केंद्र सरकार ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न से सम्मानित करने का ऐलान किया है। कर्पूरी ठाकुर दो बार बिहार के CM और एक बार डिप्टी CM रहे। वे बिहार के पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री थे।
कर्पूरी ठाकुर का जीवन परिचय
कर्पूरी ठाकुर का जन्म भारत में ब्रिटिश शासन काल के दौरान समस्तीपुर के एक गांव पितौंझिया, जिसे अब कर्पूरीग्राम कहा जाता है, में नाई जाति में हुआ था। जननायक के पिता का नाम गोकुल ठाकुर और माता का नाम रामदुलारी देवी था। इनके पिता गांव के सीमांत किसान थे जो अपने पारंपरिक पेशा बाल काटने का काम करते थे।
कर्पूरी ठाकुर ने 1940 में मैट्रिक की परीक्षा पटना विश्वविद्यालय से द्वितीय श्रेणी में पास की। 1942 का असहयोग आंदोलन छिड़ गया तो उसमें कूद पड़े। परिणामस्वरूप 26 महीने तक भागलपुर कैंप जेल में जेल-यातना भुगतने के उपरांत 1945 में रिहा हुए।
कर्पूरी ठाकुर के ऐसे मंत्री हैं जिन्होंने देश में पहली बार OBC आरक्षण दिया था। वो देश के पहले ऐसे CM थे, जिन्होंने अपने राज्य में मैट्रिक तक पढ़ाई मुफ्त कर दी थी।कर्पूरी ठाकुर को बिहार के सामाजिक न्याय का मसीहा माना जाता है। उन्होंने पढ़ाई में अंग्रेजी की अनिवार्यता को समाप्त किया, बिहार में उर्दू को दूसरी राजकीय भाषा का दर्जा भी दिया। पिछड़े ही नहीं, अगड़ों को भी 3% आरक्षण का प्रावधान किया। स्वतंत्रता का संघर्ष हो या जेपी का आंदोलन, कर्पूरी ठाकुर भूमिका हमेशा अग्रणी रही।
पीएम मोदी ने क्या कहा?
मोदी ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, “मुझे इस बात की बहुत प्रसन्नता हो रही है कि भारत सरकार ने समाजिक न्याय के पुरोधा महान जननायक कर्पूरी ठाकुर जी को भारत रत्न से सम्मानित करने का निर्णय लिया है। उनकी जन्म-शताब्दी के अवसर पर यह निर्णय देशवासियों को गौरवान्वित करने वाला है। पिछड़ों और वंचितों के उत्थान के लिए कर्पूरी जी की अटूट प्रतिबद्धता और दूरदर्शी नेतृत्व ने भारत के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य पर अमिट छाप छोड़ी है। यह भारत रत्न न केवल उनके अतुलनीय योगदान का विनम्र सम्मान है, बल्कि इससे समाज में समरसता को और बढ़ावा मिलेगा।”
उनके जन्म दिन पर पीएम ने पोस्ट में कहा, “देशभर के मेरे परिवारजनों की ओर से जननायक कर्पूरी ठाकुर जी को उनकी जन्म-शताब्दी पर मेरी आदरपूर्ण श्रद्धांजलि। इस विशेष अवसर पर हमारी सरकार को उन्हें भारत रत्न से सम्मानित करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। भारतीय समाज और राजनीति पर उन्होंने जो अविस्मरणीय छाप छोड़ी है, उसे लेकर मैं अपनी भावनाओं और विचारों को आपके साथ साझा कर रहा हूं…”
कर्पूरी ठाकुर के मुश्किल उसूल
ठाकुर का योगदान राजनीति के दायरे से परे तक फैला हुआ है। वे गरीबों के आर्थिक सशक्तीकरण के अथक समर्थक थे। उनकी सरकार ने विभिन्न योजनाएं लागू कीं, जो हाशिए पर रहने वाले समुदायों को वित्तीय सहायता, प्रशिक्षण और संसाधन प्रदान करती थीं, जिससे वे उद्यमिता में संलग्न हो सकें और आर्थिक स्वतंत्रता हासिल कर सकें। कई चुनौतियों और आलोचनाओं का सामना करने के बावजूद, ठाकुर गरीबों और दलितों के कल्याण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता पर हमेशा दृढ़ रहे।
ठाकुर जी की नेतृत्व शैली की विशेषता व्यावहारिक दृष्टिकोण पर आधारित थी, जिससे वो समाज के सबसे कमजोर वर्गों के सामने आने वाली चुनौतियों को समझने में सक्षम थे।
भेदभाव और सामाजिक अन्याय के मुद्दों के खिलाफ हमेशा अपनी आवाज़ बुलंद करने के मामले में कर्पूरी ठाकुर का सबसे पहले नाम आता है। जाति-आधारित भेदभाव के खिलाफ बात की और एक अधिक सामंजस्यपूर्ण समाज को बढ़ावा देने की दिशा में काम किया, जहां व्यक्तियों को उनकी जाति या आर्थिक स्थिति के आधार पर नहीं आंका जाता था।
आज उनकी विरासत के लिए बिहार के राजनीतिक दल लड़ाई करते हैं, लेकिन क्या बिहार के दलितों, वंचितों और पिछड़ों को सही मायनों में न्याय दिलवा सके, ये सवाल बार बार पूछा जाना चाहिए।
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