13 Feb. Vadodara: एक साल पहले CAA के खिलाफ अल्पसंख्यकों द्वारा आंदोलन शुरू किया गया था। अब इस पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया है। वो फैसला क्या है जानने के लिए इस लेख को पढ़िए। नागरिक संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ दिल्ली के शाहीन बाग में हुए प्रदर्शन को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अपने पुराने फैसले पर पुनर्विचार करने से इंकार किया है। शनिवार को दायर याचिका को खारिज करते हुए जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस कृष्ण मुरारी ने कहा कि विरोध का अधिकार, कभी भी और कहीं भी नहीं हो सकता।
न्यायालय ने कहा कि राइट टु प्रोटेस्ट का यह मतलब नहीं कि जब और जहां मन हुआ, प्रदर्शन करने बैठ जाएं। कुछ सहज विरोध हो सकता है, लेकिन लंबे समय तक असंतोष या विरोध के मामले में दूसरों के अधिकारों को प्रभावित करने वाले सार्वजनिक स्थान पर लगातार कब्जा नहीं किया जा सकता।
याचिका में क्या था?
पिछले वर्ष यानी अक्टूबर 2020 में शाहीन बाग आंदोलन को लेकर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर नवंबर 2020 से पुनर्विचार याचिका लंबित थी। ऐसे में एक और अर्जी लगाकर याचिकाकर्ताओं ने कहा कि चूंकि किसान आंदोलन के खिलाफ लगाई गई अर्जी और हमारी याचिका एक जैसी है, ऐसे में सार्वजनिक स्थानों पर विरोध करने के अधिकार की वैधता और सीमा पर कोर्ट के विचार अलग-अलग नहीं हो सकते। कोर्ट को इस पर विचार करना चाहिए। शाहीन बाग मामले में अदालत की तरफ से की गई टिप्पणी नागरिकों के आंदोलन करने के अधिकार पर शंका पैदा होती है।
अक्टूबर 2020 में कोर्ट के फैसले की कुछ बड़ी बातें
विरोध-प्रदर्शन के लिए शाहीन बाग जैसी सार्वजनिक जगहों का घेराव बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। दूसरी बात, लोकतंत्र और असहमति साथ-साथ चल सकते हैं। तीसरी, शाहीन बाग को खाली करवाने के लिए दिल्ली पुलिस को कार्रवाई करनी चाहिए थी। और आखरी बात ये कि ऐसे मामलों में अफसरों को खुद एक्शन लेना चाहिए। वे अदालतों के पीछे नहीं छिप सकते, कि जब कोई आदेश आएगा तभी कार्रवाई करेंगे।
More Stories
गुजराती फिल्म “Ajab Raat Ni Gajab Vaat” का मेहसाणा में शानदार प्रमोशन, जानें क्या कहती है कहानी
अहमदाबादवासियों के लिए खुशखबरी, इन 4 शहरों के लिए नई सीधी उड़ानें, जानिए कब शुरू होगी?
देश में क्यों हो रही अनिल बिश्नोई की चर्चा? लॉरेंस बिश्नोई के उलट एक सच्चे संरक्षणकर्ता की कहानी