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ग़रीब बच्चों के भविष्य को बचाने की बजाय, सरकारी नंदघर बन गए हैं खंडहर – क्या है इस भ्रष्टाचार की कहानी?

गुजरात सरकार “पढ़े गुजरात, आगे बढ़े गुजरात” के रूप में कई योजनाओं के माध्यम से ग़रीब बच्चों के भविष्य को उज्जवल बनाने का दावा करती है, लेकिन वहीं राज्य के विभिन्न विभागों में व्याप्त भ्रष्टाचार और कामचोरी के कारण करोड़ों रुपयों का बेजा इस्तेमाल किया जा रहा है। इन योजनाओं में से एक प्रमुख योजना, आंगनवाड़ी केंद्रों (नंदघर) का निर्माण है, जिनका उद्देश्य बच्चों को मुफ्त शिक्षा और पोषण प्रदान करना था। लेकिन अफसोस की बात यह है कि इन नंदघरों में सरकारी धन का ग़लत तरीके से इस्तेमाल किया जा रहा है और कई नंदघर अब खंडहर में तब्दील हो गए हैं।

नंदघर निर्माण पर भ्रष्टाचार का तांडव

वडोदरा शहर में लगभग 439 नंदघर (आंगनवाड़ी) कार्यरत हैं, जिनमें से 200 नंदघर नगर निगम द्वारा बनवाए गए हैं, जबकि बाकी 239 किराए पर लिए गए भवनों में चलते हैं। इन नंदघरों को विशेष रूप से ग़रीब बच्चों के लिए तैयार किया गया था, ताकि वे बिना किसी शुल्क के शिक्षा प्राप्त कर सकें। लेकिन इनमें से कई नंदघर अब बुरी हालत में हैं। लाखों रुपये खर्च कर तैयार किए गए फेब्रिकेटेड नंदघर अब कचरे के ढेरों में तब्दील हो चुके हैं। वडोदरा के हाथिखाना मार्केट और बावनचाली इलाके में लाखों रुपये खर्च करके बनवाए गए ये नंदघर अब भंगार में बदल गए हैं। इनकी बदहाली का मुख्य कारण अधिकारियों की उदासीनता और भ्रष्टाचार है। इन नंदघरों की देखभाल करने वाला कोई नहीं है और जिम्मेदार अधिकारियों का इन पर कोई ध्यान नहीं है।

क्या कह रहे हैं अधिकारी?

वडोदरा महनगर पालिका के स्वास्थ्य विभाग और आई.सी.डी.एस. विभाग के अधिकारी इस स्थिति से पूरी तरह अंजान हैं। डॉ. देवेश पटेल (स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख) और डॉ. अंबिका जयस्वाल (आई.सी.डी.एस. के हंगामी प्रोग्राम ऑफिसर) दोनों ही इन नंदघरों की स्थिति पर प्रतिक्रिया देने से बच रहे हैं। विशेष रूप से डॉ. अंबिका जयस्वाल से जब नंदघर के बारे में सवाल पूछा गया, तो उन्होंने चुप्पी साध ली। यह स्थिति इस बात को स्पष्ट करती है कि सरकारी योजनाओं का सही तरीके से कार्यान्वयन नहीं हो पा रहा है और जिम्मेदार अधिकारियों के पास इन मुद्दों को सुलझाने का समय नहीं है।

शिक्षा के लिए सरकारी धन का हो रहा दुरुपयोग

इन नंदघरों को स्थापित करने के लिए सरकारी धन से करोड़ों रुपये खर्च किए गए हैं। एक फेब्रिकेटेड नंदघर बनाने की लागत लगभग 3.5 लाख रुपये है, और नगर निगम ने 36 ऐसे नंदघर बनाए हैं। कुल मिलाकर, इन 36 नंदघरों पर लगभग 1.26 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं। हालांकि, यह प्रश्न उठता है कि इन नंदघरों का क्या हुआ? क्या ये अपनी पूरी क्षमता के साथ काम कर रहे हैं? या फिर यह धन कहीं और खर्च हो गया है?

क्या समाधान है?

सरकारी योजनाओं के तहत बच्चों की शिक्षा और उनके पोषण के लिए जो नंदघर बनाए गए थे, वे अब कचरे के ढेरों में तब्दील हो गए हैं। इन नंदघरों का उद्देश्य था ग़रीब बच्चों को मुफ्त शिक्षा देना, लेकिन आज यह योजना भी भ्रष्टाचार और लापरवाही के कारण फ्लॉप हो गई है। शिक्षा और पोषण के लिए यह धन सटीक तरीके से खर्च होना चाहिए था, लेकिन अफसोस की बात है कि अधिकारियों की अनदेखी और जिम्मेदारियों से भागने के कारण इन योजनाओं का सही तरीके से लाभ ग़रीब बच्चों को नहीं मिल पा रहा है।

ग़रीब बच्चों का भविष्य सुधारने के लिए सरकार द्वारा शुरू की गई योजनाओं का सही तरीके से क्रियान्वयन न होना, भ्रष्टाचार और लापरवाही के कारण यह योजनाएं असफल हो रही हैं। सरकारी धन का दुरुपयोग और जिम्मेदार अधिकारियों की नाकारगी के चलते ग़रीब बच्चों के लिए बनाए गए नंदघर अब कचरे के ढेर में तब्दील हो गए हैं। यह समय की आवश्यकता है कि इन नंदघरों की सही निगरानी की जाए और सुनिश्चित किया जाए कि ग़रीब बच्चों को उनकी शिक्षा और पोषण के लिए पूरी सुविधा मिले।