पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले में स्थित ‘भालो पहाड़’ नामक जंगल, जो अब पर्यावरण संरक्षण का प्रतीक बन गया है, एक व्यक्ति की कड़ी मेहनत और समर्पण का परिणाम है। यह जंगल किसी प्राकृतिक चमत्कार से कम नहीं है, क्योंकि इसे 78 वर्षीय कमल चक्रवर्ती ने अपनी 26 साल की अथक मेहनत से तैयार किया है। कमल चक्रवर्ती ने पर्यावरण को बचाने और समाज को जागरूक करने के उद्देश्य से 50 एकड़ भूमि पर फैले इस जंगल में लगभग 30 लाख पेड़ लगाए हैं। यह जंगल न सिर्फ हरे-भरे पेड़ों का समूह है, बल्कि यह उस प्रतिबद्धता और दृढ़ निश्चय की कहानी है, जो एक व्यक्ति की सोच और साहस को दर्शाता है।
पर्यावरण संरक्षण की दिशा में अद्वितीय प्रयास
कमल चक्रवर्ती का जीवन समाज और पर्यावरण के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का जीता-जागता उदाहरण है। ‘भालो पहाड़’ नामक इस जंगल की नींव 26 साल पहले तब पड़ी जब उन्होंने पर्यावरण संरक्षण की दिशा में काम करने का बीड़ा उठाया। उनकी सोच थी कि पेड़ों का संरक्षण न केवल प्रकृति को पुनर्जीवित करेगा, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक बेहतर भविष्य भी तैयार करेगा। धीरे-धीरे, उन्होंने यह जंगल 50 एकड़ की भूमि पर विकसित किया, जो आज न सिर्फ पेड़ों से भरा है, बल्कि इस क्षेत्र के स्थानीय लोगों के जीवन में भी सकारात्मक बदलाव लाया है।
पर्यावरण संरक्षण के अलावा, कमल चक्रवर्ती स्थानीय आदिवासी समुदायों की भलाई के लिए भी काम कर रहे हैं। उन्होंने इन क्षेत्रों में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान की हैं, जिससे यहां की आदिवासी जनजातियों को एक बेहतर जीवन जीने का अवसर मिला है। शिक्षा के अभाव और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी से जूझते इन क्षेत्रों में कमल चक्रवर्ती ने स्कूल और स्वास्थ्य केंद्रों की स्थापना की, ताकि आदिवासी बच्चों को पढ़ाई का अवसर मिल सके और बीमारियों का सही इलाज भी किया जा सके।
बंगाली साहित्य और इंजीनियरिंग में योगदान
कमल चक्रवर्ती एक प्रसिद्ध बंगाली लेखक और इंजीनियर भी हैं। उनके लेखन ने समाज को सोचने और जागरूक होने के लिए प्रेरित किया है। अपने लेखन के माध्यम से उन्होंने समाज में व्याप्त समस्याओं को उठाया है और उन्हें समाधान के लिए प्रेरित किया है। वह एक ऐसे लेखक हैं, जिन्होंने अपने जीवन के हर पहलू में समाज को कुछ न कुछ देने का प्रयास किया है।
प्रकृति और मानवता के प्रति समर्पण
कमल चक्रवर्ती का जीवन उन लोगों के लिए प्रेरणा है, जो समाज और पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी महसूस करते हैं। उनकी 26 साल की मेहनत और समर्पण ने उन्हें न केवल पुरुलिया में बल्कि पूरे देश में एक आदर्श व्यक्तित्व बना दिया है। उनकी कहानी यह बताती है कि अगर किसी में दृढ़ संकल्प हो तो वह अकेले ही बड़े बदलाव ला सकता है।
भविष्य की पीढ़ियों के लिए ‘भालो पहाड़’ न सिर्फ एक जंगल है, बल्कि यह एक सबक है कि अगर हम प्रकृति की देखभाल करेंगे, तो प्रकृति हमें इसका बदला जरूर देगी। कमल चक्रवर्ती की यह पहल पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक मील का पत्थर है और यह दिखाती है कि मानवता और प्रकृति का संगम हमेशा ही फलदायी होता है।
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