाओं को आरक्षण नहीं मिलेगा।
इस 33 प्रतिशत में एससी-एसटी महिलाओं को अलग से आरक्षण नहीं है। इसमें से ही एक-तिहाई सीटें अनुसूचित जाति और जनजाति की महिलाओं के लिए होंगी। इसके अलावा लोकसभा में ओबीसी वर्ग के लिए आरक्षण की व्यवस्था नहीं है।
अब बात आती है कि इसे लागू कब किया जाएगा
विधेयक में साफ लिखा है कि महिलाओं के लिए एक तिहाई रिजर्वेशन डिलिमिटेशन यानी परिसीमन के बाद ही लागू होगा। विधेयक के कानून बनने के बाद जो पहली जनगणना होगी, उसके आधार पर परिसीमन होगा। एक्सपर्ट्स के अनुसार 2026 से पहले परिसीमन लगभग असंभव है, क्योंकि 2021 में होने वाली जनगणना कोविड के कारण अभी तक नहीं हो पाई है। 2024 के चुनाव के बाद ही जनगणना होने की संभावना है।
क्या है महिला आरक्षण विधेयक 2023?
विशेष सत्र में नारी शक्ति वंदन अधिनियम के नाम से आए महिला आरक्षण बिल को लेकर तीसरे दिन भी चर्चाएं चली। लोकसभा के पास होने के बाद इसे राज्यसभा में पेश किया जाएगा। ऐसे में जानतें हैं कि इस बिल में क्या संशोधन किया गया है और ये बिल यदि कानून बनता है तो ये कब से लूगी होगा।
यह महिला आरक्षण बिल 27 साल से अटका पड़ा हुआ था। 1996 से एचडी देवेगौड़ा की सरकार में इस बिल को पहली बार पेश किया गया था। इसके बाद 1999,2002,2003,2004,2005,2008 और 2010 में इसे पास कराने की कोशिश की गई, लेकिन नाकामी हाथ आई। साल 2010 में ये बिल यूपीए सरकार में राज्यसभा से पास भी हो गया था, लेकिन लोकसभा में पेश नहीं हो गया। इसके बाद अब विशेष सत्र में दोबारा इस बिल को लाया गया है।
सबसे पहले जानते हैं कि इस बिल में क्या-क्या प्रवधान हैं।
इस विधेयक में संसद और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रावधान किया गया है। महिला आरक्षण के लिए पेश किया गया विधेयक 128वां संविधान संशोधन विधेयक है।
इसमें कहा गया है कि लोकसभा, राज्यों की विधानसभाओं और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की विधानसभाओं में एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी। इसका मतलब है कि लोकसभा की 543 सीटों में से 181 सीटें महिलाओं के लिए रिजर्व होंगी।
महिलाओं को यह आरक्षण केवल लोकसभा और विधानसभाओं में ही मिलेगा। राज्यसभा और विधान परिषद में महिलाओं को आरक्षण नहीं मिलेगा।
इस 33 प्रतिशत में एससी-एसटी महिलाओं को अलग से आरक्षण नहीं है। इसमें से ही एक-तिहाई सीटें अनुसूचित जाति और जनजाति की महिलाओं के लिए होंगी। इसके अलावा लोकसभा में ओबीसी वर्ग के लिए आरक्षण की व्यवस्था नहीं है।
अब बात आती है कि इसे लागू कब किया जाएगा
विधेयक में साफ लिखा है कि महिलाओं के लिए एक तिहाई रिजर्वेशन डिलिमिटेशन यानी परिसीमन के बाद ही लागू होगा। विधेयक के कानून बनने के बाद जो पहली जनगणना होगी, उसके आधार पर परिसीमन होगा। एक्सपर्ट्स के अनुसार 2026 से पहले परिसीमन लगभग असंभव है, क्योंकि 2021 में होने वाली जनगणना कोविड के कारण अभी तक नहीं हो पाई है। 2024 के चुनाव के बाद ही जनगणना होने की संभावना है।
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