भारतीय शास्त्रीय नृत्य जगत की एक महान विभूति, कथक को नई पहचान देने वाली, पद्म भूषण सम्मानित नृत्यांगना और कोरियोग्राफर कुमुदिनी लाखिया जी का निधन हो गया है। उनका जाना भारतीय सांस्कृतिक जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है।
कुमुदिनी लाखिया – एक ऐसा नाम जिन्होंने कथक को सिर्फ मंच तक ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने में भी अहम भूमिका निभाई। 17 मई 1930 को जन्मीं लाखिया जी ने महज 7 साल की उम्र में कथक की साधना शुरू की थी। उन्होंने बिकानेर, बनारस और जयपुर घराने के कई गुरुओं से शिक्षा प्राप्त की और फिर शंभु महाराज से भी नृत्य की बारीकियाँ सीखी।
उनकी मां लीला जी स्वयं शास्त्रीय गायिका थीं, जिन्होंने उन्हें कला के रास्ते पर चलने की प्रेरणा दी। अपने करियर की शुरुआत उन्होंने राम गोपाल के साथ विदेशों में प्रस्तुतियाँ देकर की थी, जिससे भारतीय नृत्य को पहली बार वैश्विक मंच मिला।
1960 के दशक में उन्होंने कथक को परंपरागत एकल प्रस्तुति से निकालकर समूह नृत्य का रूप दिया और कथक में आधुनिक कथानकों को शामिल कर नई सोच की शुरुआत की। उन्होंने अहमदाबाद में 1967 में ‘कदंब स्कूल ऑफ डांस एंड म्यूज़िक’ की स्थापना की, जो आज भी कथक की साधना का एक प्रमुख केंद्र है।
उनकी प्रसिद्ध प्रस्तुतियों में ‘धबकर’, ‘युगल’ और ‘अतः किम’ को विशेष स्थान प्राप्त है। इसके अलावा, 1981 की प्रसिद्ध फिल्म ‘उमराव जान’ की कोरियोग्राफी भी उन्होंने ही की थी।
कुमुदिनी लाखिया जी ने अनेकों शिष्यों को तैयार किया जो आज कथक की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं – जिनमें अदिति मंगलदास, वैशाली त्रिवेदी, संध्या देसाई, दक्ष शेठ जैसे नाम शामिल हैं।
भारतीय नृत्य कला की इस महान साधिका को वीएनएम टीवी परिवार की ओर से श्रद्धांजलि। उनकी कला, उनका योगदान और उनका मार्गदर्शन सदैव हमारी स्मृतियों में जीवित रहेगा।

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