अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद के खिलाफ एक और सफलता
इराकी सेना ने एक बड़े सैन्य अभियान में ISIS के सीरिया प्रमुख अबू खदीजा को मार गिराया। इराक के प्रधानमंत्री मोहम्मद शिया अल-सुदानी ने इस सफलता की पुष्टि करते हुए इसे आतंकवाद के खिलाफ बड़ी जीत बताया। इस अभियान में अमेरिका के नेतृत्व वाले गठबंधन ने भी सक्रिय भूमिका निभाई।
प्रधानमंत्री सुदानी ने अपनी सोशल मीडिया पोस्ट में कहा, “अबू खदीजा दुनिया के सबसे खतरनाक आतंकियों में से एक था। इसका खात्मा न केवल इराक, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक राहत की खबर है।”
ISIS : खलीफा से पतन तक का सफर
कभी इराक और सीरिया के बड़े हिस्से पर कब्जा जमाने वाला आईएसआईएस अब फिर से संगठित होने की कोशिश कर रहा था। 2014 में अबू बक्र अल-बगदादी ने इराक और सीरिया के एक बड़े हिस्से में ‘खिलाफत’ का ऐलान किया था, लेकिन 2019 में वह अमेरिकी सेना के ऑपरेशन में मारा गया। उसके बाद से संगठन लगातार कमजोर होता गया, लेकिन आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्त रहा।
सितंबर 2024 में अमेरिका ने सीरिया में ISIS और अल-कायदा से जुड़े आतंकी गुटों के ठिकानों पर हमला कर 37 आतंकियों को मार गिराया था। इन हमलों में ISIS के ट्रेनिंग कैंप और वरिष्ठ आतंकियों को निशाना बनाया गया था।
सीरिया में आईएसआईएस और अमेरिका की टकराहट क्यों?
सीरिया एक मुस्लिम बहुल देश है, जहां बहुसंख्यक सुन्नी और अल्पसंख्यक शिया समुदाय रहते हैं। 2011 में जब अरब देशों में सत्ता विरोधी लहर चली, तो सीरिया में भी राष्ट्रपति बशर अल-असद के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू हुए। असद सरकार ने दमनकारी नीतियां अपनाईं और विरोधियों को कुचलने के लिए सैन्य बल का इस्तेमाल किया।
असद सरकार के खिलाफ लड़ने के लिए सुन्नी विद्रोहियों ने ‘फ्री सीरियन आर्मी’ (FRA) का गठन किया, जिसे सऊदी अरब और कतर जैसे देशों का समर्थन मिला। इसी दौरान इराक में सक्रिय इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक (ISI) के लड़ाके भी सीरिया पहुंचे और इसका नाम बदलकर आईएसआईएस कर दिया गया।
रूस, अमेरिका और क्षेत्रीय शक्तियों की जंग का अखाड़ा बना सीरिया
ISIS को खत्म करने के नाम पर अमेरिका ने सीरिया में दखल दिया और वहां अपनी सेना तैनात कर दी। दूसरी ओर, बशर अल-असद की सरकार को बचाने के लिए रूस और ईरान ने अपनी सैन्य शक्ति झोंक दी। इस संघर्ष ने सीरिया को एक युद्धभूमि में बदल दिया, जहां अलग-अलग देशों ने अपने-अपने हित साधने के लिए विभिन्न गुटों को समर्थन दिया।
सीरिया के संघर्ष में कुर्द समुदाय भी शामिल हो गया। अमेरिका की मदद से कुर्द लड़ाकों ने ‘सीरियन डेमोक्रेटिक फोर्सेज’ (SDF) बनाई और अलग राष्ट्र ‘कुर्दिस्तान’ के लिए संघर्ष छेड़ दिया। लेकिन तुर्की सरकार कुर्दों को अपने लिए खतरा मानते हुए उनके खिलाफ सैन्य कार्रवाई करने लगी।
आज भी संघर्ष जारी, अमेरिका की मौजूदगी सवालों के घेरे में
संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक, 2011 के बाद से सीरिया में तीन लाख से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं और करीब 70 लाख लोग शरणार्थी बनकर अन्य देशों में पलायन कर चुके हैं।
अमेरिका ने 2019 में सीरिया से अपनी सेना हटाने की बात कही थी, लेकिन वह अब भी वहां मौजूद है। बशर अल-असद सरकार ने आरोप लगाया है कि अमेरिकी सेना कुर्द फोर्स के साथ मिलकर सीरिया के तेल ठिकानों पर कब्जा जमाए बैठी है और इससे मुनाफा कमा रही है। हालांकि, अमेरिका इन आरोपों को खारिज करता रहा है और खुद को ISIS के खिलाफ लड़ाई में सक्रिय बताता है।
आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक मोड़ या महज एक और लड़ाई?
अबू खदीजा का मारा जाना निश्चित रूप से आतंकवाद के खिलाफ एक बड़ी जीत है, लेकिन यह अंतिम जीत नहीं है। आईएसआईएस जैसे संगठन विचारधारा के आधार पर चलते हैं, और जब तक इस विचारधारा का पूरी तरह सफाया नहीं होगा, खतरा बरकरार रहेगा।
इसके अलावा, सीरिया जैसे देशों में क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय शक्तियों की दखलअंदाजी आतंकवाद के खात्मे को और जटिल बना देती है। अमेरिका, रूस, ईरान और तुर्की जैसे देशों के अलग-अलग एजेंडे हैं, और जब तक ये देश अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर स्थायी समाधान नहीं तलाशते, तब तक ऐसे संघर्ष चलते रहेंगे।
आईएसआईएस का कमजोर होना एक अच्छी खबर है, लेकिन यह भी जरूरी है कि आतंकवाद की जड़ें काटने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय मिलकर एक ठोस रणनीति बनाए, ताकि इस खतरे का पूरी तरह सफाया किया जा सके।
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