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Krishna Janmashtami

‘हार में छिपी है बड़ी जीत’, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर जानें रणछोड़ बनने की कहानी

भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के उपलक्ष्य में कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाती है। वैसे तो भगवान कृष्ण का जीवन चरित्र ही हमारे लिए मार्गदर्शन हैं। उनके जीवन पर आधारित हर एक घटना हमें कोई न कोई सीख जरूर देती है। मथुरा की एक जेल में माता देवकी के गर्भ से जन्मे कृष्ण ने अपने आचरण से मानव जाति के सामने कई ऐसे उदाहरण दिए हैं जो जीने की राह दिखलाते हैं। ऐसा ही एक उदाहरण है जो हमें हार कर भी जीतने की सीख देता है। आज भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव पूरे देश में धूम-धाम से मनाया जा रहा है। इसी खास अवसर पर आपको उनसे जुड़ी एक कहानी के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसकी वजह से उन्हें रणछोड़ कहा जाता है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार द्वापर युग में मगध के राजा जरासंध ने भारत के कई राजाओं को युद्ध में हराकर उन्हें अपनी कैद में कर लिया था। उसकी मनसा थी कि कैदी राजाओं की संख्या सौ होने पर यज्ञ का आयोजन करेंगा, जिसमें वो पशुओं की जगह राजाओं की बलि देगा। इसी दौरान उसने श्रीकृष्ण को भी युद्ध के लिए चुनौती दी थी।

राजा जरासंध ने श्रीकृष्ण के विरुद्ध युद्ध के लिए यवन देश के राजा कालयवन को भी अपने साथ मिला लिया। कालयवन को भगवान शंकर से अपराजित होने का वरदान मिला था। इसके बाद दोनों ने मिलकर मधुरा पर आक्रमण कर दिया। कृष्ण को कालयवन के वरदान के बारे में जानकारी थी। उन्हें पता था वे कालयवन का कुछ नहीं बिगाड़ सकते। इसलिए वे युद्ध भूमि छोड़ कर भाग गए।

इस युद्ध को टालने और मथुरा के निर्दोष नागरिकों को बचाने के लिए कृष्ण ने रातोंरात वहां से सैकड़ों किलोमीटर दूर समुद्र में एक नई नगरी ‘द्वारका’ का निर्माण कराया। अपनी माया से उन्होंने सभी नागरिकों, उनके पशुओं को नींद में ही नई नगरी में पहुंचा दिया।

अगले दिन सूर्योदय के वक्त कृष्ण कालयवन की सेना के सामने जा पहुंचे और उसे लड़ने के लिए चुनौती दे डाली। इसके बाद वे भागकर एक ऐसी गुफा में जा पहुंचे जहां दक्षिण कोसल के राजा मुचकुंद गहरी निंद में सोए हुए थे।

असुरों के साथ कई दिनों तक चले युद्ध के कारण वो थक गए थे, जिसकी वजह से इंद्रदेव से उन्होंने एक लंबे विघ्नरहित विश्राम का वरदान मांगा था। उन्हें आशीर्वाद प्राप्त था कि यदि कोई व्यक्ति उनकी नींद में दखल देगा वो जलकर भस्म हो जाएगा। इसी दौरान श्रीकृष्ण का पीछा करते हुए कालयवन मुचकुंद के पास जा पहुंचा। श्रीकृष्ण ने सोते हुए मुचकुंद पर अपना पीताम्बर डाल दिया। कालयवन ने उन्हें श्रीकृष्ण समझ कर मुचकुंद पर हमला कर दिया जिससे उसकी निंद भंग हो गई। इसके बाद मुचकुंद के जागते ही कालयवन जलकर भस्म हो गया।

इस घटना के बाद श्री कृष्ण को रणछोड़ के नाम से जाना जाने लगा। कृष्ण की हर लीला के पीछे कोई न कोई संदेश छिपा होता है। इस लीला से वे लोगों तक पहुंचाना चाहते ते कि युद्ध जीतने के लिए अस्त्र-शस्त्र नहीं बल्कि बुद्धि और चतुराई जरूरी होती है। युद्ध हथियारों से नहीं बल्कि बुद्धि का इस्तेमाल कर के जीता जा सकता है।