दिल्ली की राजनीति में एक और बड़ा मोड़ सामने आया है। 2015 में आम आदमी पार्टी (AAP) में शामिल होकर पार्टी के कैबिनेट मंत्री बने कैलाश गहलोत ने महज 24 घंटे में पार्टी और दिल्ली सरकार से इस्तीफा देकर भाजपा का दामन थाम लिया। यह कदम किसी भी राजनीतिक गलियारे में एक भारी धक्का के रूप में देखा जा रहा है, और गहलोत के बयान से ये साफ होता है कि उनका यह निर्णय निजी नहीं, बल्कि एक विचारधारा की असहमति का परिणाम है।
भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़ा हुआ नया मोर्चा
गहलोत ने भाजपा जॉइन करते हुए स्पष्ट तौर पर कहा कि उन्होंने कभी भी दबाव में आकर कोई फैसला नहीं लिया। यह बयान विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि राजनीतिक गलियारों में ये चर्चा जोरों पर थी कि गहलोत ने ईडी और सीबीआई के दबाव में यह कदम उठाया। लेकिन गहलोत ने इस आरोप को खारिज किया और कहा कि उन्होंने हमेशा अपने फैसले खुद लिए हैं, और इस बार भी उन्होंने वही किया। उनके अनुसार, AAP में जिस उद्देश्य से उन्होंने प्रवेश किया था, वह अब पूरी तरह से बदल चुका था, और पार्टी में एक राजनीतिक असमंजस पैदा हो चुका था।
गहलोत ने यह भी कहा कि जब वे AAP में आए थे, तो उनका उद्देश्य केवल दिल्लीवासियों की सेवा करना था, लेकिन अब वे पार्टी में उन मूल्यों का उल्लंघन होते देख रहे थे जिनसे वे जुड़े थे। उन्होंने विशेष रूप से यमुना सफाई, बुनियादी सेवाओं और दिल्ली के लिए किए गए वादों का उल्लेख किया, जो अब अधूरे रह गए हैं।
AAP से नाराजगी: क्या गहलोत की पीड़ा सबकी है?
गहलोत के इस्तीफे के बाद, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि गहलोत को अपनी राह चुनने का पूरा हक है और वे कहीं भी जा सकते हैं। वहीं, AAP के वरिष्ठ नेता संजय सिंह और मुख्यमंत्री आतिशी ने इसे भाजपा की ओर से एक गंदे षड्यंत्र का हिस्सा करार दिया। उनका कहना है कि भाजपा दिल्ली विधानसभा चुनाव में जीतने के लिए ED और CBI का इस्तेमाल कर रही है।
यहां पर एक सवाल उठता है—क्या गहलोत का इस्तीफा और उनकी नाराजगी वाकई सिर्फ व्यक्तिगत अनुभव पर आधारित है, या फिर दिल्ली में AAP के कार्यकर्ताओं और नेताओं के भीतर व्याप्त असंतोष की व्यापक तस्वीर को दर्शाता है?
एक नई दिशा में कदम
कैलाश गहलोत का इस्तीफा और भाजपा में शामिल होना राजनीति में एक नई दिशा को इंगीत करता है। गहलोत का राजनीतिक करियर विवादों से घिरा रहा है—चाहे वह तिरंगा विवाद हो या शराब घोटाले में उनका नाम आना। लेकिन उनका यह कदम दिल्ली के राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में इस बात की ओर इशारा करता है कि एक बड़ा वर्ग पार्टी के भीतर बढ़ते भ्रष्टाचार और राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं से असंतुष्ट है।
गहलोत ने इस्तीफे में जो चार बिंदु उठाए हैं, उनमें से हर एक में कहीं न कहीं आम आदमी पार्टी की असलियत का पर्दाफाश हो रहा है। यमुना सफाई का वादा, जो कभी दिल्ली के पर्यावरण एजेंडे का प्रमुख हिस्सा था, अब सिर्फ एक खोखली बात बनकर रह गया है। दिल्ली के आम नागरिकों को बुनियादी सेवाएं प्रदान करने में भी भारी चुनौतियां हैं। इन बुनियादी सवालों के बजाय पार्टी अब अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं और सत्ता संघर्ष में उलझी हुई दिखती है।
भविष्य का क्या होगा?
गहलोत के भाजपा में शामिल होने के बाद, उनका विरोधी खेमा इसे भाजपा का ‘मोदी वॉशिंग मशीन’ करार दे रहा है, जो समय-समय पर ‘साफ-सुथरे’ नेताओं को खींचकर पार्टी में शामिल करता है। वहीं भाजपा के नेता गहलोत के कदम को सराहते हुए इसे भ्रष्टाचार के खिलाफ एक मजबूत संदेश मानते हैं। भाजपा के नेता कपिल मिश्रा ने कहा, “गहलोत ने स्पष्ट तौर पर लिखा है कि भ्रष्टाचार के कारण आम आदमी पार्टी में रहना अब संभव नहीं है।”
इस राजनीतिक उलटफेर के बाद, सवाल ये है कि क्या दिल्ली की राजनीति में एक नया मोर्चा बनने जा रहा है? क्या गहलोत के कदम से भाजपा को चुनावी लाभ मिलेगा, या फिर आम आदमी पार्टी अपनी सत्ता के लिए खुद को फिर से खड़ा कर पाएगी? समय बताएगा।
कुल मिलाकर क्या है संदेश?
गहलोत का इस्तीफा और भाजपा में शामिल होने का निर्णय केवल एक राजनीतिक मोड़ नहीं है, बल्कि यह AAP के भीतर गहरे छुपे असंतोष और भ्रष्टाचार की ओर इशारा करता है। इस फैसले के बाद दिल्ली की राजनीति में क्या नई सियासी हलचल मचती है, यह देखना बाकी है।
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