जलेबी एक ऐसी लोकप्रिय मिठाई है, जिसे भारत के हर हिस्से में चाव के साथ पसंद किया जाता है। इसे भारत के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग तरीको से खाया जाता है। कहीं इसे दूध, तो कहीं दही तो कहीं रबड़ी के साथ परोसा जाता है। इसका स्वादिष्ट और कुरकुरा अंदाज इसे विशेष बनाता है। परंतु, जलेबी केवल एक मिठाई नहीं है, बल्कि आयुर्वेदिक चिकित्सा में भी इसका महत्वपूर्ण स्थान है।
आयुर्वेदिक उपयोग: आयुर्वेद में जलेबी का उपयोग जलोदर (पानी की अधिकता) जैसी बीमारियों के इलाज में किया जाता था। इसे शुगर की बीमारी को नियंत्रित करने के लिए दही के साथ खाने की सलाह दी जाती थी। वहीं, खाली पेट दूध और जलेबी का सेवन वजन और लंबाई बढ़ाने के लिए किया जाता था। माइग्रेन और सिरदर्द के लिए भी जलेबी का सेवन सूर्योदय से पहले दूध के साथ करने की सलाह दी जाती है।
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व: जलेबी का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी है। देवी पूजा पद्धति में, आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा भगवती को हरिद्रान पुआ और जलेबी का भोग लगाने का उल्लेख किया गया है। आज भी माता भगवती को जलेबी का भोग चढ़ाने की प्रथा प्रचलित है। इसके अतिरिक्त, इमरती, जो उड़द दाल से बनती है, शनिदेव के नाम पर हनुमान जी, पीपल वृक्ष, या शनि मंदिर में चढ़ाई जाती है। इसे काले कौवे और कुत्तों को खिलाने से शनि के प्रभाव को कम करने का विश्वास है।
जलेबी की प्राचीन विधि: जलेबी बनाने की विधि का उल्लेख हमारे प्राचीन ग्रंथों और पुराणों में मिलता है। संस्कृत में इसे ‘रस कुंडलिका’ कहा गया है, जबकि भोज कुतुहल में इसे ‘जल वल्लीका’ के नाम से जाना जाता है। ‘गुण्यगुणबोधिनी’ में भी जलेबी बनाने की विधि का वर्णन किया गया है।
स्वास्थ्य के लिए लाभदायक: जलेबी का कुंडली के आकार में होना सिर्फ सजावट नहीं है, बल्कि इसका संबंध हमारी आंतों से है। जलेबी को आयुर्वेद में कब्ज के रामबाण इलाज के रूप में माना जाता है। इसका नियमित सेवन पाचन तंत्र को मजबूत करता है और पेट की समस्याओं को दूर करता है।
जलेबी केवल एक स्वादिष्ट मिठाई नहीं है, बल्कि इसका उपयोग आयुर्वेदिक चिकित्सा, धार्मिक अनुष्ठानों और स्वास्थ्य सुधार में भी किया जाता है। इसकी प्राचीन विधि और औषधीय गुण इसे भारतीय संस्कृति और चिकित्सा का एक अनमोल हिस्सा बनाते हैं।
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